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साल 1990 के बाद रांची विस सीट पर हो गया खेला?

साल 1990 के बाद रांची विस सीट पर हो गया खेला?

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कभी रांची और डाल्टनगंज सीट पर था पंजाबियों का दबदबा,चर्चा में आया अकाली दल

Ranchi news : झारखंड में 7 लाख पंजाबियों की आबादी पर इंडिया गठबंधन से लेकर एनडीए तक की नजर है.दोनों ही गठबंधन में शामिल पंजाबी भाषी नेताओं ने इस बार केंद्रीय नेतृत्व को इस मामले में राजी करने में सफलता हासिल की है कि एक सिख को विधानसभा का टिकट दिया जाएगा.हालांकि झारखंड में चार सिख बहुल सीटों पर विषय पर दोनों ही गठबंधन में केंद्रीय नेतृत्व अंदरखाने चर्चा कर रहे हैं कि किस सिख उम्मीदवार को कहां से उतारा जाए.ये चार सीटें रांची,जमशेदपुर पश्चिम,जमशेदपुर पूर्वी और डाल्टनगंज हैं.

हालांकि सूत्रों के हवाले से ऐसी चर्चाएं भी सुनने में आई है कि इंदर सिंह नामधारी के पुत्र दिलीप नामधारी को कांग्रेस डाल्टनगंज से चुनाव लडा़ सकती है.उस क्षेत्र में सिखों की आबादी कम होने के बावजूद नामधारी परिवार की मजबूत पकड़ को आधार माना जा रहा है जबकि अभी इंडिया गठबंधन में सीटों का बंटवारा होना बाकी है.अगर ऐसा होता है तो एनडीए गठबंधन भी किसी सिख को किसी एक विधानसभा सीट पर मौका देने से पीछे नहीं हटेगा.इंदर सिंह नामधारी डाल्टनगंज से पांच बार विधायक रह चुके हैं.वे दो बार भाजपा और दो बार जनता दल की टिकट पर जीतकर विधायक बने जबकि एक बार निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में भी जीत चुके हैं.

अजमानी के बाद वीरान रहा गुलशन

इस बार रांची विधानसभा पर भी सिखों की नजर है जहां कभी पंजाबी समुदाय से गुलशन लाल अजमानी 1990 से 1995 तक विधायक रहे हैं.वे अविभाजित बिहार में रांची विधानसभा के सदस्य थे,तब सिखों की ज्यादा आबादी भी नहीं थी.श्री अजमानी छोटानागपुर चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के अध्यक्ष भी थे.उनकी अध्यक्षता में एफसीसी का पुनर्गठन किया गया और फेडरेशन ऑफ झारखंड चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के रूप में पुनःमान्यता दी गई.वे आठ वर्षों से झारखंड की पंजाबी-हिंदू बिरादरी के अपराजित अध्यक्ष भी रह चुकें हैं.

1990 के बाद भाजपा से रांची की इस सीट पर ऐसा खेला हुआ कि यहां 1995 में यशवंत सिन्हा और फिर 2000 से सीपी सिंह ही विधायक बनते रहें हैं जबकि इस क्षेत्र से पंजाबियों की आबादी तब के मुकाबले अब चार गुना हो गई है उसके बावजूद कभी किसी भी पार्टी ने इन अल्पसंख्यक वोटरों पर ध्यान ही नहीं दिया.

रांची सीट से सीपी गये तो आएंगे सेठी?

