New Delhi news : दिल्ली हाईकोर्ट ने एक पारिवारिक विवाद का निपटारा करते हुए अहम टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि किसी मुस्लिम शख्स से शादी कर लेने मात्र से किसी महिला का हिन्दू से इस्लाम में अपने आप धर्मांतरण नहीं हो जाता। जस्टिस जसमीत सिंह एक व्यक्ति की पहली पत्नी की बड़ी बेटी द्वारा उनकी दूसरी पत्नी के दो बेटों के खिलाफ संपत्ति बंटवारा विवाद की सुनवाई कर रहे थे, जिसमें उन्होंने यह टिप्पणी करते हुए याचिकाकर्ता महिला को पिता की संपत्ति में से 1/5वां हिस्सा देने का आदेश दिया।
दरअसल, पुष्पलता नामक महिला ने 2007 में अपने सौतेले भाइयों के खिलाफ संपत्ति विवाद में मुकदमा दायर किया था। पुष्पलता अपने पिता की पहली पत्नी की सबसे बड़ी बेटी है। उसके पिता ने दूसरी शादी की थी। दूसरी पत्नी से हुए दोनों बेटे पिता की संयुक्त संपत्ति बेच रहे थे। इस पर पुष्पलता ने आपत्ति जताई थी और उसने हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 के तहत 1/5वां हिस्सा की मांग की थी। दिसंबर 2008 में, मुकदमा लंबित रहने के दौरान उसके पिता की मृत्यु हो गई।
लाइल लॉ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, जज ने अपने आदेश में यह भी कहा कि ऐसे सबूतों के अभाव में, केवल विवाह के आधार पर धर्म परिवर्तन का दावा स्वीकार नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने कहा कि चूंकि महिला ने अपना धर्म नहीं बदला है, इसलिए वह एचयूएफ संपत्तियों में अपने हिस्से पर दावा ठोकने की हकदार है। संपत्तियों के अलावा बेटियाँ एचयूएफ के नाम पर पीपीएफ खाते में जमा राशि में भी प्रत्येक में से 1/5 हिस्सा पाने की हकदार हैं।