मौनी अमावस्या पर महाकुम्भ मेला प्रशासन ने जारी किया अखाड़ों के स्नान का कार्यक्रम
Mahakumbh Nagar news : तीर्थराज में महाकुम्भ की भव्य शुरुआत हो चुकी है। मकर संक्रांति को महाकुम्भ के पहले अमृत स्नान के बाद 29 जनवरी (बुधवार) को दूसरा अमृत स्नान मौनी अमावस्या को होगा। प्रयागराज महाकुम्भ मेला प्रशासन ने दूसरे अमृत स्नान के लिए अखाड़ों के स्नान का कार्यक्रम जारी कर दिया है। अनुमान है कि इस दिन 10 करोड़ से अधिक श्रद्धालु संगम में डुबकी लगायेंगे।
श्रीदूधेश्वर मंदिर के पीठाधीश्वर एवं जूना अखाड़ा के अंतरराष्ट्रीय प्रवक्ता श्रीमहंत नारायण गिरि महाराज ने मंगलवार को बताया कि मौनी अमावस्या पर सबसे पहले श्रीपंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी व श्रीशम्भु पंचायती अटल अखाड़ा स्नान करेगा। दोनों अखाडे़ अपने शिविरों से प्रात: 04 बजे प्रस्थान कर संगम घाट पर प्रात: 05 बजे पहुचेंगे। 40 मिनट के स्नान के बाद प्रात: 05.40 पर घाट से प्रस्थान कर अखाड़े प्रात: 06.40 पर अपने शिविरों में पहुंच जायेंगे।
दूसरे स्थान पर श्रीतपोनिधि पंचायती श्रीनिरंजनी अखाड़ा एवं श्रीपंचायती अखाड़ा आनन्द अमृत स्नान करेगा। इसका शिविर से प्रस्थान का समय सुबह 4.50 बजे, घाट पर आगमन का समय 5.50 बजे होगा। स्नान का समय 40 मिनट रहेगा।
तीन संन्यासी अखाड़े श्रीपंचदशनाम जूना अखाड़ा, श्रीपंच दशनाम आवाहन अखाड़ा और श्रीपंचाग्नि अखाड़ा का शिविर से प्रस्थान का समय 05.45 बजे, घाट पर आगमन का समय 06.45 रहेगा। स्नान का समय 40 मिनट तय किया गया है।
तीन बैरागी अखाड़ों में सबसे पहले अखिल भारतीय श्रीपंच निवार्णी अनी अखाड़ा 08.25 पर शिविर से चलेगा, 09.25 पर घाट पर पहुंचेगा और 30 मिनट स्नान के बाद 09.55 पर घाट से शिविर के लिए रवाना हो जायेगा।
अखिल भारतीय श्रीपंच दिगम्बर अनी अखाड़ा 09.05 पर शिविर से निकल कर 10.05 पर घाट पहुंचेगा। अखाड़े को स्नान के लिए 50 मिनट का समय दिया गया है।
अखिल भारतीय श्रीपंच निर्मोही अनी अखाड़ा 10.05 पर शिविर से चलेगा, 11.05 पर घाट पहुंचेगा। 30 मिनट स्नान के बाद 11.35 पर प्रस्थान कर 12.35 पर शिविर में आ जायेगा।
श्रीपंचायती नया उदासीन अखाड़ा 11 बजे पर शिविर से रवाना होकर 12 बजे घाट पहुंचेगा और 55 मिनट स्नान करने के बाद 12.55 पर घाट से रवाना होकर 01.55 बजे शिविर पहुंच जायेगा।
श्रीपंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन निर्वाण 12.05 बजे शिविर से चल कर 1.05 पर घाट पहुंचेगा। एक घंटा स्नान के बाद 2.05 पर घाट से रवाना होकर 3.05 पर शिविर आ जायेगा।
सबसे अंत में श्रीपंचायती निर्मल अखाड़ा स्नान करेगा। यह अखाड़ा दोपहर 01.25 पर शिविर से चलेगा और 02.25 पर घाट पहुंचेगा। ठीक 40 मिनट स्नान करने के बाद 03.05 पर घाट से रवाना होकर 04.05 पर शिविर आ जायेगा।
दूसरे अमृत स्नान से एक दिन पहले संगम में उमड़ा जनसैलाब