वर्तमान में रांची से अगर सीपी सिंह का टिकट कटा तो अल्पसंख्यक आयोग और प्रधानमंत्री 15 सूत्री  क्रियान्वयन समिति में उपाध्यक्ष रहे गुरविंदर सिंह सेठी ही प्रबल दावेदार होंगे.सूत्रों की मानें तो गुरविंदर सिंह सेठी पर एनडीए और इंडिया दोनों ही गठबंधनों की नजर है.सेठी के संबंध न सिर्फ भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व से बल्कि इंडिया गठबंधन के नेताओं से भी अच्छे रहे हैं.चूंकि सेठी आधे दर्जन धार्मिक और सामाजिक संगठनों के पदाधिकारी के अलावा भाजपा के कटृर सिपाही भी माने जाते हैं इसलिए इस बार दोनों ही गठबंधनों के केंद्रीय नेतृत्व में इस बात की चर्चा अंदर ही अंदर शुरू हो गई है कि एक सिख और ईमानदार छवि के धनी गुरविंदर सेठी को टिकट दिया जा सकता है.एक कारण यह भी है कि इस बार विधानसभा में पंजाबी समुदाय भी हर हाल में अपना प्रतिनिधि चाहता है और दोनों ही गठबंधनों की नजर झारखंड के उन 7 लाख अल्पसंख्यक पंजाबी वोटरों पर भी है जो राज्य के विभिन्न सीटों पर परिवर्तन ला सकती है.

इधर कोल्हान की सिख बहुल विधानसभा क्षेत्र जमशेदपुर पश्चिम और जमशेदपुर पूर्वी की बात करें तो यहां से भी भाजपा और कांग्रेस अपने पत्ते भले ही नहीं खोल रही है लेकिन अंदर ही अंदर सब कुछ तय हो चुका है.वर्तमान में कांग्रेस पार्टी से बन्ना गुप्ता जमशेदपुर पश्चिम और डॉ अजय कुमार जमशेदपुर पूर्वी से तैयारी कर रहे हैं लेकिन एनडीए गठबंधन अभी तक रघुवर दास और सरयू राय के अंतर्कलह के कारण ऊहापोह की स्थिति में है.दोनों विधानसभा पर दोनों ही नेता अड़े हुए हैं जिसके बाद सिखों को यहां निर्दलीय उम्मीदवार घोषित करने की नौबत आ सकती है.

*आयोग का लॉलीपॉप नहीं चलेगा,सिखों को चाहिए टिकट*

झारखंड में सिखों की नजर विभिन्न दलों द्वारा प्रत्याशियों की घोषणाओं पर टिकी हुई है और सिख प्रत्याशी की घोषणा होते ही वोटरों का झुकाव भी विधानसभा में पार्टी विशेष की तरफ स्पष्ट देखने को मिलेगा.

झारखंड में कुछ सिख नेताओं की मानें तो इस बार अल्पसंख्यक आयोग में जगह का आश्वासन देकर मनाने का मंत्र काम नहीं आएगा,हम इस बार अपने वोटरों को ठगने से बचाव के उपायों को लेकर ही मैदान में उतरेंगे.

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जमशेदपुर पश्चिम से सिख समाज के चर्चित युवा पत्रकार और समाजसेवी प्रीतम सिंह भाटिया को भी देखते हैं जो 2019 में रामगढ़ सीट पर विधानसभा चुनाव लड़ने पहुंचे थे लेकिन भाजपा या कांग्रेस से टिकट न मिलने पर वे वापस जमशेदपुर लौट आए.फिलहाल श्री भाटिया समाजसेवा के अलावा पत्रकारहित के आंदोलन में लगातार सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं.एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि इस बार मेरा चुनाव लड़ना जरुरी नहीं है बल्कि एक सिख विधानसभा तक कैसे पहुंचे इस पर सभी को मिलकर सोचना बहुत ज़रूरी है.वे कहते हैं आज झारखंड बने 24 साल हो गए और अल्पसंख्यक के रूप में सिखों को मूलभूत सुविधाएं अब भी नहीं मिली हैं.हालांकि श्री भाटिया एक निजी युट्युब पर खुलकर रघुवर दास का समर्थन करते नजर आए हैं जो काफी वायरल हुआ है.इस पर उन्होंने कहा कि रघुवर दास झारखंड में पहले ऐसे मुख्यमंत्री हुए हैं जिन्होंने सिखों को ध्यान में रखते हुए जमशेदपुर में बहुत बड़ा और ऐतिहासिक धार्मिक समागम करवाया था.श्री भाटिया कहते हैं कि उनके कार्यकाल में पहली बार अल्पसंख्यक आयोग में दो-दो सिखों को उपाध्यक्ष बनाया गया.ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि 2014 में पूर्वी जमशेदपुर से सिखों ने एकमुश्त वोट रघुवर दास को ही दिया था जबकि 2019 में रघुवर हार गए.इसका एक बड़ा कारण 2019 के विधानसभा में सिखों की मांग के बावजूद न रामगढ़ न जमशेदपुर पूर्वी/पश्चिमी और न रांची से किसी सिख को टिकट मिलना भी बताया गया है.

