New Delhi news : भारतीय राजनीति के आकाश पर ज्योति बसु जैसे राजनेता हमेशा चमकता रहता है। साल 2010 में 96 साल की उम्र में निधन के 15 साल बाद भी इस नेता की व्यापक सूझबूझ और समन्वयकारी समझदारी को सभी इज्जत देते हैं। भारतीय राजनीति में अपना सिमा सिक्का जमाए रखने वाले ज्योति बसु की राजनीतिक ज्योति आज भी अंधेरे से गुजर रही राजनीति को रोशनी देने वाली कहीं जा सकती है। वह 23 वर्षों तक पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री रहे। 1996 में वाजपेयी सरकार के पतन के बाद वह देश का पीएम बनते-बनते रह गए थे, क्योंकि उनकी पार्टी सीपीएम ने इसकी इजाजत नहीं दी थी। बाद में पार्टी ने इसे भूल के रूप में स्वीकार किया था। पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने उनके नाम का प्रस्ताव किया था।
1935 में विदेश से ली थी वकालत की डिग्री
उनकी प्रारंभिक जिंदगी के बारे में देखें तो 2014 में जन्मे इस शख्स की पढ़ाई-लिखाई का आलम यह है की 1935 में इन्होंने लंदन से वकालत की पढ़ाई शुरू की और डिग्री हासिल की। इसके पहले 1932 में वह कोलकाता की प्रेसिडेंसी कॉलेज से अंग्रेजी में बीए ऑनर्स थे। 1930 से ही वह कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य बन गए थे। मतलब लगभग 80 साल तक वह एक कम्युनिस्ट नेता रहे, जो दुनिया में रिकॉर्ड कहा जा सकता है। 1938 से वह कम्युनिस्ट पार्टी में पूर्ण रूप से सक्रिय हो चुके थे।
1977 में बने थे पश्चिम बंगाल के चीफ मिनिस्टर
विदेश से पढ़ाई कर लौट के बाद ज्योति बसु ने लंदन से वकालत त्यागकर वामपंथ की राजनीति को अपनाया और उसी के होकर रह गए। वैचारिक भिन्नता के बावजूद विपक्ष के सभी नेता उनका लोहा मानते थे। 1977 में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में वाममोर्चा सरकार के अगुवा के रूप में राज्य की सत्ता संभालने वाले बसु पश्चिम बंगाल में सबसे अधिक समय तक इस पद पर रहने वाले मुख्यमंत्री थे। उनके इस रिकॉर्ड को अपना पांच टर्म पूरा कर ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक 2000 से 2024 तक वहां के मुख्यमंत्री रहे। ज्योति बसु 1977 से 2000 तक पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री थे उसके बाद बुद्धदेव भट्टाचार्य वहां के मुख्यमंत्री बने, लेकिन वह एक टर्म के बाद फिर मुख्यमंत्री नहीं बन सके, क्योंकि पार्टी ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी से चुनाव हार गई थी।
1957 में बने थे प. बंगाल विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष
राजनीतिक रूप से देखें तो 1957 में पश्चिम बंगाल विधानसभा में वे विपक्ष के नेता चुने गए.1967 में बनी वाम मोर्चे के प्रभुत्व वाली संयुक्त मोर्चा सरकार में ज्योति बसु को गृहमंत्री बनाया गया, लेकिन नक्सलवादी आंदोलन के चलते बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया और वह सरकार गिर गई।
राजीव गांधी, वाजपेयी और आडवाणी से भी थे अच्छे संबंध
कहा जाता है कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने बसु के कामकाज की सराहना की थी और साल 1989 में पंचायती राज पर राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया था। इस कार्यक्रम में राजीव गांधी ने ज्योति बसु के काम की काफी तारीफ की थी। इतना ही नहीं समाजवादी नेताओं से लेकर दक्षिण पंथी नेता अटल बिहारी वाजपेयी और एलके आडवाणी के वैचारिक मतभेद भले ही रहे हों, लेकिन ज्योति बसु से मधुर रिश्ते रहे। कभी वह एक दूसरे पर टिप्पणी करते समय मर्यादा का उल्लंघन नहीं करते थे।