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फिर भगवामय हुआ हरियाणा, जम्मू-कश्मीर में इंडिया गठबंधन

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हरियाणा में गलत साबित हुए सभी एग्जिट पोल, जम्मू कश्मीर में बची साख

भाजपा ने हरियाणा में कांग्रेस को दिखाये पहलवानी दांव

जम्मू-कश्मीर में नहीं चला अनुच्छेद 370 हटाने का दांव

किसान आन्दोलन पर भारी पड़ा भाजपा का 24 फसलों को एमएसपी पर खरीदने का एलान

जम्मू-कश्मीर में खुला आम आदमी पार्टी का खाता


New Delhi News : हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के चुनाव परिणाम मंगलवार को आये। हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजों ने इस बार सभी को चौंका दिया। वहां कांग्रेस अपनी जीत को लेकर आश्वस्त थी। एग्जिट पोल्स से लेकर सियासी बयानों तक में यही संकेत मिल रहे थे कि भाजपा इस बार मुकाबले में कमजोर है। लेकिन, चुनाव परिणाम भाजपा के पक्ष में आये हैं। भाजपा ने राज्य की 90 में से 48 सीटें जीती हैं, जो पिछली बार से 08 सीट अधिक है। अर्थात, भाजपा ने हैट्रिक लगा ली है। वहीं, जम्मू-कश्मीर में इंडिया गठबंधन की नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस गठबंधन की सरकार बनने जा रही है। गठबंधन को 48 सीटें मिली हैं। नेशनल कॉन्फ्रेंस को 42 और कांग्रेस को 06 सीटें मिलीं। भाजपा ने 29 सीटें जीती है। पीडीपी को 03 सीट मिली। एक-एक सीट आम आदमी पार्टी और जेपीसी के खाते में आयी। 07 निर्दलीय भी जीते। 90 सीटों वाली विधानसभा में बहुमत का आंकड़ा 46 है।

उमर अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर के अगले मुख्यमंत्री होंगे

इस बीच, नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला ने कहा कि उमर अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर के अगले मुख्यमंत्री होंगे। उमर अब्दुल्ला को दो सीटों बड़गाम और गांदरबल पर जीत मिली। जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती की बेटी इल्तिजा मुफ्ती श्रीगुफवारा-बिजबेहरा सीट से हार गयींं। उन्होंने कहा, ‘मैं लोगों के फैसले को स्वीकार करती हूं।’ उधर, भाजपा अध्यक्ष रविंद्र रैना नौशेरा सीट से हार गये। हार के बाद उन्होंने प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया।

भूपेन्द्र सिंह हुड्डा, कुमारी सैलजा और रणदीप सुरजेवाला ताल ठोंक रहे थे सीएम पद पर


हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजों ने इस बार चौंका दिया है। कांग्रेस इस बार जीत को लेकर आश्वस्त थी। कांग्रेस में यह मंथन भी होने लगा था कि 65 से ज्यादा सीटें आती हैं, तो कमान किसे सौंपी जायेगी। भूपेन्द्र सिंह हुड्डा, कुमारी सैलजा और रणदीप सुरजेवाला ; तीनों नेता सीएम पद पर अपनी दावेदारी को लेकर ताल ठोंक रहे थे। युवाओं में बेराजगारी और किसानों-पहलवानों की नाराजगी जैसे मुद्दे को कांग्रेस जोर-शोर से उठा रही थी। इन सबके बावजूद भाजपा कांग्रेस की बगल से जीत को निकाल कर ले गयी। यह कुछ ऐसा ही है, जैसे कुश्ती में बगलडूब दांव होता है, जब एक पहलवान सामनेवाले पहलवान की बगल और पकड़ से बाहर निकल कर उसे परास्त कर देता है।

भाजपा का कमजोर सीटों पर रहा फोकस


यहां तक कि भाजपा के आंतरिक सर्वेक्षण में भी 35 से 38 सीटों का अंदाजा लगाया गया था। इसके बाद भाजपा ने ऐसी 18 सीटों पर अपना ध्यान केन्द्रित किया, जहां पर मुकाबला बहुकोणीय था। वहीं, 39 ऐसी सीटों पर भी भाजपा ने जोर लगाया, जहां उसका कांग्रेस से सीधा मुकाबला था। उधर, मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी भी कह चुके थे कि यदि गठबंधन की जरूरत पड़ी, तो सारी व्यवस्थाएं हैं। हरियाणा में 15वीं विधानसभा चुनाव में 67.90 प्रतिशत मतदान हुआ। यह 2019 के विधानसभा चुनाव में 67.92 प्रतिशत के मुकाबले .02 प्रतिशत कम रहा। राज्य के विधानसभा चुनाव के इतिहास में यह चौथा मौका था, जब सबसे कम मतदान हुआ। इसे सत्ता विरोधी लहर से जोड़ कर देखा गया, क्योंकि 10 साल से भाजपा यहां सत्ता में थी।

