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आंवले के वृक्ष में होता है भगवान विष्णु का वास, विस्तार से आप भी जानिए

आंवले के वृक्ष में होता है भगवान विष्णु का वास, विस्तार से आप भी जानिए

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Dharm adhyatm : अभी इस साल का अंतिम महीना फागुन चल रहा है। यदि पक्ष की दृष्टि से देखें तो यह शुक्ल पक्ष की स्थिति है। इसकी समाप्ति के बाद कृष्ण पक्ष का आगमन होता है। फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को भक्ति भाव से आमलकी एकादशी के रूप में मनाया जाता है। इस एकादशी में आमला वृक्ष की पूजा होती है।

भगवान शिव और पार्वती के प्रथम आगमन की खुशी

होली का महीना होने के कारण आमलकी एकादशी को रंगभरी एकादशी भी कहा जाता है। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह के बाद उनके प्रथम आगमन की खुशी में भव्य आयोजन होता है। भक्तगण अबीर-गुलाल उड़ाकर, भजन-कीर्तन करके और उल्लास से नृत्य करके इस पर्व को धूमधाम से मनाते हैं।

आरोग्य के साथ आध्यात्मिक शांति देता है आंवला

बताया जाता है कि इस पावन दिवस पर भगवान विष्णु की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। आंवले के पवित्र वृक्ष की भी श्रद्धा पूर्वक आराधना की जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन आंवले के जीवनदायी वृक्ष में स्वयं भगवान विष्णु का वास माना जाता है। आंवला केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि आरोग्य और आध्यात्मिक उन्नति के लिए भी खास है। 10 मार्च को शुरू हुए आमलकी एकादशी की तिथि 11 मार्च तक है। अगर कल आपने पूजा की शुरुआत की, तो आज इसका समापन करना चाहिए।

इस प्रकार पुण्यकरी है आमलकी एकादशी

यह एकादशी अत्यंत पुण्यकारी मानी जाती है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, इस दिन व्रत करने से सैकड़ों तीर्थयात्राओं और यज्ञों के बराबर पुण्य प्राप्त होता है। भगवान विष्णु की आराधना करने से पापों का नाश होता है। मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है। कल अगर आपने पूजा की है तो आज भी आपको जीवन को कल्याण युक्त बनाने के लिए भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। आज ही भगवान शिव और माता पार्वती का भी विशेष श्रृंगार करें और उन्हें रंग, अबीर, गुलाल अर्पित करें।

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