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ध्रुवीकरण की कोशिश और जातीय गोलबंदी पर प्रतिक्रिया स्वरूप उभरे नये सियासी नारे !

ध्रुवीकरण की कोशिश और जातीय गोलबंदी पर प्रतिक्रिया स्वरूप उभरे नये सियासी नारे !

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उत्तर प्रदेश में 20 नवंबर को होने वाले विधानसभा उपचुनाव से पहले दिलचस्प नारों को लेकर मुख्य दलों के बीच राजनीतिक प्रतिस्पर्धा चरम पर

Lucknow news, UP news : प्रदेश में 20 नवंबर को होने वाले विधानसभा उपचुनाव से पहले दिलचस्प नारों को लेकर सियासी खींचतान चरम पर है। ‘बटेंगे तो कटेंगे’, ‘जुड़ेंगे तो जीतेंगे’, ‘न कोई बंटेगा न कोई कटेगा’ और ‘मठाधीश बांटेंगे और काटेंगे… पीडीए जोड़ेगी और जीतेगी, जैसे राजनीतिक नारे ध्रुवीकरण की कोशिश और जातीय गोलबंदी पर प्रतिक्रिया स्वरूप उभरे हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और सपा मुखिया अखिलेश यादव के बीच इस संबंध में लगातार बयानबाजी हो रही है।

9 विधानसभा सीटों पर 20 नवंबर को मतदान

उत्तर प्रदेश में जिन 9 विधानसभा सीटों पर 20 नवंबर को मतदान होना है, उनमें कटेहरी (अंबेडकर नगर), करहल (मैनपुरी), मीरापुर (मुजफ्फर नगर), गाजियाबाद, मझवां (मिर्जापुर), सीसामऊ (कानपुर), खैर (अलीगढ़), फूलपुर (प्रयागराज) और कुंदरकी (मुरादाबाद) शामिल हैं। मतगणना 23 नवंबर को महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनाव के साथ होगी। मुख्यमंत्री योगी ने जातिगत मतभेदों से परे हिंदुओं को एकजुट करने के लिए ‘बटेंगे तो कटेंगे’ का नारा दिया है। विरोधियों ने भाजपा पर चुनावी लाभ के लिए धार्मिक भावनाओं को भड़काने का आरोप लगाया है।

इतिहास का सबसे खराब नारा बताया

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने नारे की आलोचना करते हुए इसे इतिहास का सबसे खराब नारा करार दिया। पूर्व सीएम ने भाजपा पर सामाजिक सद्भाव को खतरे में डालने वाला विभाजनकारी संदेश फैलाने का आरोप लगाया। हालांकि उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने जवाबी हमला करते हुए आरोप लगाया कि सपा वोटों के लिए ‘जिहादियों’ की चापलूसी करती है। हाल ही में एक पोस्ट में मौर्य ने दावा किया कि सपा का एजेंडा मुसलमानों को खुश करना और राजनीतिक लाभ के लिए ‘जिहादियों का समर्थन’ करना है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने ‘बटेंगे तो कटेंगे’ नारे को लेकर परोक्ष रूप से भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा था कि नकारात्मक नारा उनकी निराशा और नाकामी का प्रतीक है।

नकारात्मक नारा निराशा-नाकामी का प्रतीक

उन्होंने यह भी कहा कि देश के इतिहास में यह नारा ‘निकृष्टतम नारे’ के रूप में दर्ज होगा और उनके राजनीतिक पतन के अंतिम अध्याय के रूप में आखिरी शाब्दिक कील सा साबित होगा। सपा प्रमुख ने किसी का नाम लिए बगैर एक्स पर एक पोस्ट में कहा, उनका नकारात्मक नारा उनकी निराशा-नाकामी का प्रतीक है। इस नारे ने साबित कर दिया है कि उनके जो गिनती के 10 प्रतिशत मतदाता बचे हैं, अब वे भी खिसकने के कगार पर हैं। इसीलिए ये उनको डराकर एक करने की कोशिश में जुटे हैं, लेकिन ऐसा कुछ होने वाला नहीं। उन्होंने कहा कि नकारात्मक नारे का असर भी होता है, दरअसल इस निराशाजनक नारे के आने के बाद उनके बचे-खुचे समर्थक ये सोचकर और भी निराश हैं कि जिन्हें हम ताकतवर समझ रहे थे, वो तो सत्ता में रहकर भी कमजोरी की ही बातें कर रहे हैं। जिस आदर्श राज्य की कल्पना हमारे देश में की जाती है, उसके आधार में अभय होता है, भय नहीं। ये सच है कि भयभीत ही भय बेचता है, क्योंकि जिसके पास जो होगा, वो वही तो बेचेगा।

भड़काऊ भाषा से सावधानी बरतने का आग्रह

इस बयानबाजी के बीच, बसपा प्रमुख मायावती ने भी अपना पक्ष रखा और सभी पक्षों से भड़काऊ भाषा के साथ सावधानी बरतने का आग्रह किया। सपा फिलहाल भाजपा की अपील का मुकाबला करने के लिए जाति और समुदाय के आधार पर अपने पीडीए गठबंधन को मजबूत करने की कोशिश कर रही है। हाल ही में सपा कार्यालय के बाहर लगे एक पोस्टर ने बहस को फिर से हवा दे दी। इसमें लिखा था, मठाधीश बांटेंगे और काटेंगे… पीडीए जोड़ेगी और जीतेगी।

‘बटेंगे तो कटेंगे’ का नारा महाराष्ट्र में भी गूंजने लगा

यह विभाजनकारी राजनीति के खिलाफ हाशिए पर पड़े समुदायों को एकजुट करने की सपा की आतुरता को दर्शाता है। इस बीच मायावती मतदाताओं को बीजेपी का समर्थन करने के लिए प्रोत्साहित कर रही हैं। वह अपनी पार्टी को सपा-भाजपा के नारे के विकल्प के रूप में पेश कर रही हैं जिसे वह अधिक महत्वपूर्ण मुद्दों से ध्यान भटकाने वाला मानती हैं। ‘बटेंगे तो कटेंगे’ का नारा उत्तर प्रदेश से आगे बढ़कर महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों में भी गूंज रहा है। वहां बीजेपी हिंदू एकता को बढ़ावा देने के लिए इसका इस्तेमाल कर रही है। ‘बटेंगे तो कटेंगे’ का नारा पहली बार हरियाणा चुनावों के दौरान सामने आया था, जब सीएम योगी ने सामाजिक विभाजन को रोकने के लिए हिंदू एकता का आग्रह किया था। इसके जवाब में अखिलेश यादव ने जवाबी नारा ‘जुड़ेंगे तो जीतेंगे’ दिया। अब मायावती भी नारेबाजी की जंग में शामिल हो गईं, क्योंकि उन्होंने दावा किया कि उपचुनाव के मैदान में बीएसपी की एंट्री ने भाजपा और सपा दोनों को बेचैन कर दिया है। दोनों ही पार्टियां पोस्टर और नारों के माध्यम से जनता का ध्यान खींचने के लिए संघर्ष कर रही हैं।

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