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चौंकिएगा नहीं : अपने देश में कभी बर्फ की सिल्लियों से ठंडा की जाती थीं रेल की बोगियां

चौंकिएगा नहीं : अपने देश में कभी बर्फ की सिल्लियों से ठंडा की जाती थीं रेल की बोगियां

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New Delhi news : देश की लाइफलाइन कही जानेवाली भारतीय रेल हर रोज करोड़ों लोगों को अपने डेस्टिनेशन तक पहुंचाती है। रेलवे पैसेंजर ट्रेन और लोकल ट्रेन से लेकर लग्जरी ट्रेनें चलाती है। जैसी सुविधा, वैसे ही टिकट की दर तय की गयी है। इसी तरह से ट्रेन में अलग-अलग कोच होते हैं। जनरल, स्लीपर और एसी कोच। गर्मी और भीड़ से बचने के लिए लोग एसी कोच में टिकट बुक करते हैं। आपने भी कई बार ऐसा किया होगा, लेकिन क्या आप जानते हैं कि देश की पहली एसी ट्रेन कौन-सी थी। जिस समय एसी नहीं होता था, उस वक्त कोच को ठंडा कैसे रखा जाता था ? अंग्रेजों के जमाने की यह ट्रेन आज भी चलती है।

देश की पहली एसी ट्रेन

ट्रेन में एसी कोच की शुरुआत आजादी से पहले हुई थी। अंग्रेजों के जमाने में यह ट्रेन सबसे लग्जरी ट्रेन हुआ करती थी। सबसे खास बात यह है कि आजादी से पहले की यह ट्रेन आज भी पटरी पर दौड़ती है। इस ट्रेन का नाम कई बार बदला गया। अपने समय को लेकर बेहद पाबंद फ्रंटियर मेल जब पहली बार 15 मिनट के लिए लेट हुई, तो उसके लिए जांच के आदेश दे दिये गये थे। इस एसी ट्रेन की शुरुआत 01 सितम्बर 1928 को हुई थी। उस वक्त इसका नाम पंजाब मेल रखा गया था। साल 1934 में जब इसमें एसी कोच जोड़ा गया, तो उसका नाम बदल कर फ्रंटियर मेल कर दिया गया। साल 1996 में इस ट्रेन का नाम गोल्‍डन टेंपल मेल कर दिया गया।

कोच ठंडा रखने के लिए बर्फ की सिल्लियों का इस्तेमाल

उस वक्त एसी का चलन नहीं था। ऐसे में कोच को ठंडा रखने के लिए बोगियों के नीचे बर्फ की सिल्लियां लगायी जाती थीं। इसके ऊपर पंखों को चलाया जाता था। बर्फ की वजह से यात्रियों को ठंडक महसूस होती थी। सफर के दौरान बर्फ पिघल जाते थे, इसलिए रास्ते में अलग-अलग स्टेशनों पर बर्फ की सिल्लियां दोबारा भरी जाती थीं। बर्फ की सिल्लियां किन-किन स्‍टेशनों पर बदली जायेंगी, यह पहले से तय होता था। उस वक्त फ्रंटियर मेल के चलनेवाले अधिकतर लोग ब्रिटिश होते थे।

कहां से कहां तक चलती थी

चूंकि, यह ट्रेन आजादी और बंटवारे से पहले चलती थी, इसलिए वह मुम्बाई सेंट्रल से अमृतसर तक जाने के लिए पाकिस्तान के लाहौर और अफगानिस्तान से होते हुए गुजरती थी। यह ट्रेन उस वक्त देश की सबसे तेज चलने वाली ट्रेन मानी जाती थी। अगर किसी को टेलीग्राम भेजना होता था, तो वह इस ट्रेन के गार्ड के माध्यम से भेजता था। लम्बी जर्नी थी, इसलिए सफर के दौरान ट्रेन के फर्स्ट क्लास और सेकेंड क्लास के यात्रियों को खाना भी दिया जाता था।

पहली बार लेट होने पर जांच के आदेश

यह ट्रेन टाइम पर चलने के लिए जानी जाती थी। शुरू होने के 11 महीने बाद पहली बार जब यह लेट हुई, तो सरकार ने ड्राइवर को शोकॉज नोटिस भेज कर जांच के आदेश दे दिये। ट्रेन हाईफाई थी, इसलिए इसमें ज्यादा बोगियां नहीं लगायी जाती थी। 1940 तक ट्रेन में 06 बोगियां ही होती थीं। आजादी और बंटवारे के बाद यह ट्रेन मुम्बई से अमृतसर के बीच चलायी जाने लगी।

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