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जीवन कैसे बदलता है…ऐसे बदलता है !! 

जीवन कैसे बदलता है…ऐसे बदलता है !! 

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राजीव थेपड़ा 

नेताओं के भाषण यदा कदा ही दिल को छूते हैं, क्योंकि उनमें विश्वसनीयता और सत्य का प्राय: अभाव होता है। दूसरी ओर, प्रेरक गुरुओं और संतों के चंद शब्द जीवन बदलने की क्षमता रखते हैं, क्योंकि वह सीधे हृदय से निकलते हैं और हृदय में उतर जाते हैं।

प्रेरक वक्ता उज्ज्वल पाटनी और भारत के सुपरस्टार अमिताभ बच्चन सिगरेट और शराब के विज्ञापन में काम नहीं करते। उनका कहना है, “देशभर में मेरा कोई भी फैन मुझसे प्रेरित होकर सिगरेट या शराब की लत में जकड़ जाता है, तो उसकी जिम्मेदारी अप्रत्यक्ष रूप से मेरी होगी। मैं अपने देशवासियों को व्यसनों की ओर नहीं ले जा सकता। मेरा दिल इसकी गवाही नहीं देता।”

                आर्थर जिस फैक्ट्री में काम करता था। वह एक कंजूस व्यक्ति के रूप में जाना जाता था और यहां तक कि उसमें रोज कोई ना कोई सामान चुरा लाने की प्रवृत्ति भी थी। इस प्रकार उसके घर में ढेर सारे औजार जमा हो गये थे। एक दिन उसने किसी की कुछ प्रेरक बातें सुनीं, तो उसे बड़ी आत्मग्लानि हुई और उसने स्वयं को बदल कर एक नया जीवन जीने की ठानी। उसने चुराये गये सारे औजारों को इकट्ठा किया और उन्हें एक बक्से में बंद करके एक सूची बनायी और कुछ वे सामान, जो उसमें से गुम हो गये थे, उतने रुपये उस बक्से में डाले और चुपचाप उसे फैक्ट्री के मालिक के यहां छोड़ आया और ग्लानिवश नौकरी भी छोड़ दी। लेकिन, उसका मन हल्का हो चुका था। 

                 कुछ दिनों के बाद एक सुनहरी सुबह अचानक ही घर के दरवाज़े की घंटी बजी। दरवाजा खोल कर देखा, तो सामने पूर्व कम्पनी का मालिक था। तब उसे लगा कि अब उसे जेल जाना होगा। उसने नजरें झुका लीं। मालिक ने कहा, “बहुत मुश्किल से ढूंढ पाया हूं तुम्हें। मेरे साथ चलो ! और वह घबरा गया।” उसने पूछा कहां ? मालिक ने कहा, “मुझे उस पहले वाले आर्थर की जरूरत नहीं थी ! मुझे इस आर्थर की जरूरत है ! हम तुम्हारा प्रमोशन कर रहे हैं, क्योंकि हमें सच्चे साथियों की आवश्यकता है। आर्थर की आंखें भीग चुकी थीं। क्योंकि, जीवन में पहली बार उसने दिल की सुनी थी और एक नेक काम किया था, जिसका परिणाम ऐसा भी हो सकता है, यह उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था।

              …तो, आप भी यदि सच्चाई का, इंसानियत का और चरित्र का साथ देंगे, तो जीत आपकी ही होगी। ईमानदारी और सच्चाई हर जगह महसूस की जाती है और उनकी इस धरती पर सदा से ही आवश्यकता है। उसी प्रकार और बेईमानी और बुराई भी किसी दूसरी तरह महसूस की जाती है। निश्चित तौर पर यह महसूसना बदनामी के रूप में होता है, इसीलिए बेईमानी को आप छुपाना चाहते हैं। लेकिन, ईमानदारी को छुपाने की कोई आवश्यकता नहीं होती है ; बल्कि ईमानदारी तो बाकायदा दिखाई जानेवाली चीज है और यह इतनी महत्त्वपूर्ण है कि बड़े से बड़े बेईमान भी अपने आप को ईमानदार बताये जाने की होड़ करते रहते हैं। 

