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हार तो इस हस्ती की जिंदगी ने कभी देखी ही नहीं, जहां गए, वहीं दमदार, बस यहीं पर…

हार तो इस हस्ती की जिंदगी ने कभी देखी ही नहीं, जहां गए, वहीं दमदार, बस यहीं पर…

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Mumbai news, Bollywood news : कई साल पहले भारत की जिस हस्ती ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया था, लेकिन आज भी उसकी याद किसी के जेहन से बिसर नहीं सकती। उस हस्ती का नाम है दारा सिंह। फ्री स्टाइल कुश्ती के क्षेत्र में दुनिया की अव्वल हस्ती। एक्टिंग के क्षेत्र में शानदार उपलब्धि। राइटिंग की दुनिया में भी कमाल का काम। राजनीति में भी गए तो अपनी मिसाल आप बने। याद कीजिए, रामानंद सागर के सीरियल रामायण में उन्होंने भगवान हनुमान का किरदार निभाया, जिसके बाद उन्हें कई जगह भगवान की तरह पूजा जाने लगा। कहा जाता है कि इस किरदार के लिए दारा सिंह ने मांसाहार तक छोड़ दिया था।

हर प्रतिद्वंद्वी को चटा दी धूल

दारा सिंह को पहलवानी का शौक उन्हें बचपन से था। यही वजह रही कि उन्होंने जहां मौका मिला, वहां अपने प्रतिद्वंद्वी को धूल चटा दी।  पंजाब के अमृतसर स्थित धरमूचक गांव में जन्मे दारा सिंह केपिता सूरत सिंह रंधावा और मां बलवंत कौर के इस लाडले के दांव-पेंच से बचपन से ही आसपास के जिलों में होने वाली कुश्ती के पहलवान रूबरू हो चुके थे।

पहलवानी की उपलब्धियां

साल 1947 में जब देश आजादी का स्वाद चख रहा था, उस वक्त दारा सिंह अपनी पहलवानी का लोह मनवाने सिंगापुर पहुंच गए। वहां उन्होंने मलेशिया के पहलवान को पटखनी देकर अपना नाम रोशन कर लिया। 1954 में वह भारतीय कुश्ती के चैंपियन बने तो कॉमनवेल्थ में भी मेडल अपने नाम किया। उस दौर में अखाड़े में दारा सिंह की दादागिरी इतनी ज्यादा बढ़ गई थी कि विश्व चैंपियन किंग कॉन्ग भी उनके सामने टिक नहीं पाए थे।

इस तरह पहलवानी की दुनिया के बने बेताज बादशाह

किंग कॉन्ग को पटखनी देने के बाद दारा सिंह के सामने कनाडा और न्यूजीलैंड के पहलवानों ने खुली चुनौती दी। दारा सिंह ने कनाडा के चैंपियन जॉर्ज गोडियांको और न्यूजीलैंड के जॉन डिसिल्वा को भी टिकने नहीं दिया। उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था कि जब तक विश्व चैंपियनशिप न जीत लूंगा, तब तक कुश्ती लड़ता रहूंगा। 29 मई 1968 के दिन अमेरिका के विश्व चैंपियन लाऊ थेज को हराकर वह फ्रीस्टाइल कुश्ती के बेताज बादशाह बने।

फिल्मों में अमिट छाप छोड़ी, लेखन भी याद करने लायक 

साल 1952 के दौरान दारा सिंह ने फिल्म संगदिल से बॉलीवुड में कदम रखा। इसके बाद उन्होंने फौलाद, मेरा नाम जोकर, धर्मात्मा, राम भरोसे, मर्द समेत तमाम फिल्मों में काम किया और अपनी अमिट छाप छोड़ी। बता दें कि दारा सिंह ने अपने करियर में 500 से ज्यादा फिल्मों में अपना दम दिखाया। दारा सिंह ने कलम से भी दम दिखाने में कोई कदम नहीं छोड़ी. उन्होंने साल 1989 में अपनी ऑटोबायोग्राफी ‘मेरी आत्मकथा’ लिखी, जो 1993 के दौरान हिंदी में भी प्रकाशित हुआ।

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