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वैश्वीकरण के बाद बाजारवाद ने भाषा पर भी गहरा प्रभाव डाला है

वैश्वीकरण के बाद बाजारवाद ने भाषा पर भी गहरा प्रभाव डाला है

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Dhanbad News : कोलकाता में आयोजित दिनांक –  28 जनवरी  से 9 फरवरी तक 48 वें अंतरराष्ट्रीय पुस्तक मेला कोलकाता में बंगला भाषा को ध्रुपदी भाषा में शामिल होने पर आयोजित एक सेमिनार में  धनबाद से “शिल्पे अनन्या ” पत्रिका के संपादक  प्रो. डॉ.डी. के. सेन का वक्तव्य

कोलकाता में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय पुस्तक मेला में बिहार बंगाली समिति के द्वारा द्वारा नारायण सामान्यल हॉल में सेमिनार आयोजित किया गया। सेमिनार का विषय था ” बंगाल के बाहर रहने वाले बंगाली समुदाय को बांग्ला भाषा को ध्रुपदी भाषा में शामिल करने पर बंगालियों पर उसका प्रभाव ” इस सेमिनार में त्रिपुरा, असम, मेघालय, छत्तीसगढ़, बिहार , झारखंड, अंडमान, निकोबार और दिल्ली पश्चिम बंगाल के बड़े पैमाने पर बुद्धिजीवी , लेखक शामिल हुए साथ ही भारत ज्ञान विज्ञान समिति के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. काशी नाथ चटर्जी मौजूद थे।  सेमिनार  की अध्यक्षता बिहार बंगाली समिति के अध्यक्ष कैप्टन दिलीप सिंहा के द्वारा किया गया। संचालन  प्रोफेसर तन्मय वीर के द्वारा किया गया। सेमिनार में बांग्ला भाषा के प्रख्यात विद्वान केंद्रीय विश्वविद्यालय सिलचर असम के पूर्व कुलपति तपोधिर भट्टाचार्जी अपने वक्तव्य को रखते हुए कहा कि यह खुशी की बात है की बांग्ला भाषा को ध्रुपदी सम्मान मिला यही पहले ही मिल जाना चाहिए था बहुत देर से मिला। दुर्भाग्य की बात यह है  क्यों नहीं 1947 में जब देश आजाद हुआ तो उसका सबसे ज्यादा दुष्प्रभाव हमारे समुदाय पर पड़ा उनको अन्य जगह शरणार्थी के रूप में भाषाई संकट को झेलना पड़ा जो हम आज भी झेल रहे हैं। इससे निकलने की जरूरत है।  “शिल्पे अनन्या पत्रिका  ” के संपादक प्रोफेसर डी .के .सेन ने कहा की बांग्ला भाषा को यह सम्मान मिलना बहुत खुशी की बात है। धनबाद से त्रैमासिक बांग्ला भाषा “शिल्पे अनन्या पत्रिका “1977 से प्रकाशन जारी हैं। साथ – साथ धनबाद में अभी तक तीन लिटिल मैगजीन मेला का आयोजन कर चुके हैं। इसके साथ जामताड़ा में भी लिटिल मैगजीन मेला के आयोजन में सहयोग दिए हैं। हम सिर्फ लघु पत्रिका मेला में बांग्ला भाषा के साहित्य को ही नहीं रखते बल्कि तमाम क्षेत्रीय भाषाओं के विद्वानों को आमंत्रित करते हैं। वैश्वीकरण के बाद बाजारवाद ने भाषा पर भी प्रभाव डाला है आज दुनिया में भाषाओं पर संकट बढ़ा है। इस स्थिति में सभी भाषाओं के समन्वय से ही भाषा का विकास हो सकता है। सेमिनार में बांग्ला भाषा के पीएमओ के सलाहकार श्यामल भट्टाचार्य , बिहार से अजय सान्याल कोलकाता से नीतीश विश्वास ,बिहार से बिहार बंगाली समिति के सचिव विद्युत पाल ,छत्तीसगढ़ से दुलाल समाद्दार के साथ साथ दिल्ली और अन्य राज्यों के कई वक्ताओं ने अपनी बात रखी। धन्यवाद ज्ञापन करते हुए कप्तान दिलीप सिंहा ने कहा की देश में माइनॉरिटी दो प्रकार के होते हैं एक धार्मिक और दूसरा भाषाई हम बिहार में भाषाई अल्पसंख्यक है हमें उसका अधिकार मिलना चाहिए इसके लिए लगातार संघर्ष जारी रहेगा।

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