Global News, international news: रूस के कजान शहर में आयोजित हुआ 16वां ब्रिक्स शिखर सम्मेलन काफी चर्चा में रहा। खासतौर से भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच पांच साल बाद हुई बैठक ने सबका ध्यान खींचा। इस बीच तुर्किये (तुर्की) से संबंधित एक खबर आई है कि भारत ने उसका ब्रिक्स में शामिल होने का रास्ता रोक दिया है।
ब्रिक्स के चार संस्थापक सदस्य ब्राजील, रूस, भारत और चीन हैं। 2010 में दक्षिण अफ्रीका भी इसमें शामिल हुआ था। उसके बाद अब कई देश इससे जुड़ना चाहते हैं। पिछले साल भी ब्रिक्स का विस्तार हुआ था और अब इसमें ईरान, मिस्र, इथियोपिया और संयुक्त अरब अमीरात भी शामिल हैं। तुर्की भी इसमें शामिल होने का प्रयास करता रहा है। अब खबरें आ रही हैं कि भारत ने तुर्की के पाकिस्तान प्रेमी होने के चलते ब्रिक्स में शामिल होने का रास्ता रोक दिया है।
जर्मन न्यूज पेपर बिल्ड ने 24 अक्टूबर को अपनी एक रिपोर्ट में बताया कि भारत ने पाकिस्तान के साथ घनिष्ठ संबंधों का हवाला देते हुए तुर्की की ब्रिक्स सदस्यता की बोली को अस्वीकार कर दिया। इसने कहा कि भारत की वजह से तुर्किये को लेकर आम सहमति नहीं बन पाई। वहीं ऑनलाइन समाचार आउटलेट
टीटी 24 ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के लिए एकत्रित देश और उनके नेताओं ने फिलहाल नए सदस्यों को स्वीकार नहीं करने का फैसला किया है।
गौरतलब है कि दो सितंबर को तुर्किये ने आधिकारिक तौर पर ब्रिक्स में शामिल होने के लिए आवेदन किया था। ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि तुर्किये अपने वैश्विक प्रभाव को बढ़ाने और अपने पारंपरिक पश्चिमी सहयोगियों से अलग, नए संबंध बनाने की कोशिश कर रहा है। तुर्किये पहला नाटो सदस्य देश है, जो ब्रिक्स में शामिल होना चाहता है। एर्दोआन ने 24 अक्टूबर को रूसी नेता पुतिन के निमंत्रण पर रूस के कजान प्रांत में आयोजित 16वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में भाग भी लिया।
भारत ने नहीं रोकी तुर्किये की सदस्यता
हालांकि भारत द्वारा तुर्किये की ब्रिक्स सदस्यता रोके जाने का कोई आधिकारिक प्रमाण नहीं है। बिल्ड की रिपोर्ट में पूर्व तुर्की राजनयिक और कार्नेगी फाउंडेशन के विशेषज्ञ सिनन उलगेन का हवाला दिया गया, जिनके अनुसार भारत ने तुर्की की सदस्यता में अवरोध उत्पन्न किया, क्योंकि तुर्की के पाकिस्तान के साथ करीबी संबंध हैं। हालांकि, तुर्की के समाचार आउटलेट तुर्किये टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, सिनन उलगेन ने बाद में बिल्ड द्वारा किए गए दावे का खंडन किया।
उन्होंने स्पष्ट किया कि उनके बयान को गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया था। उन्होंने अपने एक्स हैंडल पर एक पोस्ट में कहा कि भारत ने ब्रिक्स में तुर्किये की सदस्यता को नकारा नहीं और इस पर कोई वोटिंग नहीं हुई। उलगेन के अनुसार, केवल भारत ही नहीं, बल्कि ब्रिक्स के कई सदस्य देश तेजी से विस्तार के पक्ष में नहीं हैं। तुर्की के राष्ट्रपति कार्यालय ने भी पुष्टि की है कि कजान शिखर सम्मेलन में ब्रिक्स के विस्तार पर कोई चर्चा नहीं हुई थी और भारत द्वारा तुर्की की सदस्यता को अवरुद्ध करने की खबरें पूरी तरह निराधार हैं।
13 देशों को मिला सहयोगी देश का दर्जा
ब्रिक्स न्यूज के एक एक्स पोस्ट में भी यह स्पष्ट किया गया कि ब्रिक्स ने 24 अक्टूबर को 13 नए देशों को अपने साथ जोड़ते हुए उन्हें सहयोगी देश का दर्जा दिया। इन देशों में तुर्की भी शामिल है। इन सहयोगी देशों को ब्रिक्स के कुछ सीमित कार्यों में भाग लेने की अनुमति है, लेकिन उन्हें अभी पूर्ण सदस्यता नहीं मिली है। कुल मिलाकर, सोशल मीडिया पर भारत द्वारा तुर्की की ब्रिक्स सदस्यता को नकारे जाने का दावा झूठा है। तुर्की की सदस्यता पर कोई औपचारिक वोटिंग नहीं हुई और ब्रिक्स में भारत समेत कई देशों का तेजी से विस्तार पर विरोध है।