Ranchi news : बात अविभाजित बिहार में 1980 के दशक में झारखंड के विभिन्न जिलों के हाई स्कूलों में शिक्षक पद पर नियुक्त कर्मियों की सेवा समाप्त करने एवं सेवानिवृत्तकर्मियों की पेंशन रोकने को लेकर है। लगभग 35 वर्षों की सेवा के बाद इन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। और तो और पिछले पांच वर्षों से सेवानिवृत्त शिक्षकों को पेंशन भी नहीं दिया जा रहा। उम्र के इस पड़ाव पर सरकार के इस रवैये से क्षुब्ध दर्जनों शिक्षकों ने न्याय की आस में हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
बाद सरकार को पेंशन रोकने का अधिकार नहीं
प्रार्थियों का कहना है कि उनकी नियुक्ति वर्ष 1980, 1982 में एकीकृत बिहार में हुई थी। उन्हें झारखंड के गुमला, हजारीबाग आदि जिलों में पदस्थापित किया गया था। 35 वर्ष से अधिक की हाई स्कूल शिक्षक के रूप में सेवा के बाद उन्हें नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया और जो हाई स्कूल शिक्षक सेवानिवृत्त हो गए। उनकी वर्ष 2018 के आसपास पेंशन रोक दी गई। अदालत को बताया गया कि प्रार्थियों को हाई स्कूल शिक्षक के रूप में सारी प्रक्रियाओं को पूरी करने के बाद झारखंड के विभिन्न जिलों में नियुक्त किया गया था। सरकार की ओर से पेंशन की एक बार स्वीकृति मिल जाती है तो उसके तीन वर्ष तक ही सरकार पेंशन रोक सकती है। करीब 30 वर्ष बीत जाने के बाद सरकार को पेंशन रोकने का अधिकार नहीं है।
पूरी हुई सुनवाई, फैसला सुरक्षित
हाई कोर्ट ने बहरहाल इससे संबंधित करीब 20 याचिकाओं पर बुधवार को सुनवाई पूरी करने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया है। बताते चलें कि प्रार्थियों ने याचिका दाखिल कर उनकी नियुक्ति को बहाल करने या पेंशन को फिर से शुरू करने का आग्रह किया है। अब उन्हें कोर्ट के फैसले का बेसब्री से इंतजार है।