सम्राट चौधरी जैसे लोग अपने पालकों को अक्सर भूल जाया करते हैं
आनंद सिंह
बिहार पूर्व मंत्री शकुनि चौधरी के पुत्र सम्राट चौधरी ने हाल ही में एक बयान दिया कि लालू यादव ने बिहार के लिए कुछ नहीं किया। सम्राट चौधरी जैसे तुच्छ नेता का लालू यादव जैसे बड़े नेता के खिलाफ दिया गया यह बयान एक बार फिर से बिहार की सियायत को गरमा रहा है। अपने बोल-बचन से मीडिया की सुर्खियां बटोरने वाले सम्राट अक्सर भूल जाते हैं कि ये लालू ही थे, जिन्होंने पहली बार उन्हें मंत्री बनाया था। इतना ही नहीं, लालू ने ही उन्हें बोलने के लिए जुबान दी थी, राजनीतिक ककहरा भी सिखाया था।
इस लेख के प्रारंभ में ही मैं यह स्पष्ट कर दूं कि लालू यादव से मेरा कोई लेना-देना नहीं और न ही उनके विचारों का समर्थन करता हूं। बात लालू के बिहार में योगदान की चली थी, इसलिए इस बात पर चर्चा करना तर्कसंगत है कि लालू ने बिहार के लिए क्या किया।
1990 में, जब लालू बिहार के मुख्यमंत्री बने, उस दौर में क्या हो रहा था, यह जानना भी जरूरी है। सीधे शब्दों में कहें कि जब डॉ. जगन्नाथ मिश्रा बिहार के मुख्यमंत्री थे, तब बिहार की स्थिति कैसी थी। चूंकि उस दौर का गवाह मैं खुद हूं, इसलिए किसी और की बात न करते हुए अपनी ही आंखों देखी कहूं तो डॉ. मिश्रा के कार्यकाल में जंगलराज आ चुका था। तिलैया थाने में घुस कर अपराधियों ने अपने साथी को छुड़ा लिया था। हजारीबाग के प्रसिद्ध रामनवमी जुलूस के दौरान हिंदू-मुस्लिम दंगा हुआ। पटना सिटी में शाम 6 बजे के बाद सभ्य परिवार के लोग घरों से बाहर नहीं निकलते थे। चोरी-डकैती की खबरों से उस वक्त के अखबार रंगे रहते थे। ये सीन बता रहा हूं तब का, जब डॉ. जगन्नाथ मिश्रा मुख्यमंत्री थे। कोई महफूज नहीं था। डॉ, मिश्रा के कार्यकाल में ही चारा घोटाला हो रहा था। हरिजन, मुसहर, धोबी, लोहार से लेकर दलित जाति के किसी भी शख्स को सम्मान नहीं मिलता था। तब के संभ्रांत और दबंग माने जाने वाले लोग इन जातियों की महिलाओं को उठा कर ले जाते थे और अपनी हवस का शिकार बनाते थे। सामंती वर्ग के अनेक लोग ऐसे थे, जो ओबीसी या दलित के खेत में सिर्फ इसलिए आग लगा देते थे, क्योंकि उनके कहने पर कोई दीगर काम नहीं होता था। नवादा, रजौली के बाहुबलियों ने कई ओबीसी और दलित समाज के लोगों को बिना किसी बात के अधमरा करके रोड पर फेंक दिया। किसी भी ओबीसी और दलित को गांव-देहात में बड़े घरों में चौकी पर बैठने की इजाजत नहीं थी। ये सब लोग धरती पर ही बैठते थे और हाथ जोड़े रहते थे। इनको अपील करने का अधिकार नहीं था। गरम लोहे से जीभ दाग दिया जाता था। ये सब हमने अपनी आंखों से देखा है। ये किसी फिल्म की पटकथा नहीं है।
डॉ. जगन्नाथ मिश्र के कार्यकाल में इस पर कभी सुनवाई होती थी, कभी नहीं। राजनीति का मूल मर्म समझने से वंचित रहे ललित नारायण मिश्रा के अनुज डॉ. जगन्नाथ मिश्र के कार्यकाल में सरकार खजाना खाली था। उन्हें अर्थशास्त्र विषय का तो ज्ञान था पर बिहार राज्य का अर्थशास्त्र कैसे सही हो, इस पर उन्होंने कभी ध्यान नहीं दिया। उनके ही कार्यकाल में चारा घोटाला होता रहा और फंसे लालू प्रसाद।
