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माटी की मूरत – ये जीवन

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डाॅ . आकांक्षा चौधरी 

माटी की है मूरत गढ़ी

माटी में ही मिल जानी है।

राख़ है मात्र अवशेष यहां

पवन, व्योम, आत्मा, पानी है।।

शून्य है सब, आकाश में खोया

इतनी ही सबकी कहानी है।

बिछुड़न, पीड़ा, आर्त, व्यथा

आंखों से बहता पानी है।।

स्वार्थ, मोह, काम और अर्थ- 

बस यहीं धरी रह जानी हैं।

होंगी नयी कोंपलें विकसित- 

प्राचीरें वही पुरानी हैं।। 

मरण से फिर पुनर्जीवन

मोक्ष प्राप्ति किसने जानी है !

जीवन एक प्रश्न, उत्तर दिगंत

शेष अनंत में लीन हो जानी है।।

वंदन है महामाया तेरा

तू ही दुर्गतिनाशिनी है। 

हे मां, कृपा बरसाओ जरा

तेरी सृष्टि बड़ी सुहानी है।।

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