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छिन्नमस्तिका मंदिर रजरप्पा में भक्तों की याचना कभी खाली नहीं जाती, जानें इसका पौराणिक महत्व

छिन्नमस्तिका मंदिर रजरप्पा में भक्तों की याचना कभी खाली नहीं जाती, जानें इसका पौराणिक महत्व

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Ranchi news : रजरप्पा मंदिर जिसे छिन्नमस्तिका मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। झारखंड के रामगढ़ जिले में स्थित एक प्रसिद्ध शक्ति पीठ है। यह मंदिर मां छिन्नमस्तिका (छिन्नमस्ता) को समर्पित है, जो देवी दुर्गा के उग्र स्वरूपों में से एक हैं। इस मंदिर का उल्लेख विभिन्न तंत्र ग्रंथों में किया गया है और यह तंत्र साधना का एक प्रमुख केंद्र माना जाता है। जो भी भक्त यहां आकर मां छिन्नमस्तिका से याचना, प्रार्थना करता है या मन्नत मांगता है, उसकी पूरी हो जाती है। इसी कारण यहां भक्तों का सालोंभर तांता लगा रहता है।

जानिए छिन्नमस्तिका मंदिर रजरप्पा की पौराणिक कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार, मां छिन्नमस्तिका का यह रूप सर्वस्व त्याग और बलिदान का प्रतीक है। कथा के अनुसार

एक बार मां पार्वती अपनी दो सहचरी योगिनियों जया और विजया के साथ मंदाकिनी नदी में स्नान कर रही थीं। स्नान के बाद योगिनियों को अत्यधिक भूख लगी, और उन्होंने माता से भोजन की याचना की। माता ने उन्हें धैर्य रखने को कहा, लेकिन उनकी भूख बढ़ती ही गई।

योगिनियों की इस स्थिति को देखकर माता ने तुरंत अपनी कृपाण से अपना ही सिर काट दिया। जैसे ही सिर कटा, उनकी गर्दन से रक्त की तीन धाराएँ निकलीं।

1. एक धारा योगिनि जया के मुख में गई।

2. दूसरी धारा विजया के मुख में गई।

3. तीसरी धारा स्वयं माता के कटे हुए सिर के मुख में गई।

इस घटना से यह सिद्ध होता है कि माता न केवल स्वयं के लिए, बल्कि अपने भक्तों और सहयोगियों के लिए भी सर्वस्व अर्पण करने को तत्पर रहती हैं। यह स्वरूप त्याग, बलिदान और सृष्टि-चक्र का प्रतीक है।

मंदिर का धार्मिक महत्व

शक्ति पीठ: कुछ मान्यताओं के अनुसार, रजरप्पा मंदिर को 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है, जहाँ देवी का सिर गिरा था।

तंत्र साधना का प्रमुख केंद्र

इस मंदिर में विशेष रूप से तांत्रिक पूजा-अर्चना होती है। यहाँ बलि प्रथा भी प्रचलित थी, लेकिन अब इसे हतोत्साहित किया जाता है।

महाविद्या साधना

छिन्नमस्ता दस महाविद्याओं में छठी महाविद्या मानी जाती हैं। इसलिए यह स्थान तंत्र साधकों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

रजरप्पा मंदिर का अन्य धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व

यह मंदिर भैरवी और दामोदर नदी के संगम पर स्थित है, जो इसे और अधिक पवित्र बनाता है।

यहाँ काली, सूर्य, हनुमान और महादेव के भी छोटे-छोटे मंदिर हैं।

छिन्नमस्तिका माता को प्रसन्न करने के लिए भक्तजन कुमकुम, नारियल और लाल वस्त्र चढ़ाते हैं।

महत्वपूर्ण त्योहार और अनुष्ठान

1. दुर्गा पूजा और नवरात्रि: इन दिनों यहाँ विशेष पूजा होती है।

2. माघ और चैत्र महीने की अमावस्या: इन दिनों यहाँ विशाल मेला लगता है और भक्तजन गंगा स्नान की तरह संगम में स्नान करते हैं।

3. तंत्र साधना के विशेष अनुष्ठान: यहाँ कई तांत्रिक तंत्र-मंत्र की साधना के लिए आते हैं।

4. रजरप्पा का छिन्नमस्तिका मंदिर न केवल शक्ति उपासना का एक महान केंद्र है, बल्कि यह त्याग, बलिदान और आत्म-ज्ञान का भी प्रतीक है। यहाँ आने वाले भक्तों को एक दिव्य और रहस्यमयी आध्यात्मिक अनुभूति होती है।

छिन्नमस्तिका की बिना सिर वाली प्रतिमा स्थापित है

मंदिर परिसर में माँ छिन्नमस्तिका की बिना सिर वाली प्रतिमा स्थापित है, जो तंत्र साधना और शक्ति उपासना का महत्वपूर्ण केंद्र है। यहाँ हर साल हजारों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं, विशेषकर नवरात्रि के अवसर पर, जब मंदिर में विशेष पूजा और अनुष्ठानों का आयोजन होता है।

दामोदर और भैरवी नदी का संगम

मंदिर के आसपास का प्राकृतिक सौंदर्य, विशेष रूप से दामोदर और भैरवी नदियों का संगम, इस स्थान की आध्यात्मिकता को और भी बढ़ाता है। यह स्थान तंत्र साधकों के लिए विशेष महत्व रखता है और यहाँ की वास्तुकला तथा मूर्तिकला अद्वितीय है। रजरप्पा मंदिर का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व इसे झारखंड के प्रमुख पर्यटन स्थलों में शामिल करता है, जहाँ श्रद्धालु और पर्यटक दोनों ही बड़ी संख्या में आते हैं।

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