Dhanbad News : पर्यटन, कला संस्कृति, खेलकूद एवं युवा कार्य विभाग झारखंड सरकार के सांस्कृतिक कार्य निदेशालाय और कला निकेतन भूली के संयुक्त तत्वावधान में महाकवि कालिदास द्वारा विरचित संस्कृत नाटक ‘ उर्वशी ‘ का हिन्दी में रूपांतरित पूर्णकालिक नाटक का रविवार को उत्कृष्ट मंचन बशिष्ठ प्रसाद सिन्हा के निर्देशन में भूली के योग केन्द्र बी ब्लॉक में किया गया। यह नाटक श्रृंगार रस, वीर रस, हास्य रस एवम नृत्य – संगीत से ओतप्रोत पांच अंकों का है जिसे पात्रों के द्वारा प्रेम- प्रसंग की प्रगाढ़ता को जबरदस्त तरीके से मंचन किया गया।
नाटक की शुरुआत शास्त्रीय मंगला चरण से किया गया
नाटक का प्रारंभ शास्त्रीय मंगला चरण से किया गया। इसके बाद नाटक की शुरुआत की गई। एक बार की बात है कि स्वर्ग की अप्सरा ‘उर्वशी ‘ पृथ्वी लोक पर चित्रलेखा सहित अन्य सखियों के साथ आयी। तभी उर्वशी को केशी नामक दानव अपहृत कर लेता है। जब इस बात की जानकारी पृथ्वी के चंद्रवंशी राजा पुरूरवा मिली तो उसने केशी नामक दानव से मुक्त करा लाया । रास्ते में रथ का झटका खाने के कारण उर्वशी और पुरुरवा के शरीर से स्पर्श हो जाने के कारण दोनों के बीच अगाध प्रेम के बीज अंकुरित व स्फुटित हो जाते हैं। उर्वशी दिलभर कर पुरुरवा को देख नहीं पायी। एक तरफ़ उर्वशी पुरुरवा से मिलने के लिए उत्कंठित रहती है तो दूसरी तरफ़ पुरुरवा उर्वशी से मिलने के लिए व्याकुल है। इस बीच पुरुरवा का मित्र विदूषक बात – बात में हंसा – हंसा कर पुरूरवा मनोविनोद करता रहता है। उसे ज्ञात है कि हमारा मित्र उर्वशी से मिलने के लिए परेशान है।
उर्वशी भी प्रेम की ज्वाला में धधकी हुई थी
इधर उर्वशी भी प्रेम की ज्वाला में धधक हुई भोज पत्र पर प्रेम गाथा लिखकर अपनी सखी से भेजवा देती है। बाद में वह भोज पत्र कहीं खो जाता है । इसी क्रम में राजा पुरुरवा की पहली पत्नी (काशी नरेश की पुत्री) महारानी जब मनुप्रसादन व्रत धारण कर पूजा के लिए जा रही थी, तभी रास्ते में वह भोज पत्र मिल जाता है। इसमें उर्वशी और पुरुरवा के बीच प्रेम प्रसंग की बातें लिखी थीं। पत्र पढ़कर आगबबूला होकर पकड़े गए चोरी के माल के साथ पुरुरवा से मिलने चली जाती है। फिर रुष्ट होकर वापस लौट जाती है। उधर, उर्वशी और पुरुरवा में अगाध प्रेम स्थापित हो जाता है। बाद में राजा पुरुरवा अपने मंत्रियों को राजपाट सौंपकर उर्वशी के साथ विहार करने के लिए गंधमादन वन में चले जाते हैं। जहां विद्याधर कन्या वन में रेत का पर्वत बनाकर खेल रही थी । तभी पुरुरवा अपलक दृष्टि से निहारते हुए विद्याधर के पीछे – पीछे जाने लगते हैं। उन दृश्यों को देखकर उर्वशी नाराज होकर चली जाती है और कुमार वन में प्रवेश करती है जहाँ वह लता बन जाती है, क्योंकि भरत मुनि ने शाप दिया था कि जो भी स्त्री कुमार वन में प्रवेश करेगा, वह लता बन जाएगा। इधर उर्वशी के वियोग में पुरूरवा पेड़ – पौधे, जीव – जन्तु, पशु -पक्षी से उर्वशी का पता पूछते हैं। जब कोई कुछ नहीं बताता है तो वह उर्वशी के वियोग में अर्धविक्षिप्त हो जाता है। इस बिछुड़न की विरह वेदना के उत्पन्न दृश्यों से पुरूरवा के मन मस्तिक को झकझोर कर रख देता है।
इंद्र के आशीर्वाद है दोनों का मिलन हो जाता है
घटना क्रम में एक दिन पुरूरवा को संगमनीय मणि की प्राप्ति होती है।देवराज इंद्र का आशीर्वाद था कि जो इस मणि को प्राप्त कर कुमार वन में प्रवेश कर लता से स्पर्श करेगा तो उसकी खोयी हुई पत्नी प्राप्त हो जायेगी। पुरूरवा संगमनीय मणि को लेकर कुमार वन में प्रवेश करता है। एक लता में उर्वशी की आभाकृति दिखाई देती है। जब मणि से लता का स्पर्श होता है तो वही लता उर्वशी बन जाती है। इंद्र के आशीर्वाद के कारण दोनों का मिलन हो जाता है । फिर दोनों के शारीरिक संबंध से च्यवन ऋषि के आश्रम में आयु नामक पुत्र का जन्म होता है। आश्रम में आयु की शिक्षा – दीक्षा होती है। इसकी जानकारी पुरूरवा को नहीं होती है। च्यवन ऋषि के आश्रम में आयु ने माँस का टुकड़ा लिए पक्षी को अपना शिकार बना डाला। इससे आहत होकर ऋषि ने तापसी को आदेश दिया कि उर्वशी के पुत्र आयु को उर्वशी के पास पहुंचा दो । अंत में उर्वशी, पुरुरवा और आयु का मिलन होता है । और उसी समय आयु का राज्याभिषेक होता है। फिर इंद्र स्वर्ग की अप्सरा उर्वशी को हमेशा पुरूरवा के साथ रहने का वचन देते हैं। अंत में नाटक का समापन राष्ट्र की रक्षा के लिए योग संतति आयु नामक प्रतापी पुत्र के राज्याभिषेक से होता है।
नाटक में जीवंत अभिनय करने वाले कलाकारों में सुश्री शैव्या सहाय, आकाश सहाय, दीपक पंडित, क्रान पासवान, धर्मवीर कुमार, नित्या सहाय, कुलसुम, प्रेम कुमार, राकेश कुमार, रिया कुमारी गुप्ता, मुस्कान सिन्हा, दिव्या सहाय, अनुराधा श्रीवास्तव, सतीश पासवान, निशांत कुमार, मुरलीधर महतो, अंकित कुमार, प्रथम कुमार, नूतन सिन्हा आदि हैं ।
इस नाटक का उद्घाटन विधायक राज सिन्हा ने किया।