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संगठन चुनाव को लेकर भाजपा की बैठक, फरवरी तक नया पार्टी अध्यक्ष मिलने की उम्मीद

संगठन चुनाव को लेकर भाजपा की बैठक, फरवरी तक नया पार्टी अध्यक्ष मिलने की उम्मीद

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New Delhi news : भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के संगठनात्मक चुनाव को लेकर पार्टी मुख्यालय में रविवार को समीक्षा बैठक हुई। बैठक मंडल, जिला और प्रदेश पदाधिकारियों के चुनाव पर केंद्रित रही। इसके अलावा प्रदेश अध्यक्षों के चुनाव की प्रक्रिया की समीक्षा भी की गई। भाजपा का लक्ष्य 15 जनवरी तक 50% राज्यों में मंडल, जिला और प्रदेश स्तर के पदों पर चुनाव पूरे कराने का है।

क्या कहता है भाजपा का संविधान

भाजपा के संविधान के मुताबिक कम से कम आधे राज्यों में संगठनात्मक चुनाव हो जाने के बाद ही राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव हो सकता है। भाजपा के संविधान के मुताबिक पार्टी अध्यक्ष का कार्यकाल 3 साल का होता है। इस लिहाज से मौजूदा अध्यक्ष जेपी नड्डा का कार्यकाल 2023 में खत्म हो चुका है। लोकसभा और विधानसभा चुनावों को देखते हुए उनका कार्यकाल बढ़ाया गया था।

पद के लिए आयु सीमा तय की, युवाओं को अहमियत

पार्टी संगठन में युवाओं को महत्व देने के लिए आयु सीमा तय कर चुकी है। इसके लिए जिलों के भीतर बनाए जाने वाले मंडल अध्यक्ष की आयु 35 से 45 वर्ष के बीच निर्धारित की गई है। इसके अलावा दो बार मंडल अध्यक्ष रहने वालों को तीसरी बार मंडल अध्यक्ष का पद नहीं दिया जाएगा। वहीं, जिलाध्यक्ष की आयु 45 से 60 वर्ष के बीच होगी। जिलाध्यक्ष के लिए संगठन में 7 से 8 साल तक काम करने का अनुभव भी जरूरी किया गया है। इसके अलावा भाजपा ने तय किया है कि मौजूदा समय में संगठन में किसी पद काम कर रहे व्यक्ति को ही जिलाध्यक्ष बनाया जाएगा।

अक्टूबर में नियुक्त हुए थे चुनाव अधिकारी

भाजपा ने महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनावों के एलान के दिन (15 अक्टूबर) ही पार्टी के आंतरिक चुनावों के लिए अधिकारी नियुक्त किए थे। पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने तेलंगाना से राज्यसभा सांसद डॉ. के लक्ष्मण को राष्ट्रीय चुनाव अधिकारी बनाया था। लक्ष्मण 2020 से ओबीसी मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। राष्ट्रीय अध्यक्ष को लेकर भी इनके नाम की चर्चा थी, लेकिन राष्ट्रीय चुनाव अधिकारी बनाए जाने के बाद इन अटकलों पर विराम लग गया था। इसके अलावा नरेश बंसल, रेखा वर्मा, संबित पात्रा को राष्ट्रीय सह चुनाव अधिकारी बनाया गया था। पार्टी के सभी राष्ट्रीय महासचिवों और दूसरे पदाधिकारियों को अलग-अलग राज्यों का पर्यवेक्षक नियुक्त किया गया था।

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