Saharsa news : डॉ. रहमान चौक स्थित ब्रज किशोर ज्योतिष संस्थान के संस्थापक ज्योतिषाचार्य पंडित तरुण झा जी ने बताया कि छठ महापर्व की लोकप्रियता आज देश-विदेश तक देखने को मिलती है। यह व्रत कठिन व्रतों में एक है। इसमें पूरे चार दिनों तक व्रत के नियमों का पालन करना पड़ता है और व्रती पूरे 36 घंटे का निर्जला व्रत रखती हैं। छठ पूजा में नहाय खाय, खरना अनुष्ठान, अस्ताचलगामी और उदयगामी अर्घ्य का विशेष महत्व होता है।
बुधवार को होगा खरना का अनुष्ठान
1) पहला दिन- नहाय खाय, 5 नवंबर, मंगलवार
2) दूसरा दिन- खरना, 6 नवंबर, बुधवार
3) तीसरा दिन- अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य, 7 नवंबर गुरुवार, संध्या अर्घ्य- 05.27 मिनट से पहले
4) आखिरी दिन- उदयगामी सूर्य को अर्घ्य, 8 अक्टूबर शुक्रवार, प्रातः अर्घ्य -06.34 मिनट
पर्व का नियम है इस प्रकार
ज्योतिषाचार्य ने कहा कि कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को स्नानादि से निवृत होने के बाद ही भोजन ग्रहण किया जाता है। इस अनुष्ठान को नहाय-खाय भी कहा जाता है। इस दिन कद्दू भात का प्रसाद खाया जाता है। कार्तिक शुक्ल पंचमी के दिन संध्या में खरना करें, खरना में खीर और बिना नमक की पूरी आदि को प्रसाद के रूप में ग्रहण करें। खरना के बाद निर्जला व्रत शुरू हो जाता है। कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन भी व्रती उपवास रहती है और शाम नें किसी नदी, तालाब, पोखर में जाकर डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। यह अर्घ्य एक बांस के सूप, कोनिया में फल, ठेकुआ प्रसाद, ईख, नारियल आदि को रखकर दिया जाता है। कार्तिक शुक्ल सप्तमी की सवेरे को उदीयमान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है, इस दिन छठ व्रत संपन्न हो जाता है और व्रती व्रत का पारण करती हैं।
छठ पूजा का महत्व
छठ पर्व श्रद्धा और आस्था से जुड़ा होता है, जो व्यक्ति इस व्रत को पूरी निष्ठा और श्रद्धा से करता है उसकी मनोकामनाएं पूरी होती है। छठ व्रत, सुहाग, संतान, सुख-सौभाग्य और सुखमय जीवन की कामना हेतु किया जाता है,मान्यता है कि आप इस व्रत में जितनी श्रद्धा से नियमों और शुद्धता का पालन करेंगे छठी मईया आपसे उतनी ही प्रसन्न होंगी।