राजीव थेपड़ा
एक साथ रहते और जीते हुए दो व्यक्तियों के सुखों के रास्तों में अक्सर इतना ज्यादा अन्तर पाया जाता है कि एक व्यक्ति किसी और चीज में अपनी खुशियां ढूंढता है, तो दूसरा व्यक्ति किसी और चीज में। कोई व्यक्ति अपनी आर्थिक स्थिति का अनुमान नहीं करते हुए एक के बाद एक वस्तुएं खरीद कर प्रसन्न होता है या फिर अपने मनमाफिक स्थानों पर जाकर, अपने दोस्तों से या अन्य लोगों के साथ बैठ कर, हंस कर, बोल कर, नाच-गाकर भी, लेकिन जीवन में खुश होने का महज इतना-सा मतलब होता, तो हमारे आस-पास सदा खुशियां ही खुशियां बरसती रहतीं। लेकिन, जीवन के साथ मुश्किल यह है कि किसी को रोटी कमानी है, तो किसी को रोटी बेलनी है, लेकिन अगर रोटी कमानेवाला रोटी कमाने को अपनी टेंशन मान ले और रोटी बेलनेवाला रोटी बेलने को अपनी टेंशन मान ले, तब फिर सुख कहां से आ सकता है ??
घर की या व्यापारिक स्थल की जिम्मेदारियां हर किसी के जीवन में दिन भर की हुआ करती हैं, उन जिम्मेदारियों को पूरा करते हुए यदि हम कहीं और आ-जा सकें, अपने चाहनेवालों के निकट बैठ सके, अपने दोस्त यारों के साथ बैठ सकें, अपने वैसे रिश्तेदारों के साथ बैठ सकें, जो हमें पसंद करते हैं और अपने प्रेमियों के साथ बैठ सकें !! ऐसा जीवन में अक्सर हुआ करता है कि थोड़े समय के रिश्ते हमें बेहद प्यारे लगते हैं, क्योंकि वह रिश्ते उन रिश्तों में हम खेलते हैं बतियाते हैं, हंसते हैं, गाते हैं, खूब इंजॉय करते हैं। कुल मिला कर यूं कि उन रिश्तों में जिम्मेदारियों का कोई भाव नहीं होता, लेकिन घर के साथ के रिश्तों में ऐसा नहीं भी हो सकता है और घर में अक्सर हम बेवजह गंभीरता ओढ़े रहते हैं। यह गम्भीरता कभी-कभी इतनी ज्यादा होती है कि हमारा चेहरा भी मनहूस लगने लगे और हम वजह-बेवजह ही अपने साथ रहते लोगों के साथ झांय-झांय करते रहते हैं, गलत व्यवहार करते हैं, अपने बच्चों को लाउड स्वर में डांटते हैं, फटकारते हैं, अपनी पत्नी के साथ या पति के साथ रफ़ बिहेव करते हैं। यहां तक कि अपने सास और ससुर के साथ भी हमारा व्यवहार अक्सर मर्यादा की हद लांघ जाया करता है और ऐसे में रिश्ते बस किसी तरह से चरमराते हुए से चला करते हैं, क्योंकि एकदम से रिश्ते तोड़ देना !! तोड़ देने के खतरे भी तो बहुत है !!
…तो दोस्तों ! उसी तरह जिन्दगी में भी कई बार ऐसा भी होता है कि जीवन के किसी कोई पसंद आन पड़ता है और हमें उसका साथ अच्छा लगने लगता है ; चाहे हमारे 2-4 बच्चे क्यों न हो…चाहे हमारा भरा-पूरा परिवार क्यों न हो ! लेकिन, हमारा मन करने लगता है कि हम उस रिश्ते में बह जायें, जो हमें इन दिनों अच्छा लग रहा है !! …और, तब हमारा विवेक ही हमारी दिशा बनता है ! यदि हमारा दिल काम कर गया, तब तो विवेक की कोई आवश्यकता ही नहीं है। किन्तु दिमाग ने फटकारा कि नहीं भाई यह गलत है और ऐसा करने से सिर्फ दो जनों को खुशी होगी ; बाकी सब खराब ही खराब होगा और जीवन एक नयी तरह की कलह की जिन्दगी बन जायेगा और ऐसे में ही अक्सर हमारा दिमाग भी काम करना बंद कर देता है और हम वही करते हैं, जो हमारे खुद के रिश्तों को तार-तार कर देता है, हमारे परिवार को छिन्न -भिन्न कर देता है !!
दोस्तों !! आजादी तो हर कोई चाहता है सच तो यह है कि अपनी एकरस जीवनचर्या में हम सब बुरी तरह उबे हुए होते हैं और हमारी यही ऊब कुछ परिवर्तन चाहती है। हम जीवन में कुछ इंजॉय चाहते हैं और मुश्किल यह है कि इंजॉय के रास्तों को हम कभी-कभी गलत चुन लेते हैं, क्योंकि हर नयी चीज एक नयी तरह की खुशी देती है। लेकिन, काश ! हम यह जान सकें कि हर नयी चीज भी तो कुछ ही समय में पुरानी भी पड़ जाती है और उससे भी वैसे ही संताप मिलने शुरू हो जाते हैं। वैसे ही टेंशन मिलनी शुरू हो जाती है ; जैसा कि हमने कदापि नहीं चाहा और उसी के कारण हम उन नये रिश्तो में गये थे। देखा जाये, तो मेरा मानना यह है कि हम समूची एकरसता के बावजूद खुश रह सकते हैं, लेकिन हमारा ख्याल एक ही एक बात सोचता रहता है कि यह सब तो एकरस है !
