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भारत अब कई क्षेत्रों में वैश्विक मानक स्थापित कर रहा है : डॉ. जितेन्द्र सिंह

भारत अब कई क्षेत्रों में वैश्विक मानक स्थापित कर रहा है : डॉ. जितेन्द्र सिंह

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New Delhi News: केन्द्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी और पृथ्वी विज्ञान राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ. जितेन्द्र सिंह ने बुधवार को कहा कि भारत अब केवल एक अनुयायी नहीं रह गया है। वह वैश्विक मानक स्थापित कर रहा है और विभिन्न क्षेत्रों में नेतृत्व प्रदान कर रहा है तथा नवाचारों में पहल कर रहा है। उन्होंने हाल के वर्षों में अंतरिक्ष, जैव प्रौद्योगिकी तथा परमाणु ऊर्जा आदि के क्षेत्रों में भारत द्वारा की गयी उल्लेखनीय प्रगति पर रोशनी डालते हुए कहा कि देश ने खुद को विश्व मंच पर एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में स्थापित किया है।
डॉ. जितेन्द्र सिंह ने बुधवार को यहां जारी एक वक्तव्य में कहा कि भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में अभूतपूर्व परिवर्तन हुआ है, जिसमें महत्त्वाकांक्षी मिशनों और अंतरराष्ट्रीय सहयोगों में वृद्धि हुई है। स्पेस डॉकिंग एक्सपेरीमेंट (स्पेडेक्स) भारत की प्रौद्योगिकी संबंधी प्रगति का सबूत है, जो गगनयान, चंद्रयान-4 और भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन, भारत के आगामी अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन सहित भविष्य के अंतरिक्ष मिशनों के लिए मार्ग प्रशस्त करेगा।

देश ने 433 विदेशी उपग्रहों को सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया
उन्होंने कहा कि देश ने 433 विदेशी उपग्रहों को सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया है, जिनमें से 396 को पिछले दशक में ही प्रक्षेपित किया गया था, जिससे 2014-2023 तक 157 मिलियन डॉलर और 260 मिलियन यूरो का राजस्व प्राप्त हुआ। चंद्रयान-3 की ऐतिहासिक सफलता, जिसने भारत को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास उतरने वाला पहला देश बना दिया, उसने इसरो को चंद्र अन्वेषण में सबसे आगे खड़ा कर दिया है। नासा सहित दुनिया की प्रमुख अंतरिक्ष एजेंसियां अब चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव से भारत के निष्कर्षों की प्रतीक्षा कर रही हैं, जो एक बहुत महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है और यह अंतरिक्ष अनुसंधान में देश के बढ़ते प्रभुत्व को रेखांकित करता है।

जैव प्रौद्योगिकी और जैव अर्थव्यवस्था में भारत की अग्रणी भूमिका
जैव प्रौद्योगिकी और जैव अर्थव्यवस्था में भारत की अग्रणी भूमिका की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि भारत डीएनए आधारित कोविड-19 वैक्सीन विकसित करनेवाला पहला देश बन गया है और यह वैक्सीन अनुसंधान और विकास में देश की अग्रणी भूमिका को दर्शाता है। इसके अलावा भारत ने सर्वाइकल कैंसर के लिए पहला हर्पीसवायरस वैक्सीन पेश किया है, जो निवारक स्वास्थ्य सेवा में अग्रणी देश के रूप में भारत की स्थिति को मजबूत करता है। भारत की जैव अर्थव्यवस्था 2014 में 10 बिलियन डॉलर से बढ़कर आज लगभग 140 बिलियन डॉलर हो गयी है और आनेवाले वर्षों में इसके 250 बिलियन डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है। बायोटेक स्टार्टअप की संख्या 2014 में केवल 50 थी और यह अब बढ़ कर लगभग 9,000 हो गयी है, जो भारत को बायोटेक नवाचार के लिए एक वैश्विक केन्द्र बनाता है। जैव-विनिर्माण में भारत अब एशिया-प्रशांत क्षेत्र में तीसरे स्थान पर और वैश्विक स्तर पर 12वें स्थान पर है और इस क्षेत्र में इसका प्रभाव तेजी से बढ़ रहा है।

इसरो और जैव प्रौद्योगिकी विभाग में समझौता
डॉ. सिंह ने कहा कि इसरो और जैव प्रौद्योगिकी विभाग ने अंतरिक्ष जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान को आगे बढ़ाने के लिए एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये हैं, जो दीर्घकालिक अंतरिक्ष मिशनों को बनाए रखने के लिए अंतरिक्ष में पौधे उगाने पर ध्यान केन्द्रित करता है। अंतरिक्ष चिकित्सा और ग्रहतीत वातावरण में मानव शरीर विज्ञान का अध्ययन अनुसंधान का एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र बन रहा है और भारत अब केवल उनका अनुसरण करने के बजाय वैश्विक मानक स्थापित कर रहा है। भारत का परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम, जिसे कभी संदेह की दृष्टि से देखा जाता था, अब अपने शांतिपूर्ण और संधारणीय महत्त्वाकांक्षाओं के लिए पहचाना जाता है। देश ने 2047 तक 100 गीगावाट परमाणु ऊर्जा का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है, जिसका उद्देश्य कार्बन उत्सर्जन को 50 प्रतिशत तक कम करना है, यह एक ऐसी प्रतिबद्धता है, जो वैश्विक जलवायु रणनीतियों को प्रभावित कर रही है। विश्व ने अब भारत की परमाणु नीति को स्वीकार कर लिया है, जिसकी परिकल्पना होमी भाभा ने शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए की थी, जो उत्तरदायी ऊर्जा विकास के लिए एक मॉडल है।

भारत की वैज्ञानिक उपलब्धियों को वैश्विक मान्यता
उन्होंने कहा कि भारत की वैज्ञानिक उपलब्धियों को वैश्विक मान्यता मिल रही है और अब हमारा देश वैज्ञानिक प्रकाशनों के मामले में विश्व में चौथे स्थान पर है। अनुमान है कि 2030 तक भारत संयुक्त राज्य अमेरिका को पीछे छोड़ कर वैज्ञानिक अनुसंधान में दुनिया का शीर्ष स्थान प्राप्त कर सकता है। उन्होंने कहा, ‘घड़ी 360 डिग्री घूम चुकी है। पहले हम दूसरों से सीखते थे, अब दुनिया हमारी तरफ देख रही है। ज्ञान का आदान-प्रदान दोनों ओर से हो रहा है।’

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