अफरोज परवीन
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस प्रत्येक वर्ष 08 मार्च को पूरे विश्व में धूमधाम से मनाया जाता है। वैसे तो महिलाओं के लिए कोई दिन मुकर्रर नहीं होता है, फिर भी महिला दिवस के दिन विभिन्न संस्थानों-प्रतिष्ठानों में समारोह आदि करके महिलाओं को उनके द्वारा दिये गये बलिदान-योगदान के फलस्वरूप उन्हें प्रोत्साहित व सम्मानित किया जाता है। नारी केवल एक शब्द नहीं, बल्कि सम्पूर्ण सृष्टि का आधार है। वह जननी है, जीवनदायिनी है, प्रेम की मूर्ति और रिश्ते संवारनेवाली शक्ति है। भारतीय संस्कृति में नारी को शक्ति, ममता और त्याग का स्वरूप माना गया है। महिला अपने आप में सम्पूर्ण शब्द है। वह अपने घर से लेकर बाहर तक के कामों में संतुलन बैठा कर चलती है।
महिलाएं समाज की नींव हैं
आज महिलाएं एक अच्छी गृहिणी, मां, डॉक्टर, शिक्षिका, पायलट आदि का रोल बखूबी निभा रही हैं। महिलाएं समाज की नींव हैं। अगर हम किसी समाज को मजबूत बनाना चाहते हैं, तो सबसे पहले हमें महिलाओं को सशक्त बनाना होगा। महिला सशक्तीकरण का अर्थ है महिलाओं को उनके अधिकार, शिक्षा, रोजगार और स्वतंत्रता देना, ताकि वे अपने जीवन को अपनी शर्तों पर जी सकें। महिलाओं के ऊपर लगे प्रतिबंधों को हटाना होगा। महिला सशक्तीकरण की बात करें, तो महिलाएं किसी भी क्षेत्र में पुरुषों से पीछे नहीं हैं। आज महिलाएं राफेल से लेकर जेट तक उड़ा रही हैं। महिला सशक्तीकरण का जीता-जागता उदाहरण हमारे देश की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी हैं। लम्बे समय तक देश की बागडोर उनके कंधों पर रही है। वह एक महिला ही है, जो अपने सभी कामों में संतुलन बैठा कर चलती है। एक मां के रूप में भी महिलाओं का रूप बड़ा है। वे अपने बच्चों को जन्म से लेकर कर्म तक देती हैं। बिना किसी रिटर्न के उसे अच्छा संस्कार देती हैं, उसकी परवरिश करती है। इन सभी खूबियों के बावजूद अपने देश भारत में आज भी कई क्षेत्रों में महिलाओं की साक्षरता दर पुरुषों की तुलना में कम है।
कार्यस्थलों पर महिलाओं के साथ असमानता और भेदभाव
कार्यस्थलों पर महिलाओं के साथ असमानता और भेदभाव किया जाता है। कई जगहों पर महिलाओं को उनके बुनियादी अधिकारों से वंचित रखा जाता है। इन स्थितियों को ठीक करने की दिशा में ईमानदार पहल की जरूरत है। केन्द्र और राज्यों के शासन-प्रशासन का महिला उत्थान के प्रति रुझान बढ़ा है। यह सराहनीय है, लेकिन सुधार के प्रयासों को और गति देने की जरूरत है।