रोज वही-वही सब कुछ, वही-वही सब कुछ…और बारम्बार यह खयाल ही हमारे भीतर एक ऊब पैदा कर देता है। सच तो यह है कि ऊब अपने आप में कुछ नहीं होती, किन्तु जब हम यह सोचना शुरू करते हैं कि यह सब एक-सा जो सब कुछ जो चल रहा है, उसे हमें छुटकारा चाहिए और छुटकारा मिल नहीं पाता, तब रिश्ते अंकुश लगने लगते हैं, तो जिन रिश्तो को आप इंजॉय कर सकते थे, आप उन्हें ही अब अंकुश समझने लगते हैं और यहीं से आपके दुख की शुरुआत होती है और आप अपने ही निर्मित उस दुख में फंस कर खुशी का जो रास्ता तलाश करते हो, वह आपको अंततः कहीं का नहीं रहने देता !! लेकिन, जब आप किसी भावदशा में बह रहे होते हो, तब आप का दिमाग इन सब चीजों को समझने से इनकार कर देता है और किसी के समझाये जाने पर आप उल्टा उस पर ही तलवार लेकर चढ़ बैठते हो !!
मेरे देखे ये हर तरह की बातें जीवन का एक अटूट हिस्सा है। यह रात, यह दिन, यह दुख, यह सुख, लेकिन हमारी मुश्किल यह है कि हम दिन को पकड़ कर बैठ जाना चाहते हैं। हम सुख को पकड़ कर बैठ जाना चाहते हैं…हम अपनी हंसीवाले पलों को पकड़ कर बैठ जाना चाहते हैं…हम अपने प्रेम में जिये हुए पलों को लेकर बैठ जाना चाहते हैं। लेकिन, दिक्कत यह है कि ऐसा होना नितांत असम्भव है। ऐसा इस धरती पर कभी हुआ नहीं और ना कभी होगा !!…तो हम एक असम्भव की तलाश करते हुए अपने आप स्वयं को ही दुख की गहरी खाई में गिरा लेते हैं और चिल्लाते हैं…बचाओ-बचाओ-बचाओ और जो हमें बचाने को तैयार होता है, वह खुद अक्सर अपने खुद के न्यस्त स्वार्थ के लिए तैयार होता है, लेकिन हम उसे अपना हितैषी समझ लेते हैं, अपना प्रेमी समझ लेते हैं और उसके साथ एक हो जाने के सपने देखने लगते हैं। ऐसे में क्या किया जा सकता है, आप खुद सोचो !!
मैंने इस विषय को बिन्दु दर बिन्दु आप सब के समक्ष प्रस्तुत किया है,आप इस पर ईमानदारी से सोचो कि इन बातों की कसौटी पर हम सब कहां खड़े हैं ? …और, हमें अपने रोजमर्रा के जीवन में अपनी तथाकथित ऊब के साथ में क्या व्यवहार करना चाहिए ? अपने एकांत के साथ में क्या व्यवहार करना चाहिए ? सच तो यह है कि आदमी के भीतर जब तक एक साक्षी भाव पैदा नहीं होता, तब तक वह दुखों की अंतहीन खाई में ही पड़ा रहता है !! ईश्वर की दया से कुछ सुख उसे मिलते हैं, तो वह सुख ही उसे जीवन लगने लगता है और उसका यह लगना अंततः उसके दुख का कारण बनता है !!
दोस्तों !! सोचिए ऊब क्या है ? सोचिए कि दुख क्या है ? सोचिए एकांत क्या है ? और तब सोचिए आप सब रिश्तों के पीछे जीते हैं, उसमें आप की उपयोगिता क्या है ? रिश्तों को जीवंत बनाने के लिए आपको अल्टीमेटली क्या करना चाहिए ? और जो लोग सिर्फ अपने ही आनन्द या अपने ही सैटिस्फैक्शन, अपनी ही खुशी की तलाश में इधर-उधर भटकते हैं और अपनों को कष्ट देते हैं, वह लोग अंततः खुद भी कष्ट पाते हैं, क्योंकि उन्हें कष्ट पाना ही है, क्योंकि जिस आनन्द के लिए वह अपनी दिशा बदल रहे हैं, उस दिशा को भी बस कुछ ही दिन में उसी भांति एक-रस हो जाना है और हम नहीं जानते कि हम सायास ही समय पूर्व यह यह जानने से इनकार कर देते हैं या जान-बूझ कर जानना ही नहीं चाहते, क्योंकि यह जानना हमें हमारे आनन्द के खिलाफ, बल्कि उससे भी ज्यादा अपने अहंकार के खिलाफ प्रतीत होता है !!
…तो दोस्तों ! सोचिए, समझिए और सब कुछ बहुत अच्छी तरह बहुत गहराई पूर्वक समझ कर किन्हीं भी रिश्तों कदम आगे बढ़ाइए। आप एक साथ सभी रिश्तों के साथ प्रेम कर सकते हैं, न्याय कर सकते हैं, सभी रिश्तों के साथ ईमानदारी बरत सकते हैं ; बस आपके कम से कम अपने आप के प्रति अपनी जिम्मेवारियों के प्रति अपने अन्दर ईमानदारी होनी चाहिए। इन सभी चीजों की सम्यकता को समझने की बस इतना काफी होगा !!…और, आख़िरी बात यह कि केवल सुख या आनन्द भर ही जीवन नहीं है। सभी के साथ अंततः इकसार भाव से निभाव ही जीवन है !!