UP news, Lucknow news : केन्द्र सरकार की जल जीवन मिशन के तहत उत्तर प्रदेश में ‘हर घर नल से जल’ अभियान के तहत 31303 करोड़ रुपए के घोटाले की एक जनहित याचिका उच्च न्यायालय की लखनऊ खण्डपीठ में दायर की गयी है। इस याचिका में अदालत से इतने बड़े घोटाले की सीबीआई से जांच करवाकर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की प्रार्थना की गयी है। अदालत ने याचिका विचारार्थ स्वीकार कर ली गयी है।
नियम कानून को ताक पर रखकर दिये गये ठेके
याचिका में आरोप लगाया गया है कि जल जीवन मिशन के तहत एक-एक ठेकेदार को 600 से 700 करोड़ रुपए के ठेके नियम कानून को ताक पर रख दिये गये। इन ठेकेदारों द्वारा किये गये कार्यों के भुगतान बगैर थर्ड पार्टी इन्सपेक्शन के अनुमोदित किये गये। थर्ड पार्टी इन्सपेक्शन के लिए भी जहां अन्य राज्यों में कार्य की कुल लागत का 0.2 से लेकर 0.05 प्रतिशत की दर से भुगतान किया जा रहा है, वहीं उत्तर प्रदेश में 1.33 प्रतिशत की दर से भुगतान किया जा रहा है। यही नहीं थर्ड पार्टी इन्सपेक्शन करने वाली एजेंसियों की योग्यता के कोई मानक तय नहीं किये गये। जल निगम के योग्यत अभियंताओं की अनदेखी की गयी।
प्रबंधन पर कई आरोप
याचिका में यह भी आरोप लगाये गये कि प्रदेश सरकार की कैबिनेट से टेण्डर के नियम स्वीकृत करवा लिये गये। उसके बाद यह नियम व शर्तें बदल दिये गये। जल जीवन मिशन की गाइडलाइंस में यह कहा गया है कि एक परियोजना का कंसलटेंट दूसरी परियोजना में अपनी सेवा नहीं दे सकता, मगर यहां एक-एक कंसलटेंट का कई-कई परियोजनाएं दे दी गयीं। ठेकेदारों के अनुभव की अनदेखी की गयी। अधिशासी निदेशक ने ठेकेदार की टेक्निकल बिड की अनदेखी करते हुए उसकी फाइनेंशयल बिल खोल दी। इस काम के लिए पूरे यूपी को 18 क्लस्टर में बांटा गया, तय हुआ कि एक ठेकेदार को पांच क्लस्टर से ज्यादा का काम नहीं दिया जाएगा, मगर इसका भी उल्लंघन किया गया। टेण्डर की दरों को तय करने के भी पक्षपात किया गया। टेलर मेड टेण्डर रेट तय किये गये।
जल निगम के सेवानिवृत्तकर्मी ने की है पीआईएल
उत्तर प्रदेश जल निगम के एक सेवानिवृत्त कर्मचारी और समाजसेवी रामसेवक शुक्ल की ओर से दायर इस जनहित याचिका में भारत सरकार के अलावा उत्तर प्रदेश सरकार, प्रदेश की कृषि उत्पादन आयुक्त, राज्य पेयजल आपूर्ति मिशन, जल निगम ग्रामीण के प्रबंध निदेशक, मिशन के यूनिट कोआर्डिनेटर और मिशन के वित्त नियंत्रक को पार्टी बनाया गया है। उत्तर प्रदेश में यह मिशन 1 लाख 20 हजार करोड़ रुपए का था, जो अब बढ़कर पौने दो लाख रुपए का हो गया है। इतनी बड़ी परियोजना के लिए अभियंत्रण विभाग का सहयोग जरूरी था, जो नहीं लिया गया। बुंदेलखंड और विंध्य इलाके में हर घर नल से जल का काम फरवरी 2018 में शुरु हुआ था, जो कि वर्ष 2022 में पूरा हो जाना चाहिए था, मगर यह आज तक पूरा नहीं हो सका। प्रदेश के अन्य हिस्सों में जल जीवन मिशन के यही काम 2024 में पूरे होने थे मगर अधूरे पड़े हैं। अगस्त 2022 तक मिशन की पूरे भारत में 52.74 प्रतिशत औसत प्रगति हुई मगर उ.प्र. में हर घर नल से जल में महज 16.42 प्रतिशत ही काम हो सका।
दिखायी जा रही प्रगति पर उठे सवाल
केन्द्र सरकार ने अभी हाल ही में पत्र लिखा है कि जितनी प्रगति का दावा किया गया है, उसका ब्योरा दिया जाए। याचिकाकर्ता रामसेवक शुक्ल ने खुद तीन जिलों कानपुर नगर, सीतापुर और लखनऊ के 20 गांवों का सर्वे किया। वहां प्रधानों ने लिखकर दिया कि उनके यहां कोई काम नहीं हुआ। याचिकाकार्ता का कहना है कि अगर इस काम की पूरे प्रदेश में अब तक की प्रगति के जो दावे किये जा रहे हैं और वेबसाइट पर जो ब्यौरा डाला जा रहा है, अगर उसकी निष्पक्ष जांच करवा ली जाए तो सारा सच सामने आए जाएगा।
545 पृष्ठों की है याचिका
13 अक्तूबर 2022 को दायर इस जनहित याचका की संख्या 731 (डब्ल्यूपीआईएल) (सिविल) 2022 है। 86 पृष्ठ की यह याचिका संलग्नकों के साथ मिलाकर कुल 545 पृष्ठों की है। नौ फरवरी 2024 को यह जनहित याचिका अदालत ने विचारार्थ स्वीकार कर ली है। 18 सितम्बर 2024 को प्रदेश सरकार की ओर से इस मामले में शपथ पत्र दाखिल किया गया। अब याचिकाकर्ता रामसेवक शुक्ल को प्रतिशपथ पत्र दाखिल करना है।
इन मदों में हुआ घोटाला
थर्ड पार्टी इंस्पेक्शन एजेंसी का चयन-₹1106 करोड़
बुंदेलखंड व विंध्य में ठेकेदारों का चयन-₹2406 करोड़
अन्य इलाकों में ठेकदारों का चयन-₹27,300 करोड़
4-बुन्देलखंड व विंध्य में प्रोजेक्ट असेसमेंट सलाकार का चयन-₹84 करोड़
बेसलाइन सर्वे -₹60 करोड़
पानी की गुणवत्ता का प्रचार प्रसार-₹60 करोड़
इम्पलीमेंटेशन एजेंसी का चयन-₹50 करोड़
बुंदेलखडं व विंध्य में आगणकों के गठन -₹137 करोड़
जीओ मैपिंग-₹100 करोड़