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बेंतरा वाला भाई

बेंतरा वाला भाई

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वह बारिश में भींगता खड़ा

आषाढ़ की एक शाम में

जब जगत् के नाथ भी

बीमार पड़े रहते हैं

कागज की रंग-बिरंगी घिरनी

पकड़े बारिश में भींगता खड़ा !

पीठ पर डेढ़ साल की बहन

बांधे ग्यारह साल का भाई खड़ा

बहना को पन्नी की ओट में रख

स्वयं बारिश में बोथ हुआ

दृढ़ता से ग़रीबी की अमीरी

अपने कांधे पर लादे एक भाई खड़ा !

सारी दुनिया दौड़ रही है

वह संघर्षरत एकाकी खड़ा

भगवान के रथ की भांति

उसकी घिरनियां भी खींच रही हैं

उसकी ग़रीबी का रथ जो

एक भाई के साहस का चक्र है

कृष्ण की भांति वह भाई बड़ा !

घिरनी बनाता बेचता वह

रंगीन कल के सपने सजाये

कितना ऊंचा मनोबल उसका

सच्चे विश्वास से भरा हुआ

मेले की भीड़ में वह एक भाई

बेंतरा में बहन को बांधे खड़ा !!

डॉ. आकांक्षा चौधरी

रांची, झारखंड।

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