राजीव थेपड़ा
रोज ऐसी ऐसी घटनाएं होती हैं कि मन कलप कर रह जाता है, लेकिन कुछ नहीं कर पाते हम ! क्योंकि, बहुत बार हम लगातार यह देखते हैं कि अनेक-अनेक ऐसी लोमहर्षक घटनाओं में, जब मनुष्यता को सबसे बड़ी सहायता की आवश्यकता होती है, उस आपदा भरे समय में भी लोग बजाय सहायता करने के और ज्यादा ही लूटने का काम करते हैं लोगों को और ऐसे में यह त्रासदी और भयावह हो जाती है। क्योंकि, एक ओर जहां उन आपदाओं से त्रस्त और पीड़ित लोग सहायता के लिए पागलों की तरह मनुहार कर रहे होते हैं, उसी वक्त कुछ स्वार्थी और लालची तत्त्व उनके साथ ठीक इसका उल्टा सुलूक कर रहे होते हैं ! ऐसे में जबकि संवेदना से आत्मा कलप जाये ! उस वक्त भी लोग ऐसा मार्मिक कृत्य करते हैं कि कलेजा कांप-कांप जाता है कि क्या कोई इतना भी पत्थर हो सकता है ? क्या कोई ऐसा भी राक्षस हो सकता है ? लेकिन, कुछ लोग ही नहीं, अपितु एक पूरा समाज ऐसी हरकतों में निमग्न रहता है, जिसे अपनी आंखों से देख कर भी विश्वास करने को जी नहीं होता !!
हमारे स्वार्थों से भरी…हमारी नीचता से भरी ये सारी घटनाएं इस बात की स्पष्ट परिचायक हैं कि हम वास्तव में इंसान हैं कि लम्पट हैं…धूर्त हैं कि मक्कार हैं…ठग हैं कि नटवरलाल हैं, या फिर ये सारी संज्ञाएं भी हमारे ऊपर फिट नहीं बैठतीं !
मैं बरसों से अपने और अपने से दूरस्थ क्षेत्रों के सामाजिक परिवेशों का अध्ययन करता रहा हूं, जिसमें मुझे साफ-साफ यह परिलक्षित होता है कि हम सब के सब कहीं ना कहीं बेईमान हैं और मनुष्यता के ऊपर कलंक भी हैं। क्योंकि, जब-जब मनुष्य को और मनुष्यता को हमारी जरूरत होती है, तब-तब हम उसके काम आने के बजाय उसके ऊपर एक और बड़ा कलंक बन जाते हैं।
हमारे रोजमर्रा के जीवन में यह बेईमानी पूरी तरह से रच-बस चुकी है। सीधे-सीधे अपराधों की तो बात ही छोड़िए, हम हमारी व्यवस्था में जिस तरह से लीगली वर्क करते हुए भी तरह-तरह की मोनोपोली या अन्य हथकण्डों के तहत जिस प्रकार के लाभ बटोरते हैं या बटोरना चाहते हैं, वह अपने आप में हमारा चरित्र बखान करने के लिए काफी है और तरह-तरह की आपदाओं में, जबकि मनुष्य को मनुष्य की सबसे ज्यादा जरूरत होती है, तब भी उनकी जानमाल के साथ खिलवाड़ करते हुए हम जिस प्रकार चीजों की कालाबाजारी करते हैं और सामान्य दिनों में जिस प्रकार जरूरत की तमाम चीजों में तरह-तरह की मिलावट कर आदमी के जीवन को लीलते हैं, उससे हमारे सभ्य होने की कोई गुंजाइश तो बचती भी नहीं !
एक डॉक्टर के रूप में हमारे कुल कृत्य, जो किसी मरीज की जान तक लें-लें और जो किसी मरीज को अपनी ऑपरेशन टेबल पर अपने शोध का हिस्सा बना लें और तरह-तरह की जांच लिख दें और तरह-तरह की मेडिसिंस लिख दें और उन सब में उसका कमीशन हो ! एक ठेकेदार के रूप में हम ऐसे पुल बनायें…ऐसी बिल्डिंग बनायें…ऐसे इंफ्रास्ट्रक्चर बनायें…जो पल भर में धराशाई हो जायें और न जाने कितने ही लोगों की जान चली जाये ! एक इंजीनियर के रूप में हम सब से मिलीभगत करके कुछ भी घालमेल कर लें…एक नेता के रूप में हम जनता को सौ-सौ बार, हजारों-हजारों बार धोखा दें और उसके धन पर न केवल राज करें, अपितु उनके अधिकारों को भी खा जायें ! उनके हिस्से की योजनाओं को खा जायें… उनके हिस्से के लाभ में भी अपना हिस्सा बांट लें और न जाने किस-किस तरह की कमीशनखोरी हमारे सभ्यतागत जीवन में…पानी में इस भांति नमक की तरह शामिल हो चुकी है कि उसे अब पृथक करना भी असम्भवप्राय जान पड़ता है !
यानी अपने लाभ के लिए…अपने स्वार्थ के लिए हम कुछ भी कर सकते हैं…किसी की जान तक ले सकते हैं ! ऐसे न जाने जीवन के हर क्षेत्र के कितने ही किस्से हैं, जिनका कहते हुए अंत ही ना आये, तो ऐसे में आदमी को सभ्य मानना मेरी नज़र में सबसे बड़ी असभ्यता है !!
मेरी नजरों में हर वह आदमी सबसे बड़ा दुष्ट है, जो अपने परिवार से लेकर अपने समाज तक किसी का भी उसका मानसिक शोषण करने से, आर्थिक शोषण करने से, दैहिक शोषण करने से नहीं चूकता !! ऐसा आदमी भला सामाजिक कहलाने के योग्य कैसे हुआ ?? लेकिन, फिर भी कहने को हमारी चारों तरफ आदमी का समाज है और मजा यह कि हम सब एक-दूसरे को लूटते चले जाते हैं…खसोटते चले जाते हैं…मानसिक शोषण करते हैं…आर्थिक शोषण करते हैं ! यहां तक कि छोटी-छोटी बच्चियों तक को नहीं छोड़ते हैं ! …और तो और, यहां तक कि हम उनके अंगों का व्यापार करते हैं ! उन्हें बेचने का काम करते हैं !!
फिर भी हम सब अपने आप को किस प्रकार सभ्य कहे जाते हैं ? कैसे तो मनुष्य कहते हैं ? यह भी मेरी समझ से बाहर है ! कहने को तो बहुत कुछ है, लेकिन कितना कुछ लिखा जाये ! थोड़े लिखे को ज्यादा समझिएगा और अपने-आप के भीतर झांक कर देखिएगा कि हम सब वह चोर हैं, जिन्हें अवसर नहीं मिलता और जब जिन्हें जैसा अवसर मिलता है, वह अपनी औकात के अनुसार चोरी या डकैती कर अपना घर भर लेता है और उसके बाद भी भला व शरीफ बना रहता है, क्योंकि चोर तो वही है, जो पकड़ा जाये ! है कि नहीं…?
एक बेहद परेशान आत्मा…ग़ाफ़िल ग़ाफ़िल !