Mumbai news, Bollywood news : बॉलीवुड के गायकों में जब हम येसुदास को शामिल करके चलते हैं, तो सबसे महत्वपूर्ण बात यह होती है कि उनकी अलग खासियत खुद बोलने लगती है। यह सही है कि उन्होंने हिंदी में मुकेश, मोहम्मद रफी, किशोर कुमार या महेंद्र कपूर जितने गाने अपने जमाने में ना गए हों, लेकिन जो कुछ भी गया, वह आज भी जिंदा है और आगे भी जिंदा रहेगा। उन जैसे गायको को शास्त्रीय और लोक संगीत के बीच की ऐसी कड़ी के रूप में देखा जाता है, जो संगीत के विशेषज्ञ और संगीत को न जानने वाले लोग भी समान रूप से पसंद करते हैं। संगीत के शास्त्र को जानना उतना आवश्यक लोक के लिए नहीं होता है, जितना उसकी मधुरता से लगाव स्थापित करना जरूरी होता है। साल 2000 में आई फिल्म दादा का वह गीत सुनिए- दिल के टुकड़े-टुकड़े करके मुस्कुरा कर चल दिए, जाते-जाते ये तो बता जा हम जिएंगे किसके लिए। येसुदास जैसा गायक अपने फैंस के लिए जीता है। याद रखिएगा उनके पिता
अगस्टिन जोसेफ एक प्रसिद्ध मलयालम शास्त्रीय संगीतकार थे और वही येसुदास के संगीत गुरु भी थे।
नए लोगों को मिलना चाहिए पुरस्कार
1940 में केरला के फोर्ट कोच्चि में जन्मे येसुदास अब चौरासी से अधिक बसंत देख चुके हैं, लेकिन उनके गले से निकलने वाला हर शब्द संगीत में ढल जाता है। वह एकमात्र ऐसे गायक हैं, जिन्होंने गायकी के क्षेत्र में आने वाले नए लोगों को प्रोत्साहन देने का भरपूर समर्थन किया और यहां तक कर दिया कि अब मुझे जैसों को पुरस्कार ना देकर नए लोगों को दिया जाना चाहिए।
विदेशी भाषाओं में भी गाए गाने
येसुदास वे मूलत: एक मलयाली भारतीय शास्त्रीय संगीतकार हैं, लेकिन उन्हें पूरा देश सुनता है और सम्मान करता है। भारत ही नहीं, विदेश में भी उनके कॉन्सर्ट आज भी होते हैं। कहा जाता है कि सिर्फ 7 साल की उम्र में फोर्ट कोची में आयोजित होने वाली स्थानीय प्रतियोगिता में संगीत के लिए स्वर्ण पदक जीत लिया था। हिंदी, मलयालम, तमिल जैसी भारतीय भाषाओं में गाने वाले येसुदास ने रूसी, लैटिन और अरबी भाषाओं में लगभग एक लाख गाने गाए। 1973 में उन्हें पद्म श्री और 2002 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।