Something goes on spontaneously in the Nature. No One knows the reason. कुदरत में कुछ-कुछ स्वत: होते रहता है। इसकी वजह कोई नहीं जानता। विज्ञान बहुत बार ऐसे रहस्य को समझने की चेष्टा करता है, पर वह उसके मूल तक कभी- कभी नहीं पहुंच पाता। जी हां, हम बात कर रहे हैं दुनिया के एक ऐसे शिवलिंग की जिस पर हर दिन, हर मौसम में साल भर जलाभिषेक होते रहता है, लेकिन जलाभिषेक करने वाला कौन है, यह कोई नहीं जानता। प्रकृति बाबा भोलेनाथ के शिवलिंग का स्वयं जलाभिषेक करती है या भगवान शिव खुद अपने लिंग पर जलाभिषेक करते हैं, इसका रहस्य आज हम आपको बता रहे हैं। यह लिंग छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग में है। बस्तर आदिवासी बहुल है। आध्यात्मिक दृष्टि से इसे शिवधाम की भी कहा जाता है। यहां के लोग सदियों से पक्के शिवभक्त कहे जाते हैं। इनका शिव आराधना में अटूट विश्वास है। बस्तर के ग्रामीण अंचलों के अलावा शहरी इलाकों में भी कई शिव मंदिर हैं। बस्तर रूपी शिवधाम में ऐसे भी धाम हैं,जो सदियों से लोगों की आस्था के केंद्र हैं। इन्हीं में से एक है तुलार गुफा शिवधाम। यहां भगवान शिव को तुलार बाबा के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि बस्तर संभाग रहस्यों से भरा है। संभाग के दंतेवाड़ा जिले के बारसूर ब्लॉक के घोर जंगलो के बीच एक रहस्यमी गुफा है। इसे ही तुलार गुफा कहा जाता है। इसके अंदर सैकड़ों साल पहले से एक शिवलिंग है।
365 दिन होते रहता है जलाभिषेक
इस गुफा की सबसे खास बात यह है कि यहां साल के 365 दिन प्राकृतिक रूप से शिवलिंग पर पानी रिसता रहता है। जलाभिषेक के लिए यह पानी कहां से आता है, इसे कोई नहीं जानता। स्थानीय ग्रामीण बताते हैं कि इलाके के लिए यह स्वयं भगवान शिव का वरदान है, जहां वह खुद अपने लिंग पर जलाभिषेक करते हैं अथवा प्रकृति उनका जलाभिषेक करती रहती है।
स्थानीय लोग कहते हैं कि बाणासुर ने स्थापित किया है यह शिवलिंग
ग्रामीणों के मुख से यह किवदंती भी सुनने को मिलती है कि भगवान शिव के मानस पुत्र की पदवी पाने वाले परम विष्णु भक्त प्रहलाद के नाती और धरती के महान दानी राजाबलि के ज्येष्ठ पुत्र दैत्यराज बाणासुर ने यहां यह अद्भुत शिवलिंग स्थापित किया है। अबूझमाड़ के घनघोर जंगल के बीच बारसूर से लगभग 20 किलोमीटर दूर यह तुलार गुफा है।
जगदलपुर शहर से 150 किलोमीटर दूर
यह गुफा जगदलपुर शहर से लगभग 150 किलोमीटर दूर है। इस मंदिर तक जाने के लिए जिला दंतेवाड़ा के बारसूर ब्लॉक के अंदर जाना होता है। वहां से एक पगडंडी नुमा रास्ता जाता है और वहां से पैदल या दो पहिया वाहन से जाया जा सकता है। इस रास्ते में करीब दो से तीन नाले पड़ते हैं,जिस पर अगर पानी ज्यादा हो तो मोटरसाइल से पार करना मुश्किल है। कई उंचे रास्ते भी हैं, जहां वाहन का चढ़ पाना आसान नहीं है। गुफा तक पहुंचते-पहुंचते थकान होना स्वाभाविक है, पर श्रद्धालु कहते हैं कि बाबा के दर्शन होते हैं सारी थकान छूमंतर हो जाती है।
इस तरीके से होता है जलन रिसाव
ग्रामीण बताते हैं कि बरसात के मौसम में जल की धारा तेज हो जाती है। ठंड के मौसम में भी शिवलिंग पर पानी रिसता रहता है। गर्मी के मौसम में भी बूंद-बूंद पानी शिवलिंग पर रिसता है। ठीक है कि बरसात के मौसम में नदी-नाले उफान पर रहते हैं और ऐसे में गुफा के भीतर तक यह पानी पहुंचना संभव है, लेकिन गर्मी के मौसम में भी बूंद-बूंद पानी का शिवलिंग पर रिसना वैज्ञानिकों के लिए अभी तक शोध का विषय बना हुआ है। यदि सीधी वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो गर्मी में जल रिसाव Evaporation यानी वाष्पोत्सर्जन के कारण होता होगा।
महाशिवरात्रि और कार्तिक पूर्णिमा के दिन जुटती है हजारों श्रद्धालुओं की भीड़
इतिहासकार हेमंत कश्यप बताते हैं कि इस शिवलिंग स्थल पर महाशिवरात्रि और कार्तिक पूर्णिमा के समय हजारों की संख्या में आसपास के ग्रामीणों की भीड़ भगवान शिव के दर्शन के लिए जुटती है। इस गुफा में पूजा करने वाले पंडित और मौजूद लोगों के मुताबिक चंद्रमा की स्थिति के अनुसार पानी की मात्रा कभी कम, कभी ज्यादा होती रहती है।