New Delhi news: मौसम में परिवर्तन के साथ ही उत्सव का रंग भी झलकने लगता है। हिंदू धर्म की परंपरा में होली और बसंत ऋतु का चोली-दामन का संबंध है। बसंत ऋतु प्रकृति के सुंदरता और मनुष्य के लिए उल्लास की ऋतु कही जाती है। इसी मौसम में मस्ती की खुमारी का त्योहार होली का शुभागमन होता है। अभी होली आने में कुछ समय बाकी है, लेकिन उसकी खुमारी मौसम में घुल रही है। क्या आपने कभी सोचा है कि होली को लेकर किस तरह की परंपराएं और अवधारणाएं हमारी संस्कृति में उपलब्ध हैं। आज हम संक्षेप में इसी की चर्चा कर रहे हैं।
पहले देवलोक में चलिए
कहा जाता है कि एक बार देवर्षि नारद बोले, है नराधिप ! फाल्गुन की पूर्णिमा को सब मनुष्यों को अभयदान देना चाहिए, ताकि इससे प्रजा के लोग निश्शंक होकर हंसे और क्रीड़ा करे। डंडे और लाठी को लेकर बालक शूरवीरों की तरह गांव से बाहर जाकर होली के लिए लकड़ी और कंडों का संचय करें। उनमें हवन किया जाय। अट्टहास, किलकिलाहट और मंत्रोच्चारण से पापात्मा राक्षसी नष्ट हो जाती है। यह होली के माहौल की प्राचीनतम परंपरा को दर्शाता है।
हिरण्यकशिपु और उसका बेटा प्रहलाद
भारतीय परंपरा में यह कथा प्रचलित है कि हिरण्यकशिपु ने अपनी बहनऔर प्रह्लाद की बुआ होलिका को प्रह्लाद को मार डालने की जिम्मेदारी दी थी। होलिका के पास एक ऐसी चादर थी जिसे ओढने पर वह आग के प्रभाव से बच सकती थी। होलिका ने उस चादर को ओढ़कर प्रह्लाद को गोद में ले लिया और अग्नि में कूद पड़ी। लेकिन, प्रकृति का ऐसा चमत्कार हुआ कि चादर होलिका से उड़कर प्रहलाद पर पड़ गई। प्रहलाद बच गया और होलिका आज में जलकर खत्म हो गई। यह सत्य और अच्छाई की असत्य और बुराई पर विजय थी और इसी दिन से होलिका मनाने की परंपरा शुरू हुई। उसके अगले दिन उल्लास का पर्व होली मनाया जाता है।
बुराइयों का नाश और उल्लास
इतिहास के मध्य काल में कहा जाता है कि एक बार राजा पृथ्वीराज चौहान ने अपने दरबार के राजकवि चंद से पूछा था, हम लोगों में जो होली के त्योहार का प्रचलन है, वह क्या है। हम सभ्य आर्य लोगों में ऐसे अनार्य महोत्सव का प्रचार क्यों हुआ कि आबाल-वृद्ध सभी उस दिन पागल-से होकर वीभत्स रूप धारण करते तथा अनर्गल और कुत्सित वचनों का निर्लज्जतापूर्वक उच्चारण करते हैं। यह ठीक है क्या। चंद बोले- इस महोत्सव की उत्पत्ति का विधान होली की पूजा-विधि में पाया जाता है। फागुन मास की पूर्णिमा में होली का पूजन होता है। उसमें लकड़ी और घास-फूस का बड़ा भारी ढेर लगाकर वेद-मंत्रों के साथ होलिका-दहन किया जाता है। उसे बुराइयों का नाश होता है और उसके बाद उल्लास मनाया जाता है।