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रण बीच चौकड़ी भर-भर कर चेतक बन गया निराला था, राणा प्रताप के घोड़े से…

रण बीच चौकड़ी भर-भर कर चेतक बन गया निराला था, राणा प्रताप के घोड़े से…

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New Delhi news : आप सोच रहे होंगे कि अचानक बचपन में पढ़ी गई एक कविता का जिक्र क्यों होने लगा। जो कविता जीवन में शौर्य भर दे, उसका जिक्र हमेशा होते रहना चाहिए। जरूरी यह है कि उस कविता के केंद्र में है क्या। हिंदी के जाने-माने कवि श्याम नारायण पांडे ने अपने महाकाव्य ‘हल्दीघाटी’ में मुगल सेना और महाराणा प्रताप के बीच हुई लड़ाई को केंद्र बनाया है। इसके बारहवें खंड में महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक का जिक्र है कि वह युद्ध भूमि में क्या कर रहा था। वह जो कर रहा था, वह महाराणा प्रताप के इतिहास का अद्भुत हिस्सा है।

हवा के वेग को भी मात देता था चेतक

कवि कहता है कि चेतक युद्ध के मैदान में इस छोर से उस छोर तक मतवाला होकर चौकड़ी भर रहा था। अपनी फुर्ती और चुस्ती मे वह एक दम निराला था। वह हवा के वेग से भी तेज गति से दौड़ लगा रहा था। ऐसा लगता था मानो हवा और चेतक में प्रतियोगिता ठन गई हो। क्या चेतक आज हमें कोई प्रेरणा नहीं दे रहा है। देश के लिए त्याग बलिदान और साहस की प्रेरणा ही चेतक और महाराणा प्रताप के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है।

वीरता की भावना का सम्मान

महाराणा प्रताप राजस्थान के मेवाड़ का राजा थे। उन्होंने मेवाड़ की रक्षा के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया। लेकिन, मेवाड़ के आत्मसम्मान की रक्षा की हल्दीघाटी के युद्ध में अकबर की सेना से पराजित होने के बाद भी वह हमारे नायक हैं। यह समझने के लिए हमें अकबर और राणा प्रताप के बीच के संबंध को भी देखना चाहिए। यह संबंध केवल दो राजाओं की लड़ाई का ही संबंध नहीं है, बल्कि इसमें वीरता की पहचान की भावना भी छुपी हुई है।

कभी बंदी नहीं बना सका अकबर

यह जानकर आपको आश्चर्य होगा कि महाराणा प्रताप की 7 फीट 5 इंच लंबाई, 110 क‍िलो वजन। 81 किलो का भारी-भरकम भाला और छाती पर 72 किलो वजनी कवच उनकी बिल्कुल अलग पहचान थी। 30 सालों तक लगातार कोशि‍श के बाद भी अकबर उन्‍हें बंदी नहीं बना सका।  वह प्रताप उदय सिंह द्वितीय और महारानी जयवंता बाई के सबसे बड़े पुत्र थे। कहा जाता है क‍ि महाराणा प्रताप के पास हमेशा 104 किलो वजन वाली दो तलवार रहा करती थीं। महाराणा दो तलवार इसल‍िए साथ रखते थे क‍ि अगर कोई निहत्था दुश्मन मिले तो एक तलवार उसे दे सकें, क्योंकि वे निहत्थे पर वार नहीं करते थे।

भारतीय इतिहास का देदीप्यमान नक्षत्र

भारतीय इतिहास के आसमान में देदीप्यमान नक्षत्र के रूप में महाराणा प्रताप का नाम कल भी था, आज भी है और आगे भी रहेगा। भारत का मध्यकालीन इतिहास बड़े आक्रमणों का इतिहास माना जाता है। इस काल में बाबर द्वारा मुगल वंश की स्थापना और भारत पर लंबे समय तक शासन को कई दृष्टियों से देखा जाता है। मुगल शासन के दौरान अकबर को सबसे उदार राजा कहा जाता है। उसे महान भी कहा जाता है। इसके अकबर की सेना से लड़ने वाले सबसे महान योद्धाओं में महाराणा प्रताप का नाम आता है। 1576 में हुई हल्दीघाटी की लड़ाई की लड़ाई में अकबर की सेवा से हारने के बाद भी महाराणा वाकई महान है, इससे कोई इनकार नहीं कर सकता।

अकबर के मन में थी अटूट सम्मान की भावना

हां यह याद जरूर रखिए भारत के इतिहास में अकबर की महानता को न मानने वालों की अपनी दृष्टि हो सकती है और इसमें कोई बुराई भी नहीं है लेकिन महाराणा प्रताप का इतिहास भारतीय इतिहास का एक गौरव खंड है और इसका प्रमाण यह है कि उनके समय के इतिहास की भी यह एक सच्चाई है की हल्दीघाटी की लड़ाई में महाराणा प्रताप की हार और उनके निधन के बाद अकबर की आंखें नम हो गई थीं, इसका मतलब यह है कि अकबर के मन में महाराणा प्रताप के प्रति अटूट सम्मान की भावना थी।

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