New Delhi news : दुनिया में सियासत की महान हस्तियां जन्मदिन और पुण्यतिथि पर अक्सर याद की जाती हैं। कुछ हस्तियों की प्रासंगिकता उनके निधन के बाद लगातार बनी रहती है। इसलिए सियासत में उठने वाले नए सवालों से जब सामना होता है, तो हम वैसी हस्तियों को किसी भी समय याद कर सकते हैं। दुनिया खासकर भारत की सियासी हस्तियों में देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को जवाहरलाल नेहरू के बाद वैसे ही याद कर सकते हैं, जैसे नेहरू को। नेहरू ने देश को सोचने-समझने के लिए संस्कृति के साथ विज्ञान के विजन के योगदान के महत्व को स्थापित किया, तो शास्त्री ने सादगी के साथ शौर्य का ऐसा परिचय दिया, जिसकी जरूरत आज हर घड़ी भारत को है। आज की नफरत भरी भारत की सियासत में अगर नेहरू और शास्त्री के जीवन और व्यापक सोच को थोड़ा भी जोड़ दें, तो नफरत में थोड़ी कमी आ जाएगी। ध्यान रहे आज नेहरू को जितनी गाली दीजिएगा भारत उठाना पीछे जाएगा। भारत को आगे बढ़ाने के लिए नेहरू की विरासत से आप किनारा नहीं कर सकते। अपनी आइडियोलॉजी को आगे बढ़ते हुए भी नेहरू के दौर की सकारात्मक सच्चाई को नमन किया जा सकता है।
सादगी और सच्चाई की जीत
याद कीजिए, नेहरू को सबसे बड़ा धक्का भारत-चीन जंग में चीन की धोखाधड़ी से लगा था और इसे वह लंबे समय तक झेल न सके और 1964 में उनका निधन हो गया। इसके बाद कार्यकारी रूप में प्रधानमंत्री की जिम्मेदारी कुछ समय के लिए गुलजारीलाल नंदा को दी गई थी। इसके बाद देश के दूसरे प्रधानमंत्री के रूप में लाल बहादुर शास्त्री को चुना गया था। उन्होंने अपने साहस के साथ भारत-पाकिस्तान युद्ध में पाकिस्तान को जबरदस्त धूल चटाई। यह उनके साहस का सबसे बड़ा प्रमाण है। जब देश में अनाज की कमी पड़ी तो एक समय सबसे उपवास रहने का आह्वान किया, लेकिन इसके पहले उन्होंने उदाहरण स्वरूप खुद और अपने परिवार को उपवास पर रखा। उसके बाद पूरे देश ने एक समय उपवास रखना शुरू कर दिया था। यह थी उनकी सादगी और सच्चाई की जीत। आज ऐसे उदाहरण भारत की राजनीति में दुर्लभ है। लेकिन, जरूरत है कि ऐसे उदाहरण सामने आएं, ताकि देश की राजनीति में थोड़ी भी शुद्धता बची रहे। विश्वास नहीं है तो नेहरू के निधन के बाद पार्लियामेंट में तत्कालीन जनसंघ के सांसद अटल बिहारी वाजपेयी के भाषण को आज भी यूट्यूब पर सुन सकते हैं।
जय जवान, जय किसान के बाद जय विज्ञान
ध्यातव्य है कि लाल बहादुर शास्त्री जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद 9 जून 1964 को भारत का प्रधानमंत्री बने थे। रूस के ताशकंद में 11 जनवरी 1966 को अचानक उनके निधन की खबर आई थी। कहा जाता है कि ताशकंद समझौता से वास्तव में वह भीतर से प्रसन्न नहीं थे। लेकिन, उनकी मौत किस वजह से हुई, इसकी असली जानकारी अब तक स्पष्ट नहीं हो सकी है। फिर भी यह माना जाता है कि ताशकंद समझौते से उन्हें एक धक्का लगा था, जिसकी वजह से उनका निधन हो गया था। मात्र 18 महीने के अपने छोटे से शासनकाल में लाल बहादुर शास्त्री ने देश को आर्थिक आत्मनिर्भरता और किसी भी परिस्थिति में भारत के न झुकने के दृष्टिकोण का मजबूत परिचय दिया था। देश की सुरक्षा के लिए जय जवान और देश की आत्मनिर्भरता के लिए जय किसान का उनका नारा आज भी सार्थक और प्रासंगिक है। यह महत्वपूर्ण बात है कि भाजपा के शीर्ष नेता और भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 1998 से 2004 के अपने शासनकाल में शास्त्री जी के जय जवान, जय किसान नारे के साथ जय विज्ञान को भी जोड़ा था। मतलब साफ है कि भारत को सभी क्षेत्रों में आगे बढ़ाने के लिए और दुनिया में अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए वैज्ञानिक विकास की भी उतनी ही आवश्यकता है, जितनी जवानों और किसानों को संबल देने की। ध्यान रहे, लाल बहादुर शास्त्री ने जवाहरलाल नेहरू के कैबिनेट में रेल मंत्री, परिवहन एवं संचार मंत्री, वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री, गृह मंत्री की भी भूमिका निभाई थी। हर मंत्रालय में अपनी छाप छोड़ी थी। जवाहर लाल नेहरू की बीमारी के दौरान बिना विभाग के मंत्री की भी जिम्मेदारी निभाई थी। मतलब साफ है कि उस समय वास्तव में प्रधानमंत्री की सारी जिम्मेदारियां का निर्वाह लाल बहादुर शास्त्री ही कर रहे थे। वह नेहरू के सबसे बड़े विश्वासी थे।