Dharm-Adhyatm : भारतीय संस्कृति में हिंदी कैलेंडर के अनुसार, हर महीने में अमावस और पूर्णिमा की स्थिति बनती है। हिंदी कैलेंडर में यह बताया गया है कि हिंदी का नया महीना चैत शुरू होने के ठीक पहले पीछे के साल का अंतिम महीना फाल्गुन होता है। इसी महीने में होली मनाई जाती है और होली के पहले फाल्गुन पूर्णिमा का पूजा-पाठ और दान-पुण्य की दृष्टि से जीवन में बड़ा महत्व होता है। अतः आज हम आपको फाल्गुन पूर्णिमा की तिथि, उसकी पूजा और उसके महत्व की जानकारी दे रहे हैं।
भगवान विष्णु की करें पूजा
ज्योतिष आचार्य बताते हैं कि प्रत्येक पूर्णिमा का दिन विशेष रूप से भगवान विष्णु की पूजा के लिए समर्पित होता है। उन्हें इस दिन पूजा करने से भक्तों को अनंत पुण्य की प्राप्ति होती है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा के बारे में माना जाता है कि उनकी पूजा से दरिद्रता दूर होती है और आय, सुख, समृद्धि, और सौभाग्य में वृद्धि होती है। श्रीसत्यनारायण पूजा का आयोजन भी इस दिन विशेष रूप से किया जाता है।
पूजा की तिथि और विधि
फाल्गुन पूर्णिमा तिथि 13 मार्च को सुबह 10:35 बजे से शुरू होकर 14 मार्च, दोपहर 12:23 बजे पर समाप्त हो रही है। 14 मार्च को फागुन पूर्णिमा का व्रत दान और स्नान किया जाएगा। फाल्गुन पूर्णिमा के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि से निवृत हों। इसके बाद गंगाजल युक्त पानी से स्नान करें। यदि संभव हो तो गंगा स्नान भी कर सकते हैं।
इसके बाद सूर्य देव को जल अर्पित करें। पूजा के समय भगवान विष्णु को पीले रंग के फल और फूल अर्पित करें। पूजा का समापन भगवान विष्णु की आरती से करें।
दान का पुण्य से संबंध
हमारी धार्मिक परंपरा में यह मानता है कि इस दिन विशेष रूप से चावल, तिल, गुड़, कपड़े और अन्य वस्त्रों का दान करना शुभ माना जाता है। होली के दिन रंगों का पूजन भी किया जाता है। सकारात्मक ऊर्जा लाने के लिए इस दिन घर की साफ-सफाई भी की जाती है।