                …तो, यदि जीवन की दौड़ में सफलता और लोकप्रियता लम्बे वक्त तक बरकरार रखनी है, तो आपको अपनी विश्वसनीयता, विश्वास और सच्चाई स्थापित करनी ही होगी। एक शिष्य ने गुरु से कहा, आप कहते हैं, दिल से बात करोगे और सच बोलोगे, तो प्रभाव पड़ेगा ! किन्तु, सामनेवाले को क्या पता चलेगा कि कोई दिल से बोल रहा है या सिर्फ मुंह से ? जब सच दिखाता ही नहीं, तो प्रभाव कैसे पड़ेगा ? गुरु ने एक गिलास पानी और नमक का एक धेला मंगाया। शिष्य से कहा, नमक को पानी में उड़ेल दो। कुछ देर बाद गुरु ने शिष्य से कहा ऊपर का पानी चखो और स्वाद बताओ। शिष्य ने कहा खारा।…तो गुरु ने कहा अब नीचे का पानी चखो। शिष्य ने कहा, यह भी खारा। तब गुरु ने कहा कि अब इसमें से नमक ढूंढ कर निकालो ! शिष्य ने कहा यह तो असम्भव है। …तो, गुरु ने कहा जिस तरह पानी नमकीन होता है, परंतु नमक नहीं दिखता। इस तरह आपका सच, आपका विश्वास, आपकी गम्भीरता, आपकी चिंता, आपकी आवाज में घुल कर सीधे सुननेवाले के दिलों दिमाग पर असर करती है ! सत्य दिखता नहीं है, सत्य महसूस होता है ! 

                   एक सत्य का उदाहरण देश के एक नामी वक्ता ने भी ने दिया है। जब एक बार उन्हें एक शराब निर्माता कम्पनी द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में एंकरिंग हेतु एक आमंत्रण मिला।…तो, उन्होंने कम्पनी से पूछा कि वह उनसे क्या अपेक्षा रखते हैं ! …तो, उन्होंने कहा कि रूपरेखा वह अपने अनुसार बना लें। लेकिन, बीच-बीच में अप्रत्यक्ष रूप से उनकी शराब के प्रचलित ब्रांड का नाम भी लेते रहें। …और, ऐसा करने के लिए उन्हें तगड़ी रकम भी ऑफर की गयी। हालांकि, उन्होंने बताया कि उनके संस्कार कहते थे कि उन्हें तुरंत मना कर देना चाहिए। फिर भी उस भारी भरकम पारिश्रमिक के लालच ने कुछ देर के लिए उन्हें विचलित कर दिया। घर पहुंच कर वह अपने पुत्र से मिले और अपनी मां से मिल कर अपने दादाजी की शिक्षा के बारे में सोचा और तुरन्त ही एक निर्णय उन्होंने ले लिया।…और, वह निर्णय था उसे प्रोग्राम को ना करना ! जबकि, उनके मित्रों ने यह सोचा था कि उन्हें इतना शानदार अवसर नहीं छोड़ना चाहिए। किन्तु अगले ही दिन उन्होंने फोन करके उसे शराब कम्पनी को विनम्रता पूर्वक इनकार कर दिया। आज भी वह बताते हैं कि आज भी जब वह पलट कर सोचते हैं, तो सुकून मिलता है कि उन्होंने अपनी अंतरात्मा की बात सुनी।

                 आज के युग में भले ही यह सम्भव नहीं हो कि आप हर बार केवल सच बोलें। किन्तु यह तो हो सकता है कि झूठ भी बहुत अधिक आवश्यकता पड़ने पर, बल्कि अनिवार्यता होने पर ही बोला जाये ! किन्तु, झूठ का एक लॉजिक होना चाहिए और उससे किसी का नुकसान नहीं होना चाहिए। क्योंकि, किसी की भी विश्वसनीयता बहुत महत्त्वपूर्ण होती है। जो केवल हमारे द्वारा बातें की जाने से नहीं, अपितु हमारे किये जानेवाले कार्यों से बनती है। हमें अपनी विश्वसनीयता का विशेष ध्यान रखना होता है ! क्योंकि, विश्वसनीयता जब तक आपके घर पर रुकती है, उसके साथ कुबेर रुकते हैं। परन्तु वह बड़ी अहंकारी है, बड़ी मुश्किल से आने को राजी होती है और थोड़ी-सी भूल पर छोड़ भी जाती है और ले जाती है अपने साथ आपके कुबेर को !!

                 इस प्रकार अनेकानेक दृष्टांतों को देखते हुए निश्चित तौर पर जीवन को हम जैसा बनना चाहें, वैसा बन सकते हैं। जब चाहें, जैसा मोड़ देना चाहें, वैसा मोड़ दे सकते हैं। इसके लिए केवल हमें अपने भीतर आत्म अनुशासन, आत्मदृढ़ता, आत्मविश्वास और सेल्फ मोटिवेशन की आवश्यकता होती है, जिनके सहारे अपनी बहुत सारी बुरी आदतों को एक झटके में छोड़ा भी जा सकता है। भूला भी जा सकता है।…और, बदला भी जा सकता है। कुल मिला कर यह साबित हो जाता है कि हमारा जीवन केवल और केवल हमारे स्वयं के कर्मों के ऊपर आधारित है। अपने जीवन को हम एक आदत भर ना बनायें, बल्कि उसके बारे में समग्रतापूर्वक सोचें…उस पर विचार करें। आत्म अवलोकन करें और वह कर डालें, जो हम करना चाहते हैं। निश्चित ही यह बहुत आसान है। सच !! यह बहुत ही ज्यादा आसान है।

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