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🗓️ Mon, Mar 31, 2025 🕒 12:11 PM

बड़े भाई ने कहा, मेरे पास गाड़ी,बंगला है, तेरे पास क्या है, छोटे ने कहा- मेरे पास मां है…

बड़े भाई ने कहा, मेरे पास गाड़ी,बंगला है, तेरे पास क्या है, छोटे ने कहा- मेरे पास मां है…

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Mumbai news, Bollywood news : बॉलीवुड की दुनिया में कपूर खानदान का जलवा पहले से चलता रहा है। राज कपूर शोमैन कहे जाते थे। उनके पिता पृथ्वीराज कपूर बॉलीवुड की शानदार शख्सियत थे और उनके थिएटर की चर्चा सभी करते थे। पृथ्वीराज कपूर के दो और बेटे थे- शम्मी कपूर और शशि कपूर। तीनों की शख्सियत अलग-अलग थी। तीनों ने अपने-अपने तरीके से बॉलीवुड में अपना स्थान बनाया और एक अलग पहचान कायम की। हम आज शशि कपूर की चर्चा कर रहे हैं, क्योंकि राज कपूर और शम्मी कपूर के बारे में तो जानकारियां बहुत हैं, शशि कपूर की फिल्मों की भी लोगों को जानकारियां हैं, लेकिन शशि कपूर की अलग शख्सियत का मायना क्या है और उनका असली अचीवमेंट क्या है, यह जानने के लिए यह जानना जरूरी है कि वास्तव में शशि कपूर का असली नाम शशि कपूर नहीं था। 1978 में अमिताभ बच्चन के साथ आई फिल्म दीवार को याद कीजिए, जब विजय के रूप में करैक्टर अमिताभ कहते हैं कि मेरे पास गाड़ी है, बंगला है, शान-शौकत है, तुम्हारे पास क्या है, तो रवि के रूप में शशि कपूर कहते हैं मेरे पास मां है। आज भी दीवार फिल्म का यह डायलॉग लोगों की जुबान पर रहता है और इस डायलॉग को बोलने का अंदाज जो शशि कपूर का था, वह शायद किसी और का नहीं होता। 1938 में जन्मे शशि कपूर का निधन 2017 में हो गया था, लेकिन आज भी यह डायलॉग लोगों को याद रहता है।

जन्म का नाम बलवीर राज कपूर

अब आते हैं असली नाम पर, फिर होगी फिल्मों की चर्चा। जानकारी के अनुसार, 1938 में जन्मे शशि कपूर के जन्म का नाम बालवीर राज कपूर था। कहा जाता है कि उनकी दादी ने उनका नाम बलबीर राज कपूर रखा था। लेकिन, उनकी मां रामसरनी को ये नाम पसंद नहीं था। इसलिए वो उन्हें प्यार से शशि बुलाती थीं। धीरे-धीरे उनका नाम शशि ही मशहूर हो गया और फिल्मों में भी वो इसी नाम से चमके।

बाल कलाकार के रूप में शुरू किया करियर

शशि कपूर 1945 में फिल्म ‘तदबीर’ से बाल कलाकार के रूप में अपनी करियर की शुरुआत की थी। उन्होंने आग’, ‘संग्राम’, ‘आवारा’ जैसी फिल्मों में बाल कलाकार की भूमिका निभाई और इसके बाद धीरे-धीरे उनके अंदर एक प्रवण कलाकार का विकास हो रहा था जिसका प्रमाण उनकी पहली फिल्म ‘धरमपुत्र’ मैं सबसे पहले मिला।

मिला दादा साहेब फाल्के अवार्ड

याद कीजिए जब वह, ‘जब-जब फूल खिले’, ‘सत्यम शिवम सुंदरम’, ‘दीवार’, ‘नमक हलाल’ जैसी कई सुपरहिट फिल्मों में वो नजर आए। इन सभी फिल्मों में उन्होंने दमदार भूमिका निभाई। 1971 में अपने पिता की मृत्यु के बाद शशि ने अपनी पत्नी जेनिफर के साथ मिलकर मुंबई में पृथ्वी थिएटर को फिर से शुरू किया। परंपरा को जिंदा रखने का उनमें एडम में जज्बा था। उनकी उपलब्धियां को ध्यान में रखकर 2011 में पद्म भूषण से नवाजा गया था। फिल्मी दुनिया का सबसे बड़ा अवार्ड दादा साहेब फाल्के पुरस्कार उन्हें 2014 में दिया गया था।

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