Chiraiya, motihari news: चंपारण सत्याग्रह के दौरान महात्मा गांधी द्वारा 1918 ई. में स्थापित प्रखंड के मधुबनी आश्रम स्थित कुटीर उद्योग का जल्द कायाकल्प होगा। डीएम सौरभ जोरवाल ने उक्त ऐतिहासिक स्थल का निरीक्षण किया है। इस बीच उन्होंने स्थानीय लोगों से उद्योग की पूर्व एवं वर्तमान स्थिति की जानकारी प्राप्त की। पिछले 12 वर्षों से बंद पड़े व रखरखाव के अभाव में जर्जर हो चुके गांधी संग्रहालय तथा उसमें रखे चरखे एवं रेशम सूत के निर्माण में उपयोग होने वाले उपकरणों को देखा, जो अब उपयोग में नहीं होने व रखरखाव के अभाव में जीर्णशीर्ण अवस्था में पहुंच चुका है।
दर्जनों प्रशिक्षित कारीगर हैं मौजूद
वरिष्ठ पत्रकार एवं समाजसेवी प्रकाश सिंह ने इस दौरान डीएम श्री जोरवाल को बताया कि गांव में आज भी दर्जनों प्रशिक्षित कारीगर मौजूद हैं। लेकिन आवश्यकता है बाजार की मांग के अनुरूप आधुनिक उपकरण के माध्यम से इस संस्थान को एक बार फिर से पुर्नजीवित किया जाए।
हजारों युवाओं को मिलेगा रोजगार
श्री प्रकाश ने कहा कि जब यहां खादी एवं रेशमी वस्त्रों का निर्माण मसलन स्टॉल, चादर तथा विभिन्न प्रकार के गिफ्ट सामग्री बननी शुरू हो जाती है, तो काम करने वाले श्रमिकों को भी उचित पारिश्रमिक मिलेगा। जिससे आसपास के गांवों के हजारों युवाओं को रोजगार मिलेगा। इस बीच वहां के लोगों ने डीएम को स्थानीय बुनकर द्वारा तैयार हाथ से बुने चादर भी दिखाए। जिससे वे काफी प्रभावित हुए। जिलाधिकारी ने विभाग के माध्यम से इस संस्थान के जीर्णोद्धार का जल्द प्रस्ताव भेजने का स्थानीय लोगों को आश्वासन दिया।
बनाई जाती थी चादर
डीएम श्री जोरवाल को स्थानीय निवासी व संस्थान के पूर्व कर्मचारी पूरण सिंह ने बताया कि 1970 – 75 ई. के आसपास तकरीबन 1200 से 1500 लोग इस उद्योग से जुड़े हुए थे। जो रेशम कीड़े का पालन कर उससे रेशम का सूत एवं मूंगा रेशम आदि का निर्माण किया करते थे। इसका उपयोग चादर एवं अन्य वस्त्रों के निर्माण में किया जाता था।
धीरे-धीरे होती चली गई दयनीय
स्थानीय निवासी पिंकू सिंह उर्फ ऋतुराज ने बताया कि यहां 1974 ई. में सियाराम महतो एवं कमल सिंह द्वारा कपड़े बुनने एवं कटिंग आदि का प्रशिक्षण दिया जाता था। चंपारण ग्रामीण उद्योग संस्थान द्वारा संचालित उक्त उद्योग की स्थिति 1991 के बाद धीरे धीरे दयनीय होती चली गई। इसका मुख्य कारण था कार्यरत कर्मचारियों को बेहद कम वेतन, समय पर वेतन का नहीं मिलना, तैयार माल के लिए बाजार उपलब्ध नहीं होना, वस्त्रों का लागत से कम मूल्य पर बिक्री होना एवं सरकारी सब्सिडी नहीं मिलना आदि शामिल है।
इस ऐतिहासिक धरोहर को आज केंद्र व राज्य सरकार को समय रहते संरक्षित करने की आवश्यकता है। बताया जाता है कि अप्रैल 1917 ई. में महात्मा गांधी जब चंपारण आए थे तो इस क्रम में उनका प्रवास बड़हरवा लखनसेन तथा मधुबनी आश्रम गांव में हुआ था। वे गुजरात से अपने साथ सूत निर्माण में दक्ष पुरूषोतम दास मथुरा नामक प्रशिक्षक को मधुबनी आश्रम लेकर आए थे।
विद्यालय की भी की थी स्थापना
जिन्होंने यहां के लोगों को चरखा चलाने एवं वस्त्र तैयार करने का प्रशिक्षण दिया। वहीं गांधीजी ने गांव के बच्चों के लिए इस संस्थान के ठीक सामने एक विद्यालय की भी स्थापना की, जो वर्तमान में कस्तूरबा गांधी विद्यालय के नाम से चल रहा है। मौके पर सिकरहना एसडीओ निशा ग्रेवाल, वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश सिंह, सीओ आराधना कुमारी, जदयू नेता चंद्रभूषण सिंह सहित सैकड़ों की संख्या में स्थानीय लोग मौजूद थे।