@राजीव थेपड़ा
मनुष्य को जीने के लिए इस दुनिया में बहुत कुछ करना पड़ता है। बचपन से बच्चों को पढ़ाया-लिखाया जाता केवल इसलिए है कि समाज में इज्जत से सिर उठा के जी सकें। अपनी-अपनी सलाहियत के अनुसार हर इंसान अपने रोजगार का रास्ता चुन लेता है। कोई व्यापार करने लगता है, कोई विज्ञान में महारत हासिल करता है, तो कोई बैंकिंग में तो कोई और ; उसे जिस विवशता या अवसर में जो मिलता है, वह उसी के अनुसार कुछ भी या नौकरी कर लेता है। इस प्रकार इंसान का जीवन दो खास हिस्सों में बंट जाता है। पहला उसका घर-परिवार और दूसरा उसकी नौकरी या व्यापार।
किसी के पास अच्छा व्यापार या नौकरी है और उसका घर भी अच्छे से चल रहा है, तो वह इंसान एक सुखी इंसान कहलाता है। लेकिन, इन दोनों सुखों को पाने के लिए इन्सान को बहुत-सी कुर्बानियां देती पड़ती हैं, मेहनत करनी पड़ती है। इसमें औरत या मर्द का कोई सवाल नहीं आता, बल्कि जैसा कि मैंने कहा…अपनी-अपनी सलाहियतों का इस्तेमाल करते हुए औरत और मर्द इन सुखों को पाने की कोशिश करते हैं।
यकीनन, यदि किसी घर में पति और पत्नी दोनों घर पर बैठ कर रोटियां पकायें, बच्चों की परवरिश में ही लगे रहें, तो उनको यह सब करने के लिए धन कहां से आयेगा? और वहीं यदि दोनों नौकरी करने लगें, तो घर का सुकून खत्म हो जाता है, क्योंकि केवल धन से ना तो औलाद की सही परवरिश सम्भव है और ना ही शाम के दो घंटों में घर को सम्भालना सम्भव है।
सबसे बेहतर तरीके से वही घर चलता है जहां एक धन कमाने के लिए घर से बाहर जाये और दूसरा घर पर रहते हुए औलाद की परवरिश और घर तथा समाज के दूसरे कामों को अंजाम दे। कौन किस काम को करेगा, इसका फैसला उनकी सलाहियत करेगी ना कि हमारी जिद। यह औरत ही है, जो अपने गर्भ में नौ महीने अपने बच्चे को रखती है और जन्म होने पर उस बच्चे को दूध पिलाना होता है। ऐसे में बच्चा अपनी मां से लगा रहता है और वह जैसी परवरिश करती है, वैसा बनता चला जाता है। यह दोनों काम किसी मर्द के लिए करना सम्भव नहीं, यह सभी जानते हैं। ऐसे में इस बात की जिद करना कि हम घर को नहीं सम्भालेंगे ; बस बाहर जा के धन कमायेंगे, कहां तक उचित है?
मर्द को ना गर्भ में बच्चे रखने हैं, ना दूध पिलाना है। शारीरिक रूप से भी अधिक मजबूत है, तो यदि वह बाहर के काम करे, मजदूरी करे, नौकरी करे, व्यापार करे, तो इसे नाइंसाफी तो नहीं कहा जा सकता? यहां ना तो किसी गुलामी की बात है और ना ही किसी जुल्म की बात है। यह बात है पति और पत्नी के समझोते की, जिसके नतीजे में दोनों पारिवारिक सुख का अनुभव करते हुई सुखी जीवन व्यतीत करते हैं।
यदि किसी अलग परिस्थिति में या मजबूरी में यह आवश्यक हो जाये कि पत्नी नौकरी करे या ऐसी औरत, जिसकी कोई औलाद नहीं, घर पर पड़े-पड़े क्या करे, तो यकीनन उसे भी अपने व्यापार में साथ देना चाहिए और नौकरी कर के कुछ और धन कमाने कि कोशिश करनी चाहिए।
लेकिन, पति कमाने में सक्षम है, व्यापार भी बढ़िया है ; फिर भी अपनी औलाद के प्रति, घर के प्रति, जिम्मेदारी को महसूस नहीं करते हुए बाहर नौकरी करने की जिद या किसी और काम में समय गंवाने की जिद क्या घर का सुकून और चैन खत्म नहीं कर देगी?
माना कि घर की जिम्मेदारियों को निभाना आसान नहीं, घर में बंध क र रह जाना पड़ता है। अक्सर बुजुर्ग महिलाएं घर की बहू को ना जाने क्या-क्या सुना देती हैं, बहुत बार खराब पति होने पर पति की चार बातें घर की सभी जिÞमेदारियां निभाने के बाद भी सुननी पड़ती है, लेकिन यह हर घर में तो नहीं होता?
क्या नौकरी में मर्द को जिल्लत का सामना नहीं करना पड़ता? क्या खराब अफसर के आ जाने पर बुरा-भला नहीं सुनना पड़ता? यह तो जीवन है, जिसमें इस तरह की बातें होती रहती रहती हैं। इसका बहाना बना के यदि मर्द नौकरी की गुलामी से भागने लगे और औरत घर में रह कर अपनी जिमेदारियों को निभाने को गुलामी का नाम देते हुए उससे भागने लगे, तो यकीन जानिए, मानसिक शांति, जिसके लिए हम सब कुछ करते हैं, खत्म हो जायेगी। आज तरक्की के युग में ऐसे घरों की संख्या दिन ब दिन बढ़ती जा रही है।
ध्यान रहे, अकारण जिद घरों को बसाते नहीं, उजाड़ देते हैं। कुछ लोग तो इतने अव्यावहारिक अपनी जिद में हो जाते हैं कि तरक्की के नाम पर महिलाओं को शादी ना करने तक का मशविरा दे डालते हैं। पति और पत्नी को अपनी जिद छोड़ क र अपनी-अपनी सलाहियतों, परिस्थियों के अनुसार काम को बांट लेना चाहिए और सुख से जीवन व्यतीत करना चाहिए। यही वास्तविक तरक्की कहलाती है।