महाकुम्भ का दूसरा अमृत स्नान मौनी अमावस्या के दिन 29 जनवरी को है। इस दिन आसमान से दूसरी बार अमृत टपकेगा। इस दिन 14 जनवरी को हुए पहले अमृत स्नान से भी अधिक लोगों के पहुंचने की पूरी सम्भावना है। मौनी अमावस्या के दिन किये जानेवाले अमृत स्नान से न केवल आपको शुभ फल मिलते हैं, बल्कि आपके पितरों की आत्मा भी तृप्त होती है। प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक ये चार प्रमुख स्थान हैं, जहां कुम्भ का आयोजन किया जाता है। गौरतलब है कि मौनी अमावस्या को लगभग 10 करोड़ से अधिक श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगायेंगे। मौनी अमावस्या से एक दिन पहले मंगलवार को 03 करोड़ से अधिक लोगों ने संगम में डुबकी लगा कर पुण्य लाभ प्राप्त किया।
कुम्भ मेले का विशेष महत्त्व
सनातन धर्म में कुम्भ मेले का विशेष धार्मिक और आध्यात्मिक महतत्व् है। यह पर्व सनातन संस्कृति की महानता को तो दर्शाता ही है। वहीं, करोड़ों श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक ऊर्जा प्रदान करता है। मान्यता है कि करोड़ों वर्ष पूर्व देवताओं और दानवों के बीच समुद्र मंथन के दौरान जो अमृत कुम्भ निकला था, उसकी अमृत की कुछ बूंदें पृथ्वी पर गिर गयी थीं। उन सभी स्थानों पर हर 12 वर्ष में कुम्भ मेले का आयोजन होता है।
महाकुम्भ का अमृत कुम्भ से सम्बन्ध पुराणों के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान भगवान धन्वंतरि अमृत कुम्भ लेकर आये थे, तब देवताओं और दानवों के बीच अमृत प्राप्ति को लेकर संघर्ष छिड़ गया। भगवान विष्णु ने इस संघर्ष को रोकने और अमृत को सुरक्षित रखने के लिए मोहिनी का रूप धारण किया। उन्होंने अमृत कलश को सुरक्षित रखने के लिए इन्द्रदेव के पुत्र जयंत को सौंपा। जयंत अमृत कुम्भ को लेकर आकाश मार्ग से चले, लेकिन दानवों ने उनका पीछा किया। इस दौरान अमृत की कुछ बूंदें पृथ्वी पर गिर गयीं। ये बूंदें प्रयागराज में गंगा-यमुना-सरस्वती के संगम पर, हरिद्वार में गंगा नदी में, उज्जैन में क्षिप्रा नदी में और नासिक में गोदावरी नदी में गिरीं। इन्हीं स्थानों पर कुम्भ मेले की परम्परा शुरू हुई।
12 साल में कुम्भ मेला, 06 साल में अर्धकुम्भविश्व का सबसे बड़ा मेला हर 12 साल में आयोजित होता है, जबकि हर 06 साल में अर्धकुम्भ का आयोजन किया जाता है। कुम्भ पर्व का महत्व केवल धार्मिक दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इस मेले में संत-महात्मा, ऋषि-मुनि, आस्थावान श्रद्धालु और पर्यटक बड़ी संख्या में शामिल होते हैं।
कुम्भ स्नान का महत्वहिन्दू धर्मग्रंथों में कुम्भ स्नान का महत्त्व विस्तार से वर्णित है। मान्यता है कि कुम्भ में स्नान करने से व्यक्ति के सभी पाप धुल जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसके अलावा, कुम्भ मेला आध्यात्मिक ज्ञान, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और सामाजिक समरसता का भी प्रतीक है। यहां कई आध्यात्मिक और धार्मिक सभाएं आयोजित होती हैं, जिनमें साधु-संतों के प्रवचन, योग साधना और विभिन्न अनुष्ठान शामिल होते हैं।
संगम तट पर कुम्भ मेला प्रयागराज का कुम्भ मेला विशेष रूप से संगम तट पर आयोजित होता है, जहां गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती नदियों का संगम होता है। संगम का यह स्थान हिन्दू धर्म में अत्यन्त पवित्र माना जाता है। कुम्भ मेले के दौरान यहां लाखों श्रद्धालु एकत्रित होकर पवित्र स्नान करते हैं और ईश्वर से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।