1990 में जब बिहार में लालू के नेतृत्व में जनता दल की सरकार बनी (जिसमें लालू को चीफ मिनिस्टर बनाने में नीतीश कुमार का भी हाथ था) तो बड़ा बदलाव आया। यह बदलाव अकस्मात नहीं आया। मूलतः गोपालगंज के रहने वाले लालू ने सामाजिक न्याय की जो प्रयोगशाला बिहार में खोली, वह बहुत देर तक चलती रही। उन्होंने अछूत मान ली गई जातियों के लोगों के घरों में भोजन किया। उन्हें उनकी ताकत बताई। बोलने के लिए उनको जीभ दिया। उन्होंने लोगों से कहा कि हम सब बराबर हैं। कोई जाति से ऊंच-नीच नहीं होता। गांव-गांव में परिवर्तन की बयार बह निकली। अपने मुख्यमंत्री आवास में बुला कर वह अछूत जाति के लोगों से मिलते थे। उनके साथ भोजन करते थे। उनका मान-सम्मान करते थे। सबको कुर्सी पर बिठाते थे। जो दलित समाज का आदमी किसी ऊंची जाति के दुआर पर हाथ जोड़े बैठे रहता था, अब वही आदमी बड़े आदमी के बगल में लगी कुर्सी पर बैठने लगा। लालू ने हर समाज के बीच समानता की जो नई लाइन खींची, वह सिर्फ बिहार में ही नहीं वरन पूरे देश में फैल गई। इस नई लाइन में समाजवादी नजरिया तो था ही, अलग-अलग वर्गों में बंटे दलितों-अल्पसंख्यकों और ओबीसी समाज को भी ताकत देने का काम किया। वह दिन हवा हुए, जब किसी दलित को कोई सामंती वर्ग का बंदा हड़का देता था। अब तो सामंती वर्ग भी ओबीसी-दलितों के सामने घुटने टेकने लगा। सामाजिक न्याय के नाम पर सुभाष यादव और साधु यादव (दोनों लालू के साल, जो अब उनसे अलग हैं) ने जो उत्पात मचाया, उसकी चर्चा फिर कभी लेकिन निम्न जाति के जो लोग पहले बबुआन के यहां ताड़ी और चार सूखी रोटी पर गुजारा करते थे, उन्होंने आवाज बुलंद कर दी और अपने खेतों को वापस पाने के लिए लंबी लड़ाई छेड़ने में भी पीछे नहीं रहे। उन्हें कोर्ट से उनका हक मिला।
सम्राट चौधरी आज जो बक-बक कर रहे हैं, यह ताकत भी लालू की ही दी हुई है। उनके पिता शकुनी चौधरी लालू के करीबी रहे। उनके कहने पर ही लालू ने सम्राट चौधरी को मंत्री बनाया और भविष्य की राजनीति के लिए उन्हें पाला-पोसा। लेकिन सम्राट तो सियासी नमकहराम निकले। उन्होंने उस पिता समान लालू की उपलब्धियों को शून्य करने का प्रयास किया, जिन्होंने उन्हें अपनी नर्सरी में सींच कर पौधा से पेड़ बनाया। राजनीति के इतिहास में ऐसे कई सम्राट चौधरी आपको मिल जाएंगे लेकिन जब इस किस्म के सम्राट चौधरी होंगे तो तेजस्वी यादव भी मौके पर होंगे। तेजस्वी ने ठीक ही कहा कि सम्राट चौधरी को तो खुद पता नहीं होगा कि मंत्री पद हासिल करने के लिए उन्होंने कितनी पार्टियां बदलीं। जिन्होंने सम्राट चौधरी को जमीन से उठाकर आसमान में बिठा दिया, उसके लिए अपशब्द निकालना सम्राट चौधरी जैसे लोगों के लिए ही संभव है।
भारत की राजनीति में अनेक नेता हुए और आगे भी होंगे। लेकिन, सक्रिय राजनीति से दूर हो चुके लालू यादव का जो करिश्माई व्यक्तित्व है, वह किसी के पास नहीं है। लालू ने अपने सामाजिक न्याय से वंचितों, शोषितों, दलितों को एक नई जिंदगी दी, नया भरोसा दिया और रंगीन सपने दिये। बिहार में लालू से बड़ा कोई नेता नहीं आज के दौर में और जो लालू ने कर दिया, वह किसी के लिए सपना है। यह बात सम्राट चौधरी को याद रखनी चाहिए अन्यथा इतिहास उन्हें भी माफ करने से रहा!
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)