नेताओं की बयानबाजी से मुश्किल में रही है भाजपा, संघ पर नड्डा की बात से नुकसान, भागवत के बयान से बिहार में हुआ था घाटा
New Delhi news : डॉ. आंबेडकर पर संसद में गृहमंत्री अमित शाह द्वारा दिये गये बयान को कांग्रेस समेत अन्य भाजपा विरोधी दलों ने एक मौके की तरह लपक लिया है। उन्हें लगता है कि इस मुद्दे पर भाजपा को घेरा जा सकता है। लिहाजा लगातार मामले को तूल दिया जा रहा है। बवाल बढ़ता ही जा रहा है। विपक्ष आक्रामक है और फ्रंटफुट पर बैटिंग कर रहा है जबकि भाजपा रक्षात्मक मुद्रा में बैकफुट पर है। पूरे प्रकरण में आज संसद परिसर में दोनों पक्षों के बीच हुई धक्कामुक्की से एक नया मोड़ आ गया है। दोनों पक्ष इस घटना को अपने हक में इस्तेमाल करने को प्रयासरत हैं, लेकिन सवाल है कि क्या अमित शाह का आंबेडकर को लेकर दिया बयान भाजपा की मुश्किलें बढ़ा सकता है ? पार्टी को चिंता इस बात की लगती है कि विपक्ष दिल्ली व बिहार विधानसभा चुनाव में इसे हथियार बना सकता है।
बहस संविधान पर चले और आंबेडकर का जिक्र न हो, ऐसा संभव ही नहीं है। संविधान पर संसद में बहस चली तो सत्ता पक्ष और प्रतिपक्ष ने एक दूसरे को निशाने पर लेने में तनिक भी कसर नहीं छोड़ी। बहस में पीएम मोदी से लेकर गहमंत्री अमित शाह तक ने हिस्सा लिया। भाजपा अपरहैंड में दिख रही थी। पर शाह के एक बयान ने भाजपा को असहज कर दिया। अब इसे लेकर देश भर में बहस छिड़ी हुई है। राजनीतिक विश्लेषक इसके नफा-नुकसान का आकलन करने में जुट गए हैं। अगले साल दिल्ली और बिहार में विधानसभा चुनाव होने हैं। पहले भी भाजपा के सामने ऐसे मौके आए हैं जब उसे उसके नेताओं के बयान ने उलझन में डाल दिया है। एक मौका तो हाल ही में संपन्न लोकसभा चुनाव के दौरान आया जब भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने यह कह दिया कि पार्टी को अब आरएसएस की बैशाखी की जरूरत नहीं है। भाजपा को कभी इसकी जरूरत होती थी, लेकिन अब पार्टी इतनी मजबूत हो चुकी है कि उसे किसी सहारे की आवश्यकता नहीं। इसका नतीजा सबके सामने है। लगातार दो चुनावों में आगे बढ़ती रही भाजपा की चुनावी सफलता को ब्रेक लग गया और उसे 240 सीटों पर सिमटना पड़ा।
भाजपा को एक और बयान की महंगी कीमत चुकानी पड़ी थी। 2015 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान संघ प्रमुख मोहन भागवत ने आरक्षण को लेकर एक बयान दिया। उन्होंने कहा कि आरक्षण की समीक्षा का वक्त आ गया है। भाजपा की धुर विरोधी पार्टी आरजेडी के अध्यक्ष लालू यादव उनके बयान को ले उड़े। उन्होंने प्रचारित किया कि भाजपा आरक्षण खत्म करना चाहती है। नतीजा यह हुआ कि बिहार में भाजपा को तब मुंह की खानी पड़ी थी। विपक्ष को पता है कि संविधान और आरक्षण ऐसे मसले हैं जिन पर राजनीति का रंग शाश्वत रूप से चढ़ा रहता है। इस पर बयान इतने संवेदनशील होते हैं कि तनिक चूक हुई तो बयान देने वाले को इसका खामियाजा भुगतना पड़ जाता है। लोकसभा में संविधान पर बहस के दौरान गहमंत्री शाह ने कुछ गलत नहीं कहा है, लेकिन उनके अंदाज से भाजपा की मुश्किलें बढ़ गई हैं। शाह ने कहा था- ‘अभी एक फ़ैशन हो गया है… आंबेडकर, आंबेडकर, आंबेडकर, आंबेडकर। इतना नाम अगर भगवान का लेते तो सात जन्मों तक स्वर्ग मिल जाता।’ शाह का आशय यह था कि आंबेडकर का नाम तो जपते हैं, लेकिन उनके संविधान पर भरोसा नहीं करते। बाद में शाह को प्रेस कान्फ्रेंस कर अपनी बातें स्पष्ट करनी पड़ीं। उन्होंने कहा कि जिस कांग्रेस ने आंबेडकर की उपेक्षा की, उन्हें भारतरत्न नहीं दिया, उनके नाम की माला जपने का क्या औचित्य है। शाह के बयान के बाद पूरा विपक्ष भाजपा पर हमलावर है। अनुमान है कि दिल्ली और बिहार विधानसभा चुनावों में विपक्ष इसे हथियार बना कर भुनाने की कोशिश करेगा।