New Delhi news : देश की राजधानी दिल्ली सामान्य रूप से भी प्रदूषण तो रहती ही है, लेकिन अक्टूबर और नवंबर के महीने में यहां हवा और जल का प्रदूषण भयंकर किस्म का हो जाता है। हर साल देखने में आता है कि इस महीने यमुना नदी झाग से लबालब हो जाती है। मानसून की बारिश से जहां प्रदूषक अस्थायी रूप से कम हो जाते हैं, वहीं जल स्तर कम होते ही मुख्य समस्याएं फिर से उभर आती हैं।
इस कारण बनती है झाग
हाल में इस बात की जानकारी मिली है कि आईआईटी कानपुर द्वारा किए गए अध्ययन ने इस मौसमी घटना के कारणों का पता लगाया है। यमुना पर झाग मुख्य रूप से नदी में प्रवेश करने वाले प्रदूषकों और सीवेज के उच्च स्तर के कारण होता है। आवासीय और औद्योगिक कचरे से फॉस्फेट और सर्फेक्टेंट युक्त डिटर्जेंट की वजह से भी झाग बढ़ती है। नदियों में झाग बनना एक ऐसी घटना है, जिसके लिए अक्सर पर्यावरण और मानवजनित कारकों को जिम्मेदार बताया जाता है। यमुना के मामले में विशेष रूप से अक्टूबर और नवंबर के दौरान कई परिस्थितियों के कारण यह भयावह दृश्य देखने को मिलता है।
हर दिन 3.5 बिलियन लीटर से अधिक सीवेज
खासतौर पर दिल्ली में यमुना नदी अनुपचारित सीवेज के कारण गंभीर प्रदूषण से ग्रस्त है। नदी में हर दिन 3.5 बिलियन लीटर से अधिक सीवेज आता है। फिर भी सिर्फ 35-40% का ही उपचार किया जाता है। अनुपचारित अपशिष्ट प्रदूषण के स्तर में भारी योगदान देता है, जो उच्च प्रवाह के दौरान झाग का कारण बनता है। मॉनसून के मौसम के बाद झाग का निर्माण तेज हो जाता है क्योंकि सर्दियों में ठंडा तापमान झाग को फैलाने की जगह स्थिर कर देता है।