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BIHAR : …और खामोश हो गया मुंगेर का जहाज घाट, अब सिर्फ यादें ही बचीं

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कभी जहाज की आवाज से गंगा की अविरल धारा की कलकल ध्वनि तेज हो जाती थी। जहाज किनारे लगता तो एक तेज धारा घाट की ओर दौड़ते हुए लोगों को इसपर सवार होने को आमंत्रित करती थी। पर अब मुंगेर का जहाज घाट खामोश हो गया है…. गंगा नदी के पार कोसी-सीमाचंल सहित उत्तर बिहार से संस्कृति और सभ्यता को जोड़ने वाला वर्षों पुराना जहाज घाट अब यादों में सिमट गया है। नई पीढ़ी को पता भी नहीं होगा मुंगेर में जहाज घाट भी हुआ करता था। वर्षों पहले बिहार में गंगा पर कोई पुल नहीं था, तब गंगा पार जाने के लिए एकमात्र साधन पानी का जहाज ही हुआ करता था। मोकामा में गंगा नदी पर राजेंद्र सेतु बनने के बाद भी गंगा पार जाने के लिए मुंगेर के लोगों को नाव जहाज का साधन ही सुलभ लगा। भागलपुर में गंगा नदी पर विक्रमशिला सेतु निर्माण से पूर्णिया ,कटिहार जाने में यहां के लोगों को सुविधा हुई, लेकिन खगड़िया, बेगूसराय सहरसा, मधेपुरा जिलों में जाने के लिए लोग नाव जहाज का ही सफर करते रहे।

श्री कृष्ण सेतु के पहुंच पथ का लोकार्पण के बाद वीरान हुआ जहाज घाट

2016 में श्री कृष्ण सेतु से रेल का परिचालन शुरू होने पर लोगों को काफी सहूलियत हुई, लेकिन ट्रेन की संख्या कम होने व ट्रेन छूूटने पर लोगों के लिए नाव की उपयोगिता बनी रही। 11 फरवरी को श्री कृष्ण सेतु के पहुंच पथ का लोकार्पण होते ही 12 फरवरी से जहाज घाट पूरी तरह वीरान हो गया। मिथिलांचाल, कोसी और सीमांचल की संस्कृति और सभ्यता से था घाट का जुड़ाव -मुंगेर से ट्रेन सुविधा शुरू होने के बाद भी बनी रही जहाज घाट की उपयोगिता

हर दिन करीब पांच हजार से लोग करते थे गंगा पार

जहाज घाट में बीते 30 वर्षो से काम कर रहे कारेलाल यादव कहते है कि प्रतिदिन जहाज से करीब डेढ हजार लोगों की टिकटें हर एक ट्रिप पर कटती थी। दोनों तरफ से करीब पांच बार नाव अप-डाउन करता था। शहर के वाहन स्टैंड में कही से कोई गाड़ी आती तो रिक्शा या आटो वाले सवारियों को आइए बस स्टैंड कहकर बुलाते थे। पुल लोकार्पण होते ही वाहन स्टैंड में आइए जहाज घाट की आवाज भी बंद हो गई। गंगा पार दूसरी ओर मुंगेर घाट का नाम भी अबएनएफ. खगडिय़ा बस स्टैंड में सुनाई नहीं देगा। नाव या जहाज से गंगा पार करने के बाद लोग कंमाडर जीप से खगडिय़ा एनएच स्थित बस स्टैंड तक जाते थे, वहां जीप वाले लोगों को आइए मुंगेर घाट कहकर ही बुलाते थे।

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