कांग्रेस ने अपनी रणनीति से बढ़ा दीं कांग्रेस की मुश्किलें
महाराष्ट्र में कांग्रेस ने सपा को दे दिया है धोबिया पछाड़
Lucknow News : यूपी में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की चुनौती बढ़ गई है। उन्होंने विधानसभा उपचुनाव में सभी 9 सीटों पर अपने उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया है। चुनावी मैदान में अब अखिलेश के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपनी पीडीए पॉलिटिक्स को एक बार फिर जमीन पर उतारने की है। लोकसभा चुनाव की तर्ज पर अखिलेश के साथ इस समय कांग्रेस खड़ी नहीं दिख रही है। कांग्रेस इस बार उपचुनाव के मैदान में साइलेंट प्लेयर की भूमिका में है। पार्टी ने समाजवादी पार्टी को समर्थन का ऐलान तो कर दिया है। हालांकि चतुराई के साथ कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने साफ कर दिया कि इस बार के उपचुनाव में कांग्रेस का कोई उम्मीदवार नहीं है।
यूपी में 2017 और 2024 में कांग्रेस ने सपा के साथ गठबंधन किया। दोनों ही समय पार्टी अखिलेश के पीछे खड़ी दिख रही थी। लेकिन इस उपचुनाव में पार्टी की रणनीति ने सपा को हैरान कर दिया है। अखिलेश के अकेले चुनाव में उतरने की घोषणा के बाद अजय राय ने सधे अंदाज में अखिलेश यादव को जवाब दे दिया। राय ने कहा कि कांग्रेस उपचुनाव नहीं लड़ रही है। अखिलेश ने सभी नौ सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े करने के ऐलान के समय कहा था कि कांग्रेस के उम्मीदवार सपा के चुनाव चिह्न यानी साइकिल की सवारी करते दिखेंगे। राय के बयान ने साफ कर दिया कि उपचुनाव में कांग्रेस का कोई उम्मीदवार खड़ा ही नहीं हो रहा है। सिंबल कोई भी क्यों न हो। कांग्रेस ने बड़ी की चतुराई से स्पष्ट कर दिया है कि यूपी में अखिलेश जिस तरह की राजनीति कर रहे हैं, उसमें वह साथ नहीं है। दरअसल, कांग्रेस यूपी में बराबरी की हिस्सेदारी चाह रही थी। 10 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव को लेकर पार्टी की दावेदारी पांच सीटों की थी। अखिलेश यादव ने पहले कांग्रेस को दो सीटों पर समेटने की कोशिश की। बाद में बात न बनती देख फूलपुर सीट का ऑफर दिया। लेकिन फूलपुर सीट से पहले ही सपा ने मुस्लिम उम्मीदवार मुज्तबा सिद्दीकी को खड़ा कर बड़ा दांव खेल दिया था। अगर कांग्रेस वहां से अपने उम्मीदवार सुरेंद्र यादव को खड़ा करती तो कोई फायदा नहीं होता। कांग्रेस के लिए चुनौती अल्पसंख्यक वोट बैंक को साधने की थी। मुसलमानों के बीच एक बड़ा संदेश जाता कि पार्टी ने उनके उम्मीदवार का टिकट कटवा दिया। अल्पसंख्यक वोट बैंक को साधने के लिए कांग्रेस ने फूलपुर से अपने कदम पीछे खींच लिए। कांग्रेस की यह राजनीति अब अखिलेश के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन गई है। अगर पार्टी उपचुनाव में बेहतर प्रदर्शन नहीं करती है तो कांग्रेस का दबाव बढ़ेगा।
अखिलेश ने मुलायम के निधन के बाद पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर ले जाने के बड़े दावे किए। पार्टी इसीलिए इंडिया गठबंधन के साथ आई ताकि देश भर में पार्टी को विस्तारित करने में मदद मिलेगी। हालांकि पिछले विधानसभा चुनावों के दौरान पार्टी को किसी भी प्रदेश में उचित तरजीह मिलती नहीं दिखी है। चाहे एमपी चुनाव हो, राजस्थान चुनाव या फिर हरियाणा विधानसभा चुनाव, इन तमाम चुनावों के दौरान कांग्रेस ने सपा को कोई भाव नहीं दिया। महाराष्ट्र में भी सपा के लिए स्थिति बदलती नहीं दिख रही है। महाराष्ट्र में अखिलेश से लेकर अबु आजमी तक एमवीए गठबंधन में चुनाव लड़ने का दावा कर रहे थे। हालांकि सपा को कांग्रेस और एनसीपी शरद पवार गुट ने धोबिया पछाड़ दे दिया और एक भी सीट नहीं दी। अखिलेश महाराष्ट्र में बदली राजनीति पर कुछ बोल नहीं पा रहे हैं। रविवार को उनका एक बयान आया जो इस समय चर्चा में है। अखिलेश ने कहा कि हम लोग इग्नोर होने वाले लोग हैं। यूपी उपचुनाव की ही सियासी मजबूरी के कारण सपा खुलकर कांग्रेस पर हमलावर नहीं हो पा रही है। अखिलेश ने कहा है कि हमारी पहली कोशिश गठबंधन में बने रहने की होगी। अगर वे हमें गठबंधन में नहीं रखना चाहते हैं तो हम वहीं चुनाव लड़ेंगे जहां हमारी पार्टी को वोट मिलेंगे। सपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती खुद को राष्ट्रीय स्तर पर साबित करने की है। लोकसभा चुनाव में 37 सीटें जीतने के बाद अखिलेश को उम्मीद थी कि उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर उचित तरजीह मिलेगी, लेकिन सपा को कांग्रेस किसी भी प्रदेश में खड़ा होने का स्पेस तक नहीं दे रही है। यह उनके लिए सबसे बड़ी परेशानी है। फिलहाल सपा की सबसे बड़ी चुनौती यूपी उपचुनाव है। पार्टी के प्रदर्शन में अगर गिरावट आती है तो विधानसभा चुनाव 2027 में अपने लिए एक बेहतर स्थिति बनाना मुश्किल होगा। साफ है कि अखिलेश को इस समय इंडिया गठबंधन की सबसे अधिक जरूरत है। वहीं कांग्रेस अपनी अलग रणनीति के साथ अलग जमीन तैयार करती दिख रही है।