New Delhi news : एक्यूआई एक तरह का थर्मामीटर है। बस यह प्रदूषण मापने का काम करता है। इस पैमाने के जरिए हवा में मौजूद कार्बन डाइऑक्साइड, ओजोन, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, पार्टिकुलेट मैटर और पोल्यूटेंट्स की मात्रा चेक की जाती है। उसे शून्य से लेकर 500 तक रीडिंग में दर्शाया जाता है। हवा में पॉल्यूटेंट्स की मात्रा जितनी ज्यादा होगी, एक्यूआई का स्तर उतना ज्यादा होगा। जितना ज्यादा एक्यूआई, उतनी खतरनाक हवा। वैसे तो 200 से 300 के बीच एक्यूआई भी खराब माना जाता है, लेकिन अभी हालात ये है कि राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली और उत्तर प्रदेश के कई शहरों में ये 300 के ऊपर जा चुका है। ये बढ़ता एक्यूआई सिर्फ एक नंबर नहीं है। ये आने वाली बीमारियों के खतरे का संकेत भी है।
क्या होता है पीएम, कैसे नापा जाता है ?
पीएम का अर्थ होता है पर्टिकुलेट मैटर। हवा में जो बेहद छोटे कण यानी पर्टिकुलेट मैटर की पहचान उनके आकार से होती है। 2.5 उसी पर्टिकुलेट मैटर का साइज है, जिसे माइक्रोन में मापा जाता है। इसका मुख्य कारण धुआं है। जहां भी कुछ जलाया जा रहा है, तो समझ लीजिए कि वहां से पीएम 2.5 का प्रोडक्शन हो रहा है। इंसान के सिर के बाल की अगले सिरे की साइज 50 से 60 माइक्रोन के बीच होता है। ये उससे भी छोटे 2.5 के होते हैं। इन्हें खुली आंखों से भी नहीं देखा जा सकता। एयर क्वालिटी अच्छी है या नहीं, ये मापने के लिए पीएम 2.5 और पीएम 10 का लेवल देखा जाता है। हवा में पीएम 2.5 की संख्या 60 और पीएम 10 की संख्या 100 से कम है, मतलब एयर क्वालिटी ठीक है। गैसोलीन, ऑयल, डीजल और लकड़ी जलाने से सबसे ज्यादा पीएम 2.5 पैदा होते हैं।