Mumbai news, Bollywood news : संगीत की दुनिया बहुत व्यापक होती है। फिल्मी संगीत की अपनी विविधता के साथ सीमा भी होती है। भारतीय फिल्म इंडस्ट्री के संगीत क्षेत्र में जिन महान हस्तियों ने अपना झंडा बुलंद किया, उनमें सी रामचंद्र का नाम आज भी अमर है। उन्होंने कई फिल्मों के लिए संगीत तैयार किया। लेकिन, उनकी उपलब्धियां को अमरता एक गैर फिल्मी गीत से मिली। 1962 में चीन से भारत की हार के बाद पूरे देश में निराशा थी और अपने शहीद जवानों की श्रद्धांजलि के लिए एक गीत तैयार करने की बात थी। गीत तैयार किया कवि प्रदीप ने और उसका संगीत सी रामचंद्र ने। गीत को गाया लता मंगेशकर ने। वह गीत है- ए मेरे वतन के लोगों जरा आंख में भर लो पानी, जो शहीद हुए हैं उनकी जरा याद करो कुर्बानी।
नहीं दिया जाता था कुछ खास महत्व
नई दिल्ली के नेशनल स्टेडियम में 27 जनवरी, 1963 को हुए समारोह में लता मंगेशकर ने यह गीत गाया था। देश आज तक यह गीत गा रहा है। इस गीत के संगीतकार आज भी इसी के लिए सबसे ज्यादा याद किए जाते हैं। इस जीत का संगीत तैयार करने के पहले श्री रामचंद्र को संगीत की दुनिया में कोई खास महत्व नहीं दिया जाता था। इस गीत ने सी रामचंद्र के आलोचकों पर गंगा जल छिड़क दिया। सी रामचंद्र ने कभी आलोचकों की परवाह नहीं की।
खुद भी गाया गीत
इसके बाद श्री रामचंद्र के संगीत का जो सिलसिला शुरू हुआ वह आबाद गति से आगे बढ़ता गया। उनका ‘शोला जो भड़के’ (अलबेला) पहला फिल्मी गीत है, जिसमें क्लारनेट, बोंगो, ट्रम्पेट और सेक्साफोन जैसे पश्चिमी वाद्यों का बड़ी सूझ-बूझ से इस्तेमाल किया गया। ‘ईना मीना डीका’ में उन्होंने रॉक एंड रॉल के रंग बिखेरे। फिल्म संगीत में मेलॉडी (माधुर्य) के नजरिए से सी. रामचंद्र का वही ऊंचा मुकाम है, जो अनिल विस्वास, नौशाद, सचिन देव बर्मन और मदन मोहन का है। कहा जाता है कि ‘आजाद’ का एक गीत वे लता मंगेशकर और हेमंत कुमार की आवाज में रेकॉर्ड करना चाहते थे। हेमंत कुमार रेकॉर्डिंंग पर नहीं पहुंचे, तो यह गीत लता जी के साथ उन्होंने खुद गाया- ‘कितना हसीं है मौसम, कितना हसीं सफर है।’



