राजीव थेपड़ा
दैनंदिन की अपनी जिन्दगी में हम में से बहुत सारे लोग, बल्कि बहुत ज्यादा लोग अलग-अलग तरह की तरह-तरह की आदतों के या सनक के, या शाॅर्ट-टेम्पर के, या ऐसी दिनचर्याओं के शिकार होते हैं, जिनके कारण हमें अपने ही घर में या अपने समाज के लोगों के साथ तारतम्य बिठाने में दिक्कत होती है या इसका उल्टा हमारे घर के लोगों को या हमारे समाज के लोगों को हमारे साथ तारतम्य बिठाने में कठिनाई होती है। लेकिन, हम इसे कभी नहीं समझ पाते और इसके चलते हमारे जीवन में लोगों के साथ हमारे बहुत सारे बतंगड़, बहुत सारे विवाद और बहुत सारे बेमतलब के झगड़े भी उत्पन्न होते हैं। लेकिन, हम कभी भी उनकी तह में नहीं जा पाते, क्योंकि हमें अपना चेहरा देखना ही नहीं होता।
अपने जीवन में हमारे तरह-तरह के चेहरे होते हैं, जिसमें सबसे पहला चेहरा हमारे जीवन में आनेवाले हर एक व्यक्ति, हर एक वस्तु पर हमारी मालकियत (स्वामी होने की) की भावना होती है। मालकियत की भावना होने का अर्थ है कि हम फिर उस व्यक्ति को भी वस्तु में परिणत कर देते हैं और हम उससे मनचाहा व्यवहार पाने की अपेक्षा रखने लगते हैं। यद्यपि, हमारा खुद का व्यवहार सामनेवाले के साथ कैसा है, यह हम नहीं समझते।
हमारी बहुत सारी आदतें सामाजिकता के विपरीत होती हैं और हमारे बहुत सारे व्यवहार हमारे निजी द्वेष से परिचालित होते हैं और उसके कारण हम अपने सामाजिक जीवन में लोगों के साथ उचित सामंजस्य नहीं बिठा पाते और लोगों से हमारी दूरी बन जाती है। किन्तु, हम उस दूरी को समझते हुए भी उसमें अपनी लिप्तता को नहीं समझ पाते या हमारी खुद की भूमिका को नहीं समझ पाते ।
बहुत बार लोगों के साथ हमारे व्यवहार, हमारी पसंद पर आधारित होते हैं ; यानी जो चीज हम पसंद करते हैं, सामनेवाला अगर वही करता है, तो वह हमारा चेहता बना रहता है और अगर नहीं करता, तो हम उससे विद्वेष रखने लगते हैं ! यद्यपि, यहां एक बात और है कि हमारी पसंद कोई बहुत बेहतर हो और सामाजिकता के भीतर हो ! हो सकता है कि स्वयं हमारी पसंद ही गलत हो और उससे विद्वेष फैलता हो या कई अन्य समस्याएं पनपती हों, लेकिन हम इसे समझ नहीं पाते। क्योंकि, किसी भी व्यक्ति को अपनी आदतें, अपने व्यवहार, अपने द्वारा किये गये समस्त कर्म अच्छे ही प्रतीत होते हैं।
इसके अलावा हमारे अधिकतम सम्बन्ध हमारे खुद के लालच और स्वार्थ के कारण खराब होते हैं। हालांकि, विभिन्न पक्षों से बातचीत करने पर उनके द्वारा यही जताया जाता है कि सामनेवाला गलत है और हम सही हैं। लेकिन, क्रॉस चेक करने एवं उपयुक्त विश्लेषण करने पर सारी बातें यथोचित रूप से सामने आ जाती हैं। कभी किसी एक की गलती होती है, कभी दोनों की ही गलती होती है ; या फिर किसी की कम या किसी की ज्यादा गलती होती है। इस सम्बन्ध में उदाहरण देने का कोई मतलब नहीं है। क्योंकि, हम समस्त पढ़े-लिखे लोग ऐसी मामूली बातों को समझने में पर्याप्त रूप से सक्षम हैं !
…तो, इस प्रकार हमारी तरह-तरह की सनक, तरह-तरह की आदतें, हमारा गुस्सा, हमारा लालच, हमारा स्वार्थ, हमारा अहंकार, जो हममें से हर एक में होता है, के चलते तमाम सम्बन्ध टूटते हैं। तमाम घर टूटते हैं। तमाम रिश्ते टूटते हैं। लेकिन, इन के कारणों की गहराई तक जाने की हिम्मत कोई नहीं जुटा पाता, क्योंकि इनके मूलभूत कारणों में स्वयं हम ही होते हैं और फिर वही बात कि अपना चेहरा भला कौन देखे ? इसीलिए एक शायर की पंक्तियां अक्सर याद आती रहती हैं- “अपना चेहरा ना बदला गया, आईने से खफा हो गये !” …तो, इस शेर में हम आईने की जगह अन्य लोग कर सकते हैं, क्योंकि वास्तव में अपना चेहरा तो किसी से बदला नहीं जाता। यानी अपनी गलतियां तो किसी से देखी नहीं जातीं। अपने गिरेबान में कोई नहीं झांक पाता। बजाय इसके लोग दूसरों पर अंगुलियां उठाते हैं, दूसरों के ऊपर बरस पड़ते हैं, दूसरों के ऊपर आक्रमक हो उठते हैं और इस प्रकार अपनी कमियों को ढकने का प्रयास करते हैं !
बाबा आदम जमाने से चले आ रहे इस प्रकार के झगड़ों का कभी कोई हल नहीं निकला है और ना ही निकल पाने की कोई उम्मीद नजर आती है ! क्योंकि, ऊपरवाले ने हर एक जीव के अन्दर यही फूंक कर भेजा है कि तुम ही सर्वश्रेष्ठ हो ! तुम से श्रेष्ठ कोई और नहीं !!