Gandhinagar news : गुजरात का पाली उत्सव वाकई अनोखा है। पल्ली एक प्रकार की लकड़ी का ढ़ांचा है, जिसमें 5 ज्योत होती हैं, इस पर घी का अभिषेक किया जाता है। सामान्य तौर पर माता की ज्योत में घी अर्पण किया जाता है, लेकिन पल्ली उत्सव में जिस तरह घी का चढ़ावा चढ़ता है, वो अनोखा है। नवरात्र के नवमी-दशमी की रात मां वरदायिनी की रथ यात्रा पूरे गांव में घूमती है। इस दौरान श्रद्धालु मां के दर्शन करते हैं और बाल्टियां और बैरल भर घी माता पर अर्पित करते हैं।
बहती नजर आतीं घी की नदियां
पांडव काल से चली आ रही पल्ली की यह परंपरा आज भी कायम है। असल में हर साल की तरह इस साल भी रूपाल गांव में घी की नदियां बहती नजर आईं। पल्ली की विशेषताओं में घी अभिषेक प्रमुख है. पल्ली में लाखों श्रद्धालुओं द्वारा लाखों लीटर घी चढ़ाया गया. हजारों सालों से चली आ रही परंपरा के मुताबिक पल्ली आसु सूद नोम के दिन निकलती है।
रूपाल गांव के 27 चौराहे
रूपाल गांव में 27 चौराहे हैं जहां बड़े-बड़े बर्तनों, बैरल में घी भरकर रखा जाता है। जैसे ही पल्ली वहां आती है, लोग इस घी को माता की पल्ली पर अभिषेक करते हैं। अभिषेक करते ही ये घी नीचे जमीन पर गिर जाता है, जिसपर इस गांव के एक खास समुदाय का हक रहता है। इस समुदाय के लोग इस घी को इकट्ठा कर इसे पूरे साल इस्तमाल करते हैं।
किया जाता है घी का अभिषेक
पांडवों के वनवास काल की कहानी से जुड़ी यह परंपरा आज भी कायम है। पल्ली पूरे गांव के 27 चौराहो पर होते हुए पुन: मंदिर पहुंचती है। गांव के सभी चौराहों पर पल्ली पर घी का अभिषेक किया जाता है। हजारों श्रद्धालु पल्ली पर घी का अभिषेक कर अपनी मन्नत पूरी करते हैं। हालांकि इस बार माताजी के गोख में कबूतरों को देखकर श्रद्धालुओं में एक अलग ही खुशी देखने को मिली।
पांडवों के अज्ञातवास से जुड़ी है कहानी
रुपाल गांव की वरदायिनी माता की कहानी पांडवों से जुडी हुई है। कहा जाता है कि पांडव अपने अज्ञातवास में यहीं आकर रुके थे और अपने शस्त्र छुपाने के लिए उन्होंने वरदायिनी मां का आह्वान किया था। घी का अभिषेक करने पर वरदायिनी मां उत्पन्न हुईं और पांडवों को वरदान दिया था। पांडवों ने तब संकल्प किया था कि हर नवरात्र की नवमी की रात को वरदायिनी माता के रथ को निकालकर उसे घी का अभिषेक करवाएंगे, तब से यह परंपरा चली आ रही है।