Health tips, Lifestyle : दांतों को साफ रखने के लिए और मुंह से दुर्गंध ना निकलने देने के लिए यह जरूरी होता है कि दांत और मुंह की सफाई ठीक से की जाए। दांत और मुंह की सफाई ठीक से नहीं होने पर पायरिया की बीमारी हो जाती है और इसके कारण अन्य बीमारियां भी पैदा होती हैं। मुंह में कुछ ऐसी भी असाध्याय बीमारियां होती हैं, जिनको कंट्रोल में करना बहुत मुश्किल होता है। ऐसी स्थिति में दवाई खाने से ज्यादा आयुर्वेदिक पद्धति प्रभावकारी तरीके से काम करती है। खाना-नाश्ता के बाद तो हम पानी से कुल्ला करते हैं। कुल्ला करने का मतलब पानी को मुंह में बार-बार घुमाना होता है। अगर कोई मुंह में तेल भरकर बार-बार घुमाने को कहे और इससे बीमारी दूर होने के बात कहीं जाए तो थोड़ा आश्चर्य होता है, लेकिन आयुर्वेद में इसका बड़ा महत्व है।
कुल्ला के समय तिल, जैतून या नारियल का तेल लेकर मुंह में घुमाना अत्यंत फायदेमंद होता है। सिरदर्द ,माइग्रेन, साइनस या स्ट्रेस से होने वाला दर्द सब कुछ तेल से कुल्ला करने पर ठीक हो सकता है।
सिरदर्द और साइनस में राहत
आयुर्वेद के विशेषज्ञ बताते हैं कि तेल से कुल्ला एक पुरानी विधि है। इससे न केवल असाध्य रोगों का निदान हो सकता है, बल्कि कई अन्य तरह की बीमारियों को भी रोका जा सकता है। आम तौर पर मुंह के बैक्टीरिया को मारने के लिए ऑयल को मुंह में भरकर हिलाने की प्रक्रिया को तेल से कुल्ला कहते हैं। इससे सिरदर्द से लेकर साइनस की बीमारी कम करने में बहुत मदद मिलती है।
इस प्रकार करना चाहिए कुल्ला
जब कभी भी तेल का कुल्ला करें, याद रखिए, 10-15 मिनट तक इसे मुंह के अंदर करना होता है। इसके बाद इसे थूक देना होता है। यह प्रक्रिया करते समय ध्यान देना चाहिए कि तेल का एक बूंद भी गले के रास्ते शरीर के अंदर ना जाए। ऐसा इसलिए क्योंकि इसमें मुंह में मौजूद बैक्टीरिया, वायरस, कवक और अन्य विषैले तत्व शामिल हो चुके होते हैं। यह शरीर के अंदर जाकर हनी कर सकते हैं।
बनी रहती है दांत की सेंसिटिविटी
ऐसा करने से मुंह की दुर्गंध तो जाती ही है, दांत की सेंसिटिविटी भी बनी रहती है। तेल से कुल्ला करने पर अल्सर, पेट, किडनी, आंत, हार्ट, लिवर, फेफड़ों के रोग और अनिद्रा में भी राहत देती है। बॉडी की सूजन का कारण भी इससे ठीक होता है। कीटाणु और विषैले पदार्थ मुंह से ही जाते हैं लेकिन तेल से कुल्ला से ये रूक सकता है।