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इस अनोखे गांव में भूलकर भी लोग होली में रंग-गुलाल का नहीं करते प्रयोग, फिर…

इस अनोखे गांव में भूलकर भी लोग होली में रंग-गुलाल का नहीं करते प्रयोग, फिर…

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Asansol news, West Bangal news : होली आई रे आई रे होली आई रे। बस अब होली आ ही गई है। मौसम और माहौल में तो इसकी खुमारी घुलने ही लगी है। लोगों का अंदर से मिजाज होलियाना होने लगा है। रंग का उत्सव। रंग-गुलाल की बौछार इस लोक उत्सव की पहचान है। होली में रंग गुलाल न उड़ाएं तो उसका क्या मजा। लेकिन, क्या आप जानते हैं कि भारत के पश्चिम बंगाल के आसनसोल में एक ऐसा गांव है, जहां सदियों से लोग रंग-गुलाल से होली नहीं खेलते हैं। वे पानी से होली खेलते हैं और होली खेलने के पहले प्रकृति की पूजा जरूर करते हैं। यह गांव आदिवासियों का एक गांव है।

इस गांव की खासियत

आसनसोल में स्थित रिभर साइड का माझी पाड़ा गांव होली के रंगारंग महोत्सव में अलग ही पहचान रखता है। आमतौर पर देश मे होली की शुरुआत भले होलिका दहन के बाद होती है, पर पानी से होली खेलने वाला यह आदिवासी समाज होली के ठीक एक दिन पहले महुआ और साल के पेड़ की पूजा करता है। ढोल और नगाड़े की थाप पर जमकर नाचते और गाते हैं। प्राकृतिक नियम का पालन करते हुए पानी से होली खेलते हैं। एक दूसरे को भिंगोते भी हैं।

जल, जंगल और जमीन का महत्व

गांव वालों की यह मान्यता है की पहले ना तो रंग था और ना ही गुलाल। पहले लोग पानी से ही होली खेलते थे। उनके समाज के पूर्वजों के अनुसार वह हर वर्ष होली के मौके पर प्रा्कृति की पूजा करते हैं उनकी इस पूजा मे जल, जंगल और जमीन की बहुत बड़ा महत्व होता है। उनका यह भी कहना है कि वे अपने इस होली मे रिश्तों का बहुत ख्याल रखते हैं। आपसी मेलजोल और मिलन के सभी रिश्तों का निर्वाह मिलजुल कर किया जाता है। एक दूसरे की खुशी का ख्याल रखा जाता है। उनके साथ होली खेलते हैं, जो रिश्ते में उनका हमजोली हो या फिर देवर-भाभी हो या साली दामाद का कोई रिश्ता हो। बाहारी लोगों के साथ यहां होली नहीं खेली जाती है।

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