सिखों के सर्वमान्य नेता और दिग्गज भाजपाई अमरप्रीत सिंह काले का भाजपा से निष्कासित होना भी बड़ा कारण रहा है.हालांकि 5 वर्षों से जमशेदपुर पूर्वी से तैयारी के बावजूद यह सीट काले ने रघुवर के खिलाफ सरयू राय को दे दी थी.परिणाम यह हुआ कि सिखों के अलावा राजपूतों ने भी एकजुटता दिखाते हुए सरयू राय को जीत दिलाई.2024 में फिर से सिख प्रत्याशी की मांग जोर पकड़ रही है और इस बार भी सिखों ने निर्णय लिया है कि जो भी सिख या पंजाबी समुदाय से उम्मीदवार देगा पूरे झारखंड में सिखों का वोट उसी पार्टी को जाएगा.इस गंभीर मुद्दे पर सिख अंदर ही अंदर गोलबंद हो चुकें हैं और अब विभिन्न राजनीतिक दलों के केंद्रीय नेतृत्व इस पर गुपचुप तरीके से पता भी लगा रहे हैं कि झारखंड में किस सिख को मौका दिया जाए.

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पूर्वी और पश्चिमी में भगवान, प्रीतम, काले और सोमू की दौड़ शुरू

जमशेदपुर पश्चिम के निवासी युवा समाजसेवी व पत्रकार प्रीतम सिंह भाटिया इस बार चुनाव लड़ने नहीं बल्कि लड़वाने के लिए अंदर ही अंदर खेला खेल रहे हैं.वे 2019 में भाजपा की सरकार न बनने का एक कारण सिखों की अनदेखी भी बताते हैं.श्री भाटिया की मानें तो 2024 में भी भाजपा से यदि टिकट न मिला तो सिख बहुल विधानसभा सीटों पर हार होना सुनिश्चित हैं.वे खुलकर कहते हैं कि इंदर सिंह नामधारी के बाद सिखों को विधानसभा या लोकसभा न भेजा जाना राजनीतिक दलों के अंदर बैठे जातिवाद करने वाले कट्टर नेताओं की बड़ी साज़िश है.उन्होने कहा है कि सीजीपीसी के प्रधान भगवान सिंह को जमशेदपुर पश्चिम से अकाली दल की टिकट पर चुनाव लड़ना चाहिए.

जमशेदपुर पूर्वी में दिग्गज भाजपा नेता रह चुके अमरप्रीत सिंह काले के अलावा रघुवर के करीबी सतबीर सिंह सोमू भी क्षेत्र में सक्रिय हो गए हैं और माना जा रहा है कि पूर्वी जमशेदपुर से यदि रघुवर दास की वापसी न हुई तो सोमू या काले एनडीए से सिख प्रत्याशी हो सकते हैं.हालांकि दोनों ही सिख नेताओं के बड़े-बड़े पोस्टर व होर्डिंग जमशेदपुर पूर्वी में नजर आ रहे हैं लेकिन भाजपा में अमरप्रीत सिंह काले की वापसी फिलहाल केवल चर्चा में है.सूत्रों की मानें तो काले की घर वापसी न हुई तो वे निर्दलीय ही भाग्य आजमाएंगे लेकिन सिखों के वोट बैंक पर भाजपा नेतृत्वकर्ता एक बार फिर विधानसभा का परिणाम आते ही जरूर पछताते‌ नजर आएंगे.इसके अलावा आज से सिख समाज में अकाली दल की भी चर्चा भी शुरू हो गई है.

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