Mumbai news : आज का भारत अपनी युवा शक्ति के दम पर न्यू इंडिया की ऐसी ताकत के रूप में पहचाने जाने लगा है, जो विश्व गुरु की राह पर आगे बढ़ने का दावा करता है। इसी माहौल में राजनीतिक कटुता के बढ़ाने के भी रोज तमाम उदाहरण देखने को मिलते हैं। ऐसे में विश्व गुरु बनने की राह पर चलने के लिए कुछ नई फिलासफी के बारे में भी जानना जरूरी है। जब मंदिर-मस्जिद की बात राजनीतिक रूप से होती है, तो भारत के विश्व गुरु होने का गुण विकृत होता है। मंदिर वाले मंदिर में विश्वास रखें और मस्जिद वाले मस्जिद में। लेकिन, साथ ही दोनों एक दूसरे का सम्मान करें और समझें कि दोनों भारत के नागरिक हैं और दोनों को मिलकर भारत को कैसे विश्व गुरु बनाना है।
हरिवंश राय बच्चन की मधुशाला
अब आइए मूल मुद्दे पर। हम बात करना चाह रहे हैं आधुनिक हिंदी के अत्यंत चर्चित कवि हरिवंश राय बच्चन की। उनके बेटे अमिताभ बच्चन और उनके पोते अभिषेक बच्चन को आप बॉलीवुड एक्टर के रूप में जानते हैं। लेकिन, हरिवंश राय बच्चन की फिलासफी कम लोगों को मालूम है कि 1935 में ही उन्होंने अपनी सबसे चर्चित रचना ‘मधुशाला’ हिंदी संसार को दी थी और इसमें एक अनोखे जीवन दर्शन की अनुभूति मिलती है। कहा जाता है कि हिंदी में शराब पर ऐसी कोई कृति नहीं रची गई, लेकिन वास्तव में यह शराब पर लिखी गई कृति नहीं है। यह जीवन को तनाव मुक्त बनाने के लिए अपनी अनुभूति में परिवर्तन की सीख देती है। हरिवंश राय बच्चन ने अपने जीवन में कभी शराब को टच तक नहीं किया था, ऐसा हिंदी संसार के उनके नजदीकी लोग बताते हैं। आज के संदर्भ में मधुशाला की यह पंक्तियां अत्यंत मौजूद हैं- वैर बढ़ाते मंदिर-मस्जिद, मेल कराती मधुशाला।
मधुशाला की भूमिका का महत्व
मधुशाला की भूमिका में हरिवंश राय बच्चन स्वयं लिखते हैं, मैं तो क्या मेरे खानदान में मांस-मदिरा वर्जित है। हम अमोढ़ा के पांडेय कायस्थ हैं। अमोढ़ा के पांडेय कायस्थ उत्तर प्रदेश के अवध इलाके के प्रतापगढ़ के बाबूपट्टी और अगल-बगल के गांवों में रहते हैं। प्रतापगढ़ सुल्तानपुर से मिला हुआ है और बाबूपट्टी के कुछ किमी की दूरी के बाद ही सुल्तानपुर जिले की सीमा शुरू हो जाती है। राय जगत सिहं के वंशज बस्ती, सुल्तानपुर और प्रतापगढ़ में अमोढ़ा के पांडेय कायस्थ के नाम से जाने जाते हैं। हम जानते हैं कि हरिवंश राय बच्चन की मधुशाला जितनी चर्चित हुई उतनी उनकी कोई कृति चर्चित नहीं हुई लेकिन उन्होंने जानदार गद्य भी लिखा है। इसके लिए आपको उनकी आत्मकथा पढ़नी होगी। यह आत्मकथा बहुत विस्तृत है जिसमें ‘दशद्वारा से सोपान तक’ सर्वाधिक महत्वपूर्ण है।