New Delhi news : भारत के मध्यकालीन इतिहास में 17वीं शताब्दी का एक अलग महत्व है। इस समय मुगल बादशाह औरंगजेब का शासन काल था। उनके समकालीन सिखों के सातवें गुरु थे गुरु हर राय। हम अपनी सामान्य भावना के साथ अपने इतिहास को समझते हुए यह जानते हैं कि मुगलों के खिलाफ साहस के साथ सिख धर्म के योद्धाओं ने संघर्ष किया था। मातृभूमि की रक्षा के लिए सब कुछ न्योछावर करने में कभी पीछे नहीं रहे। गुरु गोविंद सिंह द्वारा 100-100 के साथ एक के लड़ाने की बात में साहस की उत्कृष्टता का ही परिचय मिलता है। लेकिन, हम बात कर रहे हैं उनके पहले की। सिखों के सातवें गुरु गुरु हर राय की। वह हमेशा रात के आखिरी बचे हुए प्रहर से पहले उठ जाते थे। उन्होंने सिखों को परमात्मा को याद करने की शिक्षा दी थी। सिख गुरु, गुरु हर राय ने पंजाब के मालवा और दोआबा क्षेत्रों में लंबी यात्राएं की थीं। इस दौरान उन्होंने मुफ्त रसोई, धार्मिक सभाओं और धर्म ग्रंथ में विश्वास पर ध्यान केंद्रित किया था।
7 साल की उम्र में हो गया था पिता का निधन
इतिहास बताता है कि गुरु हर राय मात्र 14 साल की आयु में ही सिख धर्म गुरु बन गए थे। लगभग 17 सालों तक सिखों का मार्गदर्शन किया था। उनके दादा और छठे सिख गुरु हरगोबिंद के निधन के बाद 03 मार्च 1644 को वह 14 साल की उम्र में सिख गुरु बने थे। 7 साल की उम्र में उनके पिता का निधन हुआ था और 10 साल की उम्र में ही विवाह हो गया था। गुरु हर राय अपने अनोखी पोषाक के लिए भी जाने जाते थे। 1661 में उनका निधन हो गया था। वह हमेशा 101 चुन्नटों वाला चोगा पहनते थे और गले में मोतियों की माला होती थी। उनके कंधे पर 7 रत्नों का एक बाजूबंद भी था। सिख गुरु हर राय सिखों की सैन्य भावना को भी प्रोत्साहित करते थे। हालांकि वह कभी मुगल साम्राज्य के साथ किसी भी राजनीतिक संघर्ष में शामिल नहीं हुए थे।
औरंगजेब के बड़े भाई की मदद की
बताया जाता है कि गुरु हर राय ने मुगल शासक औरंगजेब के बड़े भाई दारा शिकोह की कई प्रकार से मदद की थी। दारा शिकोह को जहर दिया गया था, तब दारा की जान बचाने के लिए एक दुर्लभ दवा की जरूरत थी। लेकिन, वह आसानी से उपलब्ध नहीं थी। शाही हकीम को सूचना दी गई, तब जाकर वह दवा उपलब्ध हुई। गुरु हर राय ने उनको इलाज के लिए वह दुर्लभ दवा दी और साथ में एक मोती दिया। जब सिख गुरु हर राय से पूछा गया कि वह मुगल राजकुमार दारा शिकोह की सहायता क्यों कर रहे थे, जबकि मुगलों ने उनके पूर्वजों और सिख गुरुओं पर अत्याचार किया था। तब उन्होंने कहा कि अगर कोई व्यक्ति एक हाथ से फूल तोड़ता है और दूसरे हाथ से देता है, तो दोनों हाथों से एक ही सुगंध आती है।