Russia (रूस) और Ukraine (यूक्रेन) का युद्ध 31 मार्च को 36वें दिन में प्रवेश कर चुका है। रूस अपने मिशन को आगे बढ़ाने में जरा भी पीछे की ओर नहीं दिख रहा है। अमेरिका और यूरोपियन देश रूस के खिलाफ हैं। तमाम तरह के आर्थिक प्रतिबंध रूस पर उनकी ओर से लगाए गए हैं। इसका रूस की अर्थव्यवस्था पर प्रभाव पड़ रहा है। भारत ने इस जंग को लेकर अपनी तटस्थता (Neutrality) की रणनीति तय की है। यह भारत की स्वतंत्र विदेश नीति का प्रमाण है। वह रूस के खिलाफ नहीं है, पर युद्ध को शांतिपूर्ण तरीके से राजनयिक विधि के माध्यम से समाप्त करने का समर्थन करता है। भारत की नीति से अमेरिका सहमत नहीं है और न पसंद है। यह महत्वपूर्ण बात है कि भारत और अमेरिका तथा भारत और रूस के बीच संबंधों के आधार की व्यापकता अलग-अलग है। युद्ध के हालात में भी रूस से तेल आयात करने की अपनी नीति से भारत पीछे नहीं हट रहा है और इस बीच इसे लेकर अमेरिका ने भारत को चेतावनी दी है कि इसका परिणाम खराब हो सकता है।
‘बड़े खतरे का सामना’ जैसी बात
अंतरराष्ट्रीय मीडिया से मिल रही खबरों के अनुसार, एक वरिष्ठ अमेरिकी अधिकारी के मुताबिक भारत द्वारा रूस से तेल का आयात बढ़ाने के कारण ‘बड़े खतरे’ का सामना करना पड़ सकता है,क्योंकि अमेरिका रूस पर लगे प्रतिबंधों को लागू करवाने में ज्यादा सख्ती बरतने के लिए कदम उठा रहा है। एक अमेरिकी अधिकारी ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को नाम न छापने की शर्त पर बताया, “अमेरिका को इस बात से कोई आपत्ति नहीं है कि भारत रूस से तेल खरीदे, बशर्ते वह इसे डिस्काउंट पर खरीद रहा है और आयात पिछले सालों के मुकाबले बहुत ज्यादा बढ़ा नहीं रहा है। आयात का थोड़ा बहुत बढ़ना ठीक है।” अमेरिका ने रूस पर फिलहाल जो प्रतिबंध लगाए हैं, वे किसी देश को रूस से तेल खरीदने से नहीं रोकते, लेकिन ऐसे संकेत हैं कि अमेरिका अन्य देशों को पाबंदियों के दायरे में ला सकता है, ताकि रूस को मिलने वाली मदद बंद की जा सके।
भारत ने रूस से बढ़ाया है तेल आयात
अमेरिकी अधिकारी के भारत संबंधी ये बयान तब आए हैं, जबकि रूस के विदेश मंत्री सर्गई लावरोव भारत आने वाले हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति के आर्थिक सुरक्षा मामलों के उप सलाहकार दलीप सिंह भी भारत दौरे पर आने की बात कह चुके हैं। 30 मार्च को जर्मनी के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने भारत का दौरा किया था और 31 March को ब्रिटिश विदेश मंत्री भारत पहुंच रही हैं। रूस से भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक और उपभोक्ता है। रूस द्वारा यूक्रेन पर हमले के बाद उसने रूस से तेल आयात बढ़ा दिया है. 24 फरवरी के बाद से ही भारत ने करोड़ बैरल तेल खरीदा है, जबकि पिछले पूरे साल में उसका रूस से तेल आयात 1.6 करोड़ बैरल था।
लगातार संपर्क में हैं भारत और अमेरिका
अमेरिकी विदेश मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने कहा कि सरकार भारत और रूस के बीच तेल खरीद को लेकर चल रही बातचीत के बारे में जानती है। प्रवक्ता ने कहा, “हम भारत और बाकी दुनिया में हमारे साझीदारों के साथ लगातार संपर्क में हैं, ताकि रूस पर यूक्रेन में विनाशकारी युद्ध जल्द से जल्द खत्म करने के लिए दबाव डालने के लिए एक साझी और मजबूत कार्रवाई की जा सके, जिसमें सख्त प्रतिबंध लगाना भी शामिल है।” प्रवक्ता ने कहा कि बाइडेन सरकार भारत और यूरोपीय देशों के साथ मिलकर इस बात की कोशिश कर रही है कि यूक्रेन युद्ध का दुनिया के ऊर्जा बाजार पर कम से कम असर हो और साथ ही रूसी ऊर्जा पर निर्भरता घटाने के लिए भी कदम उठाए जा रहे हैं।
बाजार में पहुंचेगा कम तेल
पेरिस स्थित इंटरनेशनल ऊर्जा एजेंसी (IEA) का अनुमान है कि प्रतिबंध और खरीदारों द्वारा रूस से तेल खरीदने में परहेज के चलते अप्रैल में रोजाना लगभग 30 लाख बैरल कम तेल बाजार में पहुंचेगा। अमेरिकी अधिकारी के मुताबिक उन्हें इस बात से कोई दिक्कत नहीं है कि भारत रूस के साथ व्यापार डॉलर में न करके रूबल में करे, बशर्ते लेनदेन में प्रतिबंधों के नियमों का पालन किया जाए। भारत और रूस रूबल-रुपये में लेनदेन की प्रक्रिया तैयार करने पर काम कर रहे हैं। अमेरिकी अधिकारी ने कहा, “वे जो भी भुगतान करें, जो भी करें वह प्रतिबंधों के दायरे में होना चाहिए।