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कर चलें हम फिदा जानो-तन साथियों, अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों….

कर चलें हम फिदा जानो-तन साथियों, अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों….

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Mumbai news, Bollywood news, Kaifi Azmi: जब किसी शायर के दिल से शब्दों का झरना फूटता है, तो उसका संगीत अमर हो जाता है। आधुनिक उर्दू के शायरों में कैफ़ी आज़मी का नाम बड़ी इज्जत से लिया जाता है। शब्द और संगीत के ऐसे साधक मुश्किल से पैदा होते हैं। गालिब, जोश, फैज की परंपरा के इस अजीम शायर को दुनिया से रुखसत होने के बाद भी उनकी शायरी के माध्यम से याद किया जाता है। याद क्या किया जाएगा, ऐसा शायर हमेशा हमारी यादों में जिंदा रहता है। 1964 में हकीकत फिल्म के उस गीत को याद कीजिए- कर चलें हम फिदा जानो-तन साथियो,अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो। यह गीत कैफ़ी आज़मी के सर्वश्रेष्ठ गीतों में शुमार है और इसका स्थान बॉलीवुड में ही नहीं उर्दू शायरी की दुनिया में भी कायम है। आवारा सजदे उनकी शायरी और नज्मों का उत्कृष्ट संग्रह है।

राम भी तुम, तुम्हीं लक्ष्मण साथियो

क्या आपने कभी महसूस किया कि शायद ही ऐसा कोई स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस का अवसर गुजारा होगा, जिसने यह गीत हमें सुनने न मिला हो। हमारी स्वतंत्रता की लड़ाई में कुर्बानी को अमर बना देने वाला यह गीत कैफ़ी आज़मी की कलम से निकला था, जिसे मदन मोहन ने संगीत में डाला था। मोहम्मद रफी की गायकी ने भी इस गीत को जानदार बना दिया अमर बना दिया। इस जीत का अंत होता है- राम भी तुम, तुम्हीं लक्ष्मण साथियो

अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो।

11 साल की उम्र में लिखी पहली गजल

कैफ़ी आज़मी की जीवनी बताती है कि उनका असली नाम अख्तर हुसैन रिजवी था। उत्तरप्रदेश के आजमगढ़ जिले के एक छोटे से गांव मिजवां में आज से 106 साल पहले उनका जन्म हुआ था। कहा जाता है कि गांव के साधारण माहौल में कविताएं पढ़ने का शौक जग गया। भाइयों ने प्रोत्साहित किया तो खुद भी लिखने लगे।11 साल की उम्र में उन्होंने अपनी पहली गज़ल लिखी। उर्दू शायरी में बाद में उन्होंने अपना मुकाम हासिल किया और साथ ही बॉलीवुड को कई यादगार गीत दिए। उन्हें कई बार फिल्मफेयर अवार्ड मिला। 1974 में ही भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से नवाजा था।

पंडित नेहरू की अंतिम यात्रा पर लिखा गीत

कैफ़ी आज़मी ने देश के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद उनकी अंतिम यात्रा पर जो गीत लिखा था, वह अमर हो गया। पंडित नेहरू के साथ इस गीत ने कैफी आजमी को भी अमर कर दिया। यह गीत था-

मेरी आवाज सुनो, प्यार का राग सुनो

मेरी आवाज़ सुनो ।

क्यों संवारी है ये चंदन की चिता मेरे लिए

मैं कोई जिस्म नहीं हू कि जलाओगे मुझे

राख के साथ बिखर जाऊं मैं दुनिया में

तुम जहां खाओगे ठोकर वहीं पाओगे मुझे

हर क़दम पर है नए मोड़ का आगाज़ सुनो।

मेरी आवाज़ सुनो, प्यार का राज सुनो

मेरी आवाज़ सुनो ।

मैंने एक फूल जो सीने पे सजाया था

उसके परदे में तुम्हें दिल से लगा रखा था

है, जुदा सबसे मेरे इश्क का अंदाज सुनो

मेरी आवाज सुनो, प्यार का राग सुनो

मेरी आवाज सुनो ।

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