हरियाणा में पहली बार हैट्रिक


किसी भी एग्जिट पोल में भाजपा को बहुमत मिलने का अनुमान नहीं लगाया था। 08 एग्जिट पोल्स यही बता रहे थे कि कांग्रेस के 10 साल बाद वापसी करने के संकेत हैं। हरियाणा के चुनावी इतिहास में इससे पहले ऐसा कभी नहीं हुआ, जब किसी दल ने हैट्रिक लगायी हो। कोई भी दल लगातार तीसरी बार सरकार नहीं बना पाया। इस बार भाजपा ने रिकॉर्ड बना दिया। 2014, 2019 में जीत के बाद 2024 के विधानसभा चुनाव में भी वह सरकार बनाने की स्थिति में है।
जजपा का वोट बैंक खिसका
दुष्यंत चौटाला की जजपा ने 2019 में 14.9 फीसदी मत हासिल किये थे। यह माना गया था कि जाट समुदाय की वजह से जजपा को ये वोट मिले थे। वहीं, इस बार यह माना जा रहा है कि जजपा के वोट बैंक का ज्यादातर हिस्सा कांग्रेस में और कुछ हिस्सा इनेलो में शिफ्ट हो गया। कांग्रेस को पिछली बार 28.2 फीसदी वोट मिले थे, जबकि इस बार वह 40 फीसदी मत हासिल करती दिख रही है। जजपा को इस बार महज एक फीसदी वोट मिलते दिख रहे हैं। वहीं, भाजपा को कांग्रेस से एक फीसदी कम ; यानी 39 फीसदी वोट मिलते दिख रहे हैं। इसके बावजूद वह कांग्रेस से ज्यादा सीटें लाने में कामयाब रही।

मुख्यमंत्री बदलने की रणनीति कामयाब रही

हरियाणा की सियासत में बीते मार्च में तब बड़ा बदलाव देखने को मिला, जब मनोहर लाल खट्टर ने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद नायब सिंह सैनी को विधायक दल का नेता चुना गया और वह मुख्यमंत्री बने। सैनी के जरिये भाजपा ने पंजाबी और पिछड़ा वोट बैंक पर पकड़ मजबूत कर ली। वहीं, खट्टर को केन्द्र में भेज दिया गया।

कश्मीर में भाजपा खाता नहीं खुला



केन्द्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर की 90 सीटों में से 43 जम्मू और 47 कश्मीर में हैं। भाजपा ने जम्मू रीजन की सभी 43 सीटों पर चुनाव लड़ा और 29 सीटें जीतीं। वहीं, कश्मीर रीजन की 47 सीटों पर भाजपा ने 20 कैंडिडेट उतारे थे। यहां भाजपा का खाता नहीं खुल पाया। गुरेज सीट से एक उम्मीद थी। यहां से फकीर मोहम्मद खान भाजपा के कैंडिडेट थे। फकीर मोहम्मद 28 साल पहले 1996 में गुरेज से निर्दलीय विधायक चुने गये थे। फिर कांग्रेस में गये, हार गये। इस बार बीजेपी से भी उन्हें हार मिली। नेशनल कॉन्फ्रेस और कांग्रेस का गठबंधन कश्मीर में पहले से मजबूत था। नेशनल कॉन्फ्रेस की 42 सीटों में से करीब 35 से ज्यादा सीटें कश्मीर रीजन से मिली हैं। वहीं, कांग्रेस ने भी कश्मीर संभाग से 06 सीटें जीतीं। 2014 में दोनों पार्टियों ने 27 सीटें जीती थीं। इस बार गठबंधन का आंकड़ा बहुमत के पार हो गया। नेशनल कॉन्फ्रेस ने इस चुनाव में 51 और कांग्रेस ने 32 सीटों पर चुनाव लड़ा थे l
पार्टी जीते
भाजपा 48 (+8)
कांग्रेस 37 (+6)
जेजेपी. 00 (-10)
इनेलो-बसपा 02 (+1)
अन्य 03 (-5)

जम्मू-कश्मीर का चुनाव परिणाम

पार्टी जीते


नेशनल कॉन्फ्रेस 42 (+27)
भाजपा 29 (+4)
पीडीपी 03 (-25)
कांग्रेस 07 (-5)
अन्य 09 (+3)

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