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अक्षय नवमी कल, सूत लपेट श्रद्धालु करेंगे एक सौ आठ बार आंवले की वृक्ष की परिक्रमा, जानिए खास बातें…

अक्षय नवमी कल, सूत लपेट श्रद्धालु करेंगे एक सौ आठ बार आंवले की वृक्ष की परिक्रमा, जानिए खास बातें…

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Motihari news : अक्षय नवमी पर्व रविवार को है। इस दिन आवंले की वृक्ष की पूजा होगी। इस कड़ी में श्रद्धालु स्नादि से निवृत होने के बाद आंवले के वृक्ष के नीचे पूजन करेंगे और जड़ में दूध की धारा गिराएंगे। साथ ही पेड़ के चारों ओर सूत लपेट कर आरती कर एक सौ आठ परिक्रमाएं करेंगे। कार्तिक शुक्लपक्ष नवमी को किया जाने वाला यह व्रत है।

गुप्त दान करने की भी है परंपरा

जानकारी देते हुए वेद विद्यालय के प्राचार्य सुशील कुमार पांडेय ने बताया कि यह व्रत करने से समस्त व्रत, पूजन, अनुष्ठान, तर्पन आदि का फल अक्षय हो जाता है। इसलिए इसे अक्षय नवमी भी कहते हैं। इस दिन कुष्मांड (भथुआ) के अंदर स्वर्ण या द्रव्य आदि रखकर गुप्त दान करने की भी परंपरा है। आज के दिन आंवले की छाया में ब्राह्मण भोजन करवाने के बाद अपने बंधु- बान्धवों के साथ भोजन करना चाहिए।

सृष्टि रचना से पहले ब्रह्मा ने आंवले को किया उत्पन्न

पौराणिक मान्यतानुसार, पूर्वकाल में जब सारा जगत जल में निमग्न हो गया था, समस्त चराचर प्राणी नष्ट हो गए थे। उस समय परमात्मा ब्रह्माजी परब्रह्म का जप करने लगे थे। ब्रह्म का जप करते करते उनके आगे श्वास निकला। साथ ही भगवत् दर्शन के अनुरागवश उनके नेत्रों से जल निकल आया। प्रेम के आंसुओं से परिपूर्ण वह जल की बूंद पृथ्वी पर गिर पड़ी। उसी से आंवले का महान वृक्ष उत्पन्न हुआ। ब्रह्मा ने पहले आंवले को उत्पन्न किया, उसके बाद समस्त प्रजा और सृष्टि की।

सभी वृक्षों में श्रेष्ठ है आंवले का वृक्ष

जब देवता आदि की सृष्टि हो गयी तब वे उस स्थान पर आए जहाँ आंवले का वृक्ष था। उसी समय आकाशवाणी हुई- यह आंवले का वृक्ष सब वृक्षों में श्रेष्ठ है, क्योंकि यह भगवान विष्णु को प्रिय है। प्राचार्य ने आगे बताया कि सर्वथा प्रयत्न करके आंवले के वृक्ष का सेवन करना चाहिए। क्योंकि यह भगवान विष्णु का परम प्रिय एवं सब पापों को नाश करने वाला है।

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