Mumbai news, Bollywood news : हम जानते हैं कि कला की साधना सिर्फ विशेष शिक्षा के माध्यम से नहीं होती है। लगन और ललक में वह ताकत होती है, जो इस क्षेत्र में किसी को खास मुकाम दिला देती है। भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में प्रारंभ से ही एक से बढ़कर एक संगीतकारों ने गीतकारों से मिलकर ऐसे धुनें बनाई कि उनकी मृत्यु के बाद भी वो धुनें, उन्हें अमर बने हुए हैं। बॉलीवुड के ऐसे संगीतकारों में ओपी नैयर का नाम एक खास महत्व रखता है। कहा जाता है कि वह अकेले ऐसे संगीतकार थे, जिन्होंने सबसे कम उम्र में फिल्मी संगीत में कदम रखा और अपनी खास जगह बनाने में बड़ी कामयाबी हासिल की। वर्षों पहले उनकी मौत के बाद भी उनका संगीत जिंदा है और हमारे स्मरण में आते रहता है। बीआर चोपड़ा की फिल्म नया दौर का वह गीत- उड़ें जब-जब जुल्फें तेरी, कवांरियों का दिल मचले, का संगीत ओपी नैयर ने तैयार किया था और आज भी इसे सुनिए तो दिल झूम उठता है। आज के युवा भी इस पर घूमने लगते हैं। यही नैयर के संगीत की खासियत है। नैयर ऐसे संगीतकार थे, जिन्होंने हारमोनियम, सितार, गिटार, बांसुरी, तबला, ढोलक, संतूर, माउथआर्गन और सेक्सोफोन आदि का जमकर उपयोग किया।
रागों का उपयोग करने में सिद्धहस्त
ओपी नैयर का पूरा नाम ओंकार प्रसाद नैयर है। एक ऐसे संगीतकार रहे, जिन्होंने शास्त्रीय संगीत की विधिवत शिक्षा नहीं प्राप्त की थी। जब वो किसी गीत के लिए संगीत तैयार करते थे तो उसमें रागों का उपयोग इतनी खूबसूरती से करते थे कि पारखियों को इस बात का अनुमान नहीं होता था कि उन्होंने रागों की व्यवस्थित शिक्षा ग्रहण नहीं की। यह कमाल की बात है कि 17 वर्ष की उम्र में ही उन्होंने एचएमवी के लिए कबीर वाणी कंपोज की थी, लेकिन वो पसंद नहीं की गई। बावजूद इसके उन्होंने एक प्राइवेट एल्बम ‘प्रीतम आन मिलो’ कंपोज किया, जिसमें सीएच आत्मा ने आवाज दी। धीरे-धीरे वह संगीत की दुनिया में आगे बढ़ रहे थे। कहा जाता है कि एक समय में सबसे अधिक फीस लेने वाले संगीतकार को बाद में जिंदगी चलाने के लिए अपना घर तक बेचना पड़ा था, मगर उन्होंने स्वाभिमान से कभी समझौता नहीं किया।
सिर्फ अपनी शर्त पर काम करने वाला संगीतकार
देश विभाजन के बाद लाहौर से मुंबई आने के बाद नायर को लंबा संघर्ष करना पड़ा लेकिन कुछ नजदीकी जानकारी की सिफारिश से उन्हें फिल्मी संगीत में कदम रखने का मौका मिला। कहा जाता है कि 1952 में आई फिल्म ‘आसमान’ ने नैयर के लिए सफलता की राह को चौड़ा कर दिया। लेकिन लता मंगेशकर से उनकी अनबन हुई और इसके बाद फिर दोनों में एक साथ काम नहीं किया। दोनों एक दूसरे का सम्मान करते थे। लता से अनबन के बाद उन्होंने आशा भोंसले के साथ कई फिल्मों में काम किया।फिल्म ‘आर-पार’ और उसके बाद ‘मिस्टर एंड मिसेज 55’ के गीतों ने ओ पी नैयर के संगीत को सफलता के ऊंचे पायदान पर पहुंचा दिया। सबसे बड़ी खासियत यह की नजर ने जब भी काम किया अपनी शर्